Wednesday, October 18, 2017

क्या भारत सरकार को आपके एवं आपकी आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य की चिंता है? Do Government of India cares for your health and health of your coming generations?

क्या भारत सरकार को आपके एवं आपकी आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य की चिंता है?
Do Government of India cares for your health and health of your coming generations? 
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https://www.researchgate.net/publication/303685698_Use_of_Enrofloxacin_as_Preservative_in_FMD_vaccine?ev=pubitem-pub_supplemented&_iepl%5BviewId%5D=oV8gWooG2kGShGxc1GWnRf1i0LrAXyE9N2T4&_iepl%5Bcontexts%5D%5B0%5D=pdppi&_iepl%5Bdata%5D%5Bmilestone%5D=experimentMilestoneClickedToPublicationFromRelatedWithFulltext&_iepl%5BinteractionType%5D=publicationView
http://azad-azadindia.blogspot.com/2016/08/enrofloxacin-addition-in-fmd-vaccine.html
यदि आपका उत्तर हाँ में है तो आप इस भ्रम से जितना जल्दी हो सके बाहर आने का प्रयास करें वरना बहुत देर हो चुकी होगी.
नमूने के तौर पर आपके बच्चों को पैदा होते ही चिकित्सकों द्वारा दी जाने वाली फ्लूरो-क्यूनॉलोन (FQ) दवाओं (सिप्रो-फ्लोक्सासिन, ओफ्लोक्सासिन, लीवो-फ्लोक्सासिन आदि) का उदाहरण लेते हैं. १८ वर्ष से कम उम्र के बच्चों को इस दवा के देने से उनके जोड़ों का विकास प्रभावित होता है और बचपन से ही मांस पेशियों एवं जोड़ों के दर्द के शिकार हो जाते हैं, स्नायु तंत्र कमजोर हो जाता है जिससे उनमे मृगी एवं अन्य मानसिक रोग हो सकते हैं. ये ऐसे रोग है जो दवा खाने के महीनों या वर्षों बाद पता चलते हैं और इलाज कुछ भी नहीं.
दूसरी बड़ी समस्या है जीवाणुओं में औषधि प्रतिरोध तेजी से उत्पन्न होता है जिससे कि आने वाले समय में कोई भी ऐंटी-बायोटिक दवा काम नहीं करती.
तीसरे, इसके अलावा भी इन औषधियों (FQ) के प्रयोग से पेट से सम्बंधित रोग जैसे कि मितली, उलटी, पेट दर्द, त्वचा पर लाल धब्बे, एलर्जी, खून में रोगाणुओं से लड़ने वाले श्वते कणों कि कमी, एवं यकृत विकार आदि उत्पन्न होते हैं परन्तु दवा बंद करने के कुछ दिन बाद सही देखभाल से ठीक हो जाते हैं.
प्रश्न यह है कि डाक्टर ये सब जानकार भी आपके बच्चे को ये दवाएं क्यों देते हैं?
कारण कई हैं, जैसे कि
. ये दवाएं रोगणुओं पर काफी असरकारक होती हैं अतः डाक्टर आपके बच्चे को फौरी आराम के वास्ते उम्र भर का बीमार बनाना बेहतर समझते हैं.
. कई बार आपके डाक्टर को इसकी जानकारी ही नहीं होती या मरीजों में अति-व्यस्तता  के कारण भूल जाते. हैं
. भारत सरकार को देश में बीमार लोगों कि आवश्यकता है जिससे कि फार्मा कम्पनियाँ चलती रहें इसीलिए तो सारी दुनिया में बच्चों के लिए इन दवाओं के उपयोग पर प्रतिबन्ध के बावजूद भारत सरकार ने इन्हे प्रतिबंधित नहीं किया है, और तो और ये दवाइयाँ डाक्टर के बगैर दिए भी आपके और आपके बच्चे के पेट में पहुंचती रहें इसका भी पुख्ता इंतजाम है जैसे कि
पशुओं में भी इन दवाइयों को ना सिर्फ इलाज के लिए बल्कि उनमे लगने वाले वैक्सीन में भी मिलाने के अनुमति दी है जिससे कि ये खतरनाक दवाएं दूध और गोश्त के रास्ते आप तक निर्बाध रूप से पहुँच सकें. वो बात अलग है कि दुनिया के सभी विकसित और बहुत से विकास-शील देशों में इन दवाओं को दुधारू पशुओं को देना तो दूर, डेरी फार्म की दवाइयों की अलमारी में रखने पर भी प्रतिबन्ध लगाए हैं. परन्तु हमारा भारत महान है, और महानता पर ना कोई प्रश्न चिह्न होता है ना कोई सवाल "समरथ को नहीं दोस गुसाईं"
  ऐसा नहीं है कि ये औषधी किसी भी हालत में बच्चों को नहीं दी जा सकतीं, OIE एवं  WHO ने कहा है कि डाक्टर इन दवाओं के दुधारू एवं गोश्त के लिए उपयोग होने वाले पशुओं में बिलकुल प्रयोग करे. और बच्चों में इन्हे तभी प्रयोग करें जब अन्य कोई भी औषधि जीवन रक्षा करने में समर्थ ना हो जैसे कि ऐन्थ्रैक्स  होने पर, खतरनाक किस्म का मूत्रनली में इन्फेक्शन होने पर, सूडोमोनास से इन्फेक्ट होने पर, जानलेवा डीसेंट्री या हैजा होने पर, या टीबी होने पर इनका उपयोग हो सकता है, परन्तु हमारे डाक्टरों को हर हारी-बीमारी जानलेवा, हर दस्त हैजा और हर खांसी में टीबी नजर आती है और धड़ल्ले से इन खतरनाक औषधियों का खुले आम प्रयोग करते हैं, हालात ये हैं कि कुछ भी हो हर भारतीय को सिप्रोफ्लोक्सासिन हर वक्त याद रहती है, और रहे भी क्यों सस्ती है, हर केमिस्ट कि दूकान पर खुले आम बिकती है. फिर हम सोचते हैं कि जब सबके बच्चे खा रहे हैं और ज़िंदा हैं मोटे ताजे हैं तो मेरे बच्चे में ही क्या कमी है, और कहीं इस बीमारी से भगवान् को ही प्यारा हो गया तब! ना जी ना, ना होने से तो रावला बावला ही भला, लगाओ जी जो भी लगाओ पर मेरे बच्चे को बचाओ. परन्तु  सोचो:
. १३० करोड़ लोगों के देश में एक भी ओलम्पियन एथलीट नहीं, होगा कहाँ से दौड़ने लायक मांस-पेशिया और जोड़ तो आपने और आपके डाक्टर ने बचपन में ही बेकार कर दिए थे.
. कितने बच्चे आज मिर्गी से ग्रसित हैं और कितने मानसिक रोगी हैं, और कितने ही तो पैदायशी तौर ही मानसिक रोगी हैं, परन्तु वो तो हमारा या तुम्हारा भाग्य ही है या फिर पूर्व जन्मों के कर्मों का फल, डाक्टर का बेचारे का क्या दोष, इसमें बेचारी सरकार भी क्या ही कर सकती है. आपने ही तो सोचा थाना होने से तो रावला बावला ही भला”.

ज्यादा जानकारी के लिए पढ़ें: http://azad-azadindia.blogspot.com/2016/08/enrofloxacin-addition-in-fmd-vaccine.html
Who cares about Health and Wealth of Future Generations in India?
The common adverse effects of Fluoroquinolones (ciprofloxacin, norfloxacin, ofloxacin, enrofloxacin, levofloxacin etc, FQ) include gastrointestinal disorders as nausea, vomiting, diarrhoea, and abdominal cramps. Besides, skin rashes, allergies, and photosensitivity are also frequently seen. Some less common complications of FQ use are neutropenia, eosinophilia, and elevated liver enzymes (1-4%) but luckily all are reversible with proper post-therapeutic care (https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3668199/). Several studies associated arthropathy in kids after use of FQ in growing age up to 18 years.
In a study in 2003, Chalumeau and co-workers reported (https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pubmed/12777590) from a prospective, multicenter, observational, cohort study that compared potential adverse events in 276 pediatric patients who received FQs and 249 matched controls who received an antibiotic agent other than FQ. The chances for potential adverse events in the FQ group were 3.7 times more than the non-FQ group. The most commonly affected systems were the gastrointestinal followed by musculoskeletal (arthralgias of large joints or myalgias but no tendinopathy), skin, and central nervous systems.
Even the most studies supporting the use of fluoroquinolones to cure septic cases in kids when no other alternative is left agree with the bad effects of fluoroquinolones in kids (http://www.jwatch.org/em200712210000003/2007/12/21/should-we-prescribe-fluoroquinolone-antibiotics).
FQs are approved by FDA and EU (https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pubmed/21949152https://ec.europa.eu/health//sites/health/files/files/paediatrics/2012-09_pediatric_report-annex1-2_en.pdfhttp://www.ema.europa.eu/ema/index.jsp?curl=pages/medicines/human/referrals/Ciprofloxacin_Bayer/human_referral_000024.jsp) for use in children for emergency use for the treatment of inhalation anthrax, complicated urinary tract infections, and pyelonephritis and cystic fibrosis caused by Pseudomonas aeruginosa. WHO permits FQs (http://www.who.int/maternal_child_adolescent/documents/9241546700/en/) for the treatment of life-threatening bacterial infections, such as resistant tuberculosis, dysentery, and cholera, with the caution that uses these nasty antibiotics if the benefits outweigh the risk of arthropathy. American Academy of Pediatrics (AAP) suggest the use of FQs for treatment of multidrug-resistant infections for which there is no safe and effective alternative, and when parenteral therapy is not feasible and no other effective oral agent is available (https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pubmed/16951028).
 But who cares in India, pediatricians are prescribing these FQ drugs indiscriminately even giving any second thought and using it as the first line of treatment which otherwise should be the last option.

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