विश्व गुरु भारत में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं
1. भक्त: जो अपने ईष्ट देवता या देवी की धार्मिक आस्था के हिसाब से पूजा अर्चना करता है. भक्त लोग भी किसी काम के नहीं होते, हाँ राजनतिक रूप से इनका फायदा अक्सर इनके इष्ट देव या देवी के निर्माता अवश्य उठा लेते हैं परन्तु अक्सर भ्रम में रहने के कारण ये लोटे किए तरह इधर से उधर भटकते रहते हैं.
2. अंधभक्त: जो किसी जीवित इंसान की पूजा अर्चना इस हद तक करता है कि यदि उसका स्वामी उससे गोबर खाकर मूत्र पीने के लिए भी कहे तो हिचकिचाता नहीं. ये अक्सर मध्यवर्गीय भारतीयों के समूह से होते हैं जो मौके की नजाकत को देखकर मेंढक की तरह रंग बदलने में माहिर होते हैं. बुद्धि होते हुए भी बुद्धि का प्रयोग करने से कतराते हैं .
3. सनातन अंधभक्त: यह वह अंधभक्त हैं जो अंधभक्ति की चरम सीमा से बहुत आगे आगे जाकर अपने स्वामी के एक आदेश को जैसे कि गोबर खाकर मूत्र पीने के लिए यदि एक बार कह दिया तो वह उसे हमेशा हमेशा के लिए ब्रह्म वाक्य मानकर अनुसरण करते रहते हैं तथा पीढ़ी दर पीढ़ी उस आदेश को प्रथा बनाकर कायम रखते हैं अर्थात स्वामी के आदेश को सनातन सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं. ये किसी जाती या समूह विशेष से नहीं होते बस ये अक्सर बुद्धि का प्रयोग नहीं करते या फिर इनके पास बुद्धि होती नहीं या फिर व्यक्ति पूजा में लुप्त हो जाती है.
सभी प्रकार के अंधभक्त राजनीतिक तौर पर बड़े उपयोगी होते हैं, बस एक बार इनके मन में भक्ति बीज बो दो और ताउम्र वोटों की फसल काटो. परन्तु बीज बोने के लिए पहले इनके मन में अतुल भय जैसे की धर्म हानि का, अधर्मी होने का, लुट जाने का, नौकरी जाने का उत्पन्न करना होता है फिर उसमे धार्मिकता का तड़का लगाते हुए एक हाथ से से धार्मिक उन्माद के बीज बोने होते हैं, और दूसरे हाथ से मुफ्त रासन जैसा कोई उपयुक्त खाद डालना होता है, बड़ा कठिन काम है पर मन मोहने वाली बातें करते करते (झूठ बोलो, बार बार बोलो, इतना बोलो को सुनने वाले को झूठ और सच में ऐसा भ्रम हो जाए के सच झूठ और झूठ सच नजर आने लगे ऐसे के जादूगर और जमेरे का खेल हो) काम हो जाता है.
4. चमचा: मनुष्य की वो प्रजाति जो किसी की नहीं, बस सत्ता के हमेशा पास और साथ, सत्ता के केंद्र में, ये वो हैं, जहाँ पर देखी तवा परात वहीँ गुजारी साड़ी रात. ये अक्सर अपने आप को कुलीन या उच्चच्वर्गीय बताते हैं, बड़े चतुर होते हैं कभी भी भक्त या अंधभक्त नहीं बनते बस बनने का दिखावा करते हैं, इनसे हमेशा सावधान रहने की हिदायत दी जाती है पर शायद ही आजतक कोई इनकी चुपड़ी रोटी खाने से बच पाया हो .
चमचा प्रजाति आपको खुश रखते हुए डुबाने का काम करती है बशर्ते उसके मन में जीवन मरण का इतना भय उत्पन्न न कर दिया जाए के वे अंधभक्त बनने के लिए तत्पर ना हो जाएँ परन्तु इनपर अंधभक्ति चश्मा ज्यादा देर ठहरता नहीं.
वैज्ञानिक डॉ. बूरा के अनुसार
5. जाति: यह वह अस्त्र है जिसके द्वारा बडे-बडे कबीलों को वर्ण वर्गीकरण के जाल में फँसाकर, उन्हेँ अयोग्य होने का जन्मसिद्ध अंतरमन तक अहसास करवाकर, संसाधनों एवं पदों से दूर रखा जाता है (पिरामिड को उल्टा किया जाता है).
6. धर्म: ऐसा औजार जिसके द्वारा विभिन्न जातीय समूहों को संगठित कर उन्हें खतरे का अहसास करवाकर उनका प्रतिनिधित्व किया जाता है और संसाधनों/ पदों पर कब्जा किया जाता है
प्रतिक्रिया करने वाले महानुभाओं से प्रार्थना कि कुछ परिभाषाएं वे भी निर्मित करें और भविष्य में मैं भी उनके लिए प्रयास करूंगा, समय के साथ इनमें विस्तार होता रहेगा, कोई ब्रह्म वाक्य थोड़े ही है कि बदला ना जा सके या उसमे सुधार की संभावना ना हो मनुष्य निर्मित हर चीज में सुधार की हमेंशा संभावना रहती ही है।
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