लगभग 13 महीने तक दिल्ली की सीमाओं पर चले किसान आंदोलन में किसान कितना जीता यह तो कहना मुश्किल है क्योंकि उस जमात के लगभग 700 सिपाही इस रण में खेत रहे परंतु अंततः वह तीन कानून जो तथाकथित लोकतांत्रिक तरीके से लाए गए बताए गए थे उन्हें वापस अलोकतांत्रिक तरीके से लेना पड़ा वैसे दिखावा उसमें भी लोकतांत्रिक था.
किसानों की इस जीत ने दिखा दिया के गैरजनतांत्रिक तरीके से लाए गए वो कानून जो बहुमत वाली सरकार लाई थी और पूरी तरह गलत भी नहीं थे परंतु उन्हें पूरी तरह वापस लेना पड़ा, अगर उन्हीं कानूनों को संसद में पूरी बहस करवा कर जनतंत्र की भावनाओं को सम्मान देकर लागू किया जाता जो पूरी तरह संभव था क्योंकि बहुमत सरकार के पास था और बहस के बाद भी विजय निश्चित थी परंतु ऐसा नहीं हुआ क्योंकि लोकतांत्रिक सरकार अलोकतांत्रिक होकर दम्भी / अहंकारी सरकार बन गई थी.
इस संघर्ष में हार हुई है तो उस दंभ की जो लोकतांत्रिक तरीके से प्राप्त बहुमत से प्राप्त हुआ और एक शाह अपने मन की बात करते-करते अपने आप को भगवान समझकर सभी के लिए अपने निर्णय थोपने लगा उसका अपना मन कहने लगा कि वह जो भी सोचता है वही सत्य है, वही शुभ है, उसी में सबका भला है परंतु वह भूल गया कि लोकतंत्र में जनतंत्र की भावनाएं तिरोहित करके कितना बड़ा भी बहुमत हो वह छोटा साबित होता है.
अगर संसद में संवाद करके यह बिल जनतांत्रिक तरीके से पास कराया जाता तो विपक्ष कभी भी एक होकर उस तरह किसानों का समर्थन ना करता जैसा उसने किया, कोई माने या ना माने कमजोर विपक्ष का किसानों के संघर्ष को पूर्ण समर्थन घमंडी सरकार के मन में वोट का भय उत्पन्न करने में सक्षम रहा और उसी भय ने एक सर्वशक्तिमान नेता का घमंड चकनाचूर कर दिया परंतु टूटते घमंड में भी उसने अपना वर्चस्व कायम रखते हुए दिखा दिया कि वह चाहे तो कुछ भी कर सकता है उसका कोई विरोधी उसके दल में कोई स्थान नहीं रखता.
#इस संघर्ष ने यह भी सिद्ध किया कि भाग्य कब किसे जननायक बना दे, किसे खलनायक बना दे यह नायकों को भी पता नहीं होता,
#किसान संघर्ष ने यह भी दिखा दिया कि निरंतरता ही जीत का रास्ता है.
किसानों के इस आंदोलन में वह इंसान जननायक बनकर निकला जिसे समझा जा रहा था कि वह सरकार का भेजा हुआ किसान संघर्ष को कमजोर करने के लिए एक खलनायक है शायद उस जननायक को भी यह एहसास नहीं था कि वह एक दिन इस मुकाम पर पहुंच पाएगा .
#कुल मिला कर इस संघर्ष में अहम/अहंकार की हार हुई है, लोकतंत्र से जन्मे अलोकतांत्रिक तरीके की पराजय हुई.
लोकतांत्रिक तरीके से भारी बहुमत से जन्मे बहुत से हिटलर पहले भी पैदा हुए हैं और उनका अंत भी दुखद हुआ है आज फिर हिटलरशाही को बहुत गहरा धक्का लगा है.
किसान संघर्ष एक ऐसे मुकाम तक पहुंचा जो हर संघर्ष को नसीब नहीं होता.
एक किसान ऐसे मुकाम तक पहुंचा जो हर किसान को नसीब नहीं होता.
एक नेता जननायक बना जो हर नेता का नसीब नहीं होता. https://www.linkedin.com/posts/bhojraj-singh-762784228_asxatu-aslatbatuataate-aslatdato-activity-6877870468792147968-DmSn
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