भारत में अल्ट्रासाउंड जैल में घातक जीवाणुओं का दूषण
भारत में ना केवल वैक्सीन, दवाएं और भोजन-पानी दूषित हैं बल्कि आप जब बिमारी के लिए जांच कराने जाते हैं तो वहां पर दूषित वस्तुओं और यंत्रों के संपर्क में आने पर आपको घातक संक्रमण लग सकते हैं।
https://www.slideshare.net/singh_br1762/epidemiological-characterisation-of-burkholderia-cepacia-complex-bcc-from-clinical-samples-of-animals-and-associated-environment
भारत में स्वास्थ्य जांच या फिर रोग निदान
के लिए अल्ट्रासाउंड कराने वालों की हालत यह हो सकती है कि
गए थे राम भजन को ओटन लगे कपास
या
नमाज छुड़ाने गए थे रोजे गले पड़ गए
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्सधान संस्थान इज़्ज़तनगर में डा. रविचंद्रन कार्तिकेयन ने डा. भोज राज सिंह (जानपदिक रोग के प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष) के निर्देशन में अपनी परास्नातक
(PhD) उपाधि के शोध हेतु कुल १५ ब्रांड के अल्ट्रासाउंड जैल के ६३ नमूने १७ विभिन्न प्रदेशों (आंध्र प्रदेश, आसाम, बिहार, गोवा,गुजरात, हरयाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्णाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड) के ऐसे अस्पतालों से जहाँ अल्ट्रासाउंड किया जाता है, से एकत्रित करके यह जांनने की कोशिश की कि उनमें कोई स्वास्थ्य के लिए हानिकारक जीवाणु तो नहीं है। ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि विकसित देशों में यह देखने में आया है कि अल्ट्रासाउंड जैल के लगभग २५% नमूने इस तरह के जीवाणुओं के वाहक पाए गए जो जीवाणु खतरनाक इन्फेक्शन कर सकते है। यह भी एक तथ्य है कि अल्ट्रासाउंड जांच के बाद कई रोगी नए-नए इन्फेक्शन से ग्रसित हो जाते हैं। विदेशों में गुणवत्ता जांच के शख्त नियमों के चलते २०-३०% अल्ट्रासाउंड जैल बाजार से वापस हो मांगा लिए जाते है। परन्तु भारत में इस तरह की किसी जांच का अल्ट्रासाउंड जैल के लिए प्रावधान नहीं है और ना ही अक्सर मरीज और डाक्टर ये ध्यान देते कि कितने मरीजों को अल्ट्रासाउंड और उसके बाद हुए ऑपेरशन कराने पर असाध्य रोग लग जाते हैं या उनके ऑपरेशन के घावों में इन्फेक्शन हो जाता है जिससे कि मरीजों को अनावश्यक ही अल्ट्रासाउंड जैल के दूषित होने की वजह से महंगी एंटी-बायोटिक दवाओं का सेवन करना पड़ता है।
डा. कार्तिकेयन को अल्ट्रासाउंड जैल के नमूनों की जांच में कई प्रकार के घातक जीवाणु अल्ट्रासाउंड जैल में मिले जैसे कि ६३ में से ३२ नमूनों में बर्खोल्डेरिया सेपेसिया (Burkholderia cepacian) समूह, और कुछ नमूनों में Burkholderia
gladioli, Pandorae apista, Stenotrophomonas maltophilia, Achromobacter
xylosoxidans and Ochrabacterium
intermedium। बर्खोल्डेरिया सेपेसिया समूह समूह में २० से भी ज्यादा जातियों के जीवाणु
शामिल किये गए हैं जिनमें मुख्य- मुख्य जातियां हैं B. cepacia, B. multivorans, B. cenocepacia, B. vietnamiensis, B. stabilis, B. ambifariaB. dolosa, B. anthina, B. pyrrocinia and B. ubonensis.
यह एक मौकापरस्त रोगाणुओं का समूह है जो अक्सर ऐसे लोगों को अपना शिकार बनाते हैं जो पहले से ही रोगी होते हैं, ऑपरेशन कराये होते हैं या फिर रोग की जांच के लिए अस्पताल जाते हैं,
बर्खोल्डेरिया सेपेसिया समूह के जीवाणु अस्पतालों में लगने वाले ज्यादातर इन्फेक्शन का कारण माने जाते हैं इससे अलावा भी ये सिस्टिक फाइब्रोसिस के मरीजों में मृत्यु का मुख्य कारण बनते हैं। बर्खोल्डेरिया सेपेसिया समूह के जीवाणुओं से हुए संक्रमण को सही होने में अक्सर ६ महीन या उससे भी ज्यादा का समय लग जाता है। ज्यादातर बड़े अस्पताल अल्ट्रासाउंड जैल बल्क पैक में खरीदते हैं और बर्खोल्डेरिया सेपेसिया समूह के जीवाणु सालों तक उसमे पलते-बढ़ते रहते हैं और इन्तजार करते रहते हैं अपने शिकार का। इस समूह के जीवाणुओं को जांच में समय ज्यादा इसलिए भी लगता क्योंकि ये धीमी गति से विकसित होते हैं और उनकी पहचान
के संसाधन आम प्रयोगशालाओं में उपलब्ध नहीं
होते ।
इस समूह के जीवाणु इतने जिद्दी होते हैं कि अक्सर डिसइंफेक्टेंट दवाओं में भी ज़िंदा रहते हैं और इनके इन्फेक्शन के इलाज के लिए अक्सर उच्च स्टार कि महंगी एंटीबायोटिक्स का ही इस्तेमाल होता है। इनसे बचने का आसान उपाय सिर्फ यही है कि अस्पतालों प्रयुक्त अल्ट्रासाउंड जैल या डिसइंफेक्टेंट दवाओं कि उचित गुणवत्ता जांच सुनिश्चित करके प्रशासन ऐसी दूषित वस्तुओं को समय रहते ही बाजार से हटवा दे और दवा निर्माताओं और अस्पतालों को इस तरह के संक्रमण होने पर जिम्मेदारी लेने को बाध्य करे। बर्खोल्डेरिया सेपेसिया नामक जीवाणु भारत में प्रयुक्त होने वाले अल्ट्रासाउंड जेल में उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्छिम तक बहुत से राज्यों में व्याप्त मिला है। क्या भारत में औषधियों की गुण-नियामक संस्था (CDSCO) इस और कुछ ध्यान देगी या फिर यूहीं चलता रहेगा?
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