केंद्रीय कृषि मंत्री श्री राधा मोहन सिंह जी से फेस-बुक पर फेस-टू-फेस में यक्ष प्रश्न: Face to face with Union Minister of Agriculture and Farmers Welfare on Facebook.
https://www.facebook.com/SinghRadhaMohan/photos/gm.660856907449695/1901927790095708/?type=3
A. माननीय मंत्री महोदय
एक प्रश्न जो मुझे और पशुपालकों
को अक्सर परेशान करता है उसका आपके पास उत्तर अवश्य होगा:
प्रश्न: जिन
पशु रोगों (मुँह पका खुर पका, पीपीआर, ब्रुसेल्लोसिस आदि) को आपके विभाग के किसी भी फार्म पर कंट्रोल नहीं किया जा सका, यहाँ तक कि भारतीय पशुरोग अनुसंधान संस्थान (IVRI) में भी नहीं, उन रोगो के कंट्रोल प्रोग्राम चलाकर आप किसे धोखा देना चाहते हैं: किसानों को, पशुपालकों को या सारी जनता को. हज़ारों करोड़ रुपयों से चलने वाले ये प्रोग्राम
किस के लिए हैं- घटिया वैक्सीन बनाने वालों के लिए, या आपके विभाग के कुछ अफसरों को अमीर बनाने के लिए या कोई और भी लोचा है?
महोदय इस प्रश्न का उत्तर देश के ग़रीब पशुपालकों, बेचारे पशु-चिकित्सकों एवं देश के करदाताओं को अवश्य ही कुछ राहत प्रदान करेगा अतः उत्तर अवश्य देने की कृपा करें.
महोदय इस प्रश्न का उत्तर देश के ग़रीब पशुपालकों, बेचारे पशु-चिकित्सकों एवं देश के करदाताओं को अवश्य ही कुछ राहत प्रदान करेगा अतः उत्तर अवश्य देने की कृपा करें.
B. माननीय मंत्री महोदय
मैं आपके सीधे संवाद में पिछले साल भी यह प्रश्न पूंछा था और आपके कहने पर
सारे साक्ष्य भी आपके ऑफिस में जमा कर दिए थे, और ईमेल करके कई बार स्मरण भी कराया
था, परन्तु उत्तर नहीं मिला अतः प्रश्न एक बार पुनः जरूर पूछूंगा, अति व्यस्तता के बीच कदाचित आपके ध्यान से उतर गया हो.
प्रश्न: सारे
साक्ष्य होते हुए भी आपने घटिया क्वालिटी की मुंह पका खुर पका रोग (FMD) की वैक्सीन को अच्छी क्वालिटी की बताने वालों के खिलाफ कोई एक्शन क्यों नहीं लिया. जबकि यह वैक्सीन आपके विभाग के बड़े-
बड़े
संस्थानों के डेरी फार्मों एवं मिलिट्री डेरी फार्म मेरठ में समयानुसार वैक्सीनेशन
के बाद भी रोग से पशुओं को नहीं बचा सकी और सैकड़ों गौ-धन काल कवलित हो गए. और तो और
गद्दारों को सजा देने के बजाय उन्हें और बड़े पदों पर बिठा दिया.
महोदय, मेरा प्रश्न जो पिछले साल था वही आज भी है, क्या ऐसे ही चलती रहेगी पशुओं में बीमारी कंट्रोल करने की बीमार मुहिम?
महोदय, जो रिपोर्ट पिछले साल सारे सबूतों के साथ आपसे कंडम करने की प्रार्थना
की गई थी वही प्रार्थना
फिर से एक बार-
महोदय, भारत सरकार की विद्वत समिति (जिसके अध्यक्ष डा. गया प्रसाद, तत्कालीन उप-महानिदेशक, भा. कृषि अनु. सं. परिषद्) की रिपोर्ट जिसमे मेरे साथी वैज्ञानिकों
द्वारा घटिया पाई गई वैक्सीन को उच्च गुणवत्ता की बताकर मेरे विरुद्ध कार्यवाही के लिए कहा था, वो रिपोर्ट झूठ का एक पुलिंदा मात्र ही नहीं है, वो देश के प्रति गद्दारी है क्योंकि जिस टेस्टिंग को करके वो रिपोर्ट बनाई गई थी वो टेस्टिंग पूरी तरह से झूठी और फर्जी थी. सूचना के अधिकार से प्राप्त जानकारी बताती है कि-
१. जो वैक्सीन सैंपल हमारी टीम ने टेस्ट किये थे उन्हें नहीं जांचा गया, ना ही उन सैंपलों के वे प्रतिरूप जांचे गए जो ऐसे मामलों के लिए ही अन्य पार्टी के साथ संरक्षित किये जाते है (जबकि वे प्रतिरूप भा. पशु चि. अनु. सं. संस्थान, बेंगलुरु में ही रखे थे).
2. दुबारा जाँच के लिए सैंपल पुनः कंपनियों से ही उन्हें पर्याप्त समय देकर प्राप्त किये गए जो सिर्फ भारत में ही संभव है.
3. टेस्टिंग के लिए सैंपल कभी भा. पशु चि. अनु. सं. संस्थान बरेली में आये ही नहीं, ना कोई लिखित में प्राप्ति है, न ही संस्थान उन्हें कभी दिखा पाया.
4. जो सैंपल लाने गए थे ना तो वो सैंपलिंग के लिए DCGI से अधिकृत थे, ना उन्हें सैंपलिंग का ज्ञान था, ना उन्होंने उचित मात्रा और और संख्या में सैंपलिंग ही की.
5. महोदय, पूरी जांच फर्जी थी यह इससे भी विदित होता है कि जांच वहां की गई जहाँ उसे करने कि ना सुविधा थी और ना ही अधिकार.
6. रिपोर्ट तीन बार लिखी गई/ बदली गई.
7. डा. गया प्रसाद का ज्ञान देखिये कि उन्होंने भा. पशु चि. अनु. सं. संस्थान बरेली से अंतिम रिपोर्ट जो ७ फरवरी २०१५ को भेजी गई उससे २५ दिन पहले ही १२ जनवरी २०१५ को अपनी रिपोर्ट लिख दी और उसी दिन महानिदेशक, भा. कृषि अनु. सं. परिषद् से स्वीकृत भी करा ली.
8. जिसके (मेरे) विरुद्ध यह रिपोर्ट थी उसे रिपोर्ट की प्रति देने से गोपनीय कहकर मन कर दिया गया परन्तु घटिया वैक्सीन बनाने वाली कंपनी के पास ये हाई-कोर्ट में जमा होने से (६ फरवरी २०१५) पहले ही पहुँच गई, और उन्होंने
इस तथाकथित गोपनीय रिपोर्ट को इंटरनेट पर भी परिचालित (जनवरी २०१५) भी कर दिया. करते
भी क्यों ना, ये रिपोर्ट तो डा. गया प्रसाद ने लिखी ही उनके लिए थी.
9. हाई-कोर्ट में शपथ पत्र पर लिखा गया गया कि रिपोर्ट भा. कृषि अनु. सं. परिषद् से स्वीकृत है जबकि अभी भी भी इसपर विजिलेंस जांच चल रही है कि डा. गया प्रसाद को फर्जी रिपोर्ट देने के लिए कैसे बचाया जाये और डा. भोज राज सिंह को कैसे फंसाया जाए.
इस सबके बावजूद भी यदि महोदय देशद्रोहियों के विरुद्ध कार्यवाही नहीं करते या किये तो ये तो मेरा, गरीब पशुपालकों का, बेजुबान पशुओं का, देश की गौओं का, और इस देश का दुर्भाग्य ही है. वर्ना आपके जितना ज्ञानवान केंद्रीय मंत्री तो इसपर बहुत पहले ही एक्शन ले लिया होता और देश द्रोही आज देश के कृषि अनुसंधान एवं कृषि शिक्षा को दिशा-दसा ना दे रहे होते.
It has also been submitted with PMO Office at http://www.pmindia.gov.in/en/interact-with-honble-pm/
Your Registration Number is : PMOPG/E/2017/0379581
Subject- मिलने
का समय देने की
कृपा करें.
आदरणीय महोदय, मैंने निम्न-लिखित सन्देश
और मेरे प्रश्न
कई बार ईमेल
द्वारा तथा स्वयं
जाकर माननीय केंद्रीय
कृषि एवं किसान
कल्याण मंत्री जी के
कार्यालय को दिए
हैं, अब आपकी
ओर से आशा
देखते हुए अपने
प्रश्न जो कृषि
मंत्री जी को
दिए थे आपको
प्रेषित कर रहा
हूँ.
A. मुँह पका
खुर पका, पीपीआर,
ब्रुसेल्लोसिस आदि जब
भारतीय
पशुरोग अनुसंधान संस्थान IVRI में
कण्ट्रोल नहीं किये जा सके तब,
उन रोगो के
कंट्रोल प्रोग्राम चलाकर आप
किसे धोखा देना
चाहते हैं. ये
प्रोग्राम किस के
लिए हैं- घटिया
वैक्सीन बनाने वालों के
लिए, या आपके
विभाग के कुछ
अफसरों को अमीर
बनाने के लिए
B. सारे साक्ष्य
होते हुए भी
आपने घटिया क्वालिटी
की मुंह पका
खुर पका रोग
की वैक्सीन को
अच्छी क्वालिटी की
बताने वालों के
खिलाफ कोई एक्शन
क्यों नहीं लिया.
जबकि यह वैक्सीन
सरकारी विभाग के बड़े-
बड़े संस्थानों के
डेरी फार्मों एवं
मिलिट्री डेरी फार्म
मेरठ में समयानुसार
वैक्सीनेशन के बाद
भी रोग से
पशुओं को नहीं
बचा सकी और
सैकड़ों गौ-धन
काल कवलित हो
गए. और तो
और गद्दारों को
सजा देने के
बजाय उन्हें और
बड़े पदों पर
बिठा दिया.
महोदय, भारत सरकार
की विद्वत समिति
-जिसके अध्यक्ष डा. गया
प्रसाद, तत्कालीन उप-महानिदेशक,
भा. कृषि अनु.
सं. परिषद्- की
रिपोर्ट जिसमे मेरे साथी
वैज्ञानिकों द्वारा घटिया पाई
गई वैक्सीन को
उच्च गुणवत्ता की
बताकर मेरे विरुद्ध
कार्यवाही के लिए
कहा था, वो
रिपोर्ट झूठ का
एक पुलिंदा मात्र
ही नहीं है,
वो देश के
प्रति गद्दारी है
क्योंकि जिस टेस्टिंग
को करके वो
रिपोर्ट बनाई गई
थी वो टेस्टिंग
पूरी तरह से
झूठी और फर्जी
थी. सूचना के
अधिकार से प्राप्त
जानकारी बताती है कि-
१. जो वैक्सीन
सैंपल हमारी टीम
ने टेस्ट किये
थे उन्हें नहीं
जांचा गया, ना
ही उन सैंपलों
के वे प्रतिरूप
जांचे गए जो
ऐसे मामलों के
लिए ही अन्य
पार्टी के साथ
संरक्षित किये जाते
है -जबकि वे
प्रतिरूप भा. पशु
चि. अनु. सं.
संस्थान, बेंगलुरु में ही
रखे थे-.
2. टेस्टिंग
के लिए सैंपल
कभी भा. पशु
चि. अनु. सं.
संस्थान बरेली में आये
ही नहीं, ना
कोई लिखित में
प्राप्ति है, न
ही संस्थान उन्हें
कभी दिखा पाया.
3. डा. गया प्रसाद
ने भा.
पशु चि. अनु.
सं. संस्थान बरेली
से टेस्ट रिपोर्ट
जो ७ फरवरी
२०१५ को भेजी
गई उससे २५
दिन पहले ही
१२ जनवरी २०१५
को अपनी रिपोर्ट
लिख दी और
उसी दिन महानिदेशक,
भा. कृषि अनु.
सं. परिषद् से
स्वीकृत भी करा
ली.
No comments:
Post a Comment