Thursday, January 2, 2025

My Voluntary Retirement Speech मेरी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति पर मेरा व्याख्यान

My Voluntary Retirement Speech मेरी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति पर मेरा व्याख्यान 

मैं आज (31-12-2024) इस नौकरी को अलविदा कह रहा हूं परंतु इस नौकरी ने मुझे बहुत कुछ दिया है, इतना कि बयां करना मुमकिन नहीं है.

 हुआ है शह का मुसाहिब फिरे है इतराता, वगर्ना शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है।

इसलिए धन्यवाद कृषि अनुसंधान परिषद को, इस संस्थान को, और हमसफरों को जिन्होंने मुझे ऐसे मौके दिए कि मैं कह सकता हूं कि मेरी भी कुछ बात है।

 लोग कहते हैं मेरी वजह से कई बार IRC कई-कई घंटे ज्यादा खींच गई है, आज आखिरी बार भी थोड़ा झेल लेना, आज के बाद इस महफिल से ये दीवाना चला जाएगा, शम्मा रह जाएगी परवाना चला जायेगा।

 साथियों, देवियों और सज्जनों यह सच जो है ना इसकी बहुत भारी तपिस होती है, यह वो आग है जो सब कुछ जलाकर भस्म कर देती है, यह इतना कड़वा है कि इसका स्वाद जिंदगी भर जाता नही, इसलिए मेरी मेरी सलाह है कि सच बोलने से पहले सोच लें क्योंकि इसकी आग में जलना ही पड़ता है, अगर जलने के लिए हिम्मत है और जज्बा है, तो इसका स्वाद बहुत मीठा है।

आज मैं थोड़ी सी बातें विज्ञान से इतर करना चाहता हूं अच्छी ना लगे तो क्षमा कर देना। 

मै लगभग साढे 33 साल की इस और साढे 3 साल की दूसरी नौकरियों में,

थोड़ी सी हस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूंयही क्या कम है मैं अपनी पहचान बचा पाया हूं

अन्यथा 

यह दुनिया बड़ी जालिम है बेवजह भी सजा दिया करती है। साथ बैठे परिंदों को भी अक्सर उड़ा दिया करती है।।

बेशक ऐसे भी शख्स होते हैं कई, झुकते नहीं वे टूट जाते हैं।, ऐसे भी वक्त आते हैं कई कि अपने ही हमको लूट जाते हैं।।

परंतु हमारी कोशिश में कशिश होनी चाहिए और हौसला बुलंद होना चाहिए, फिर आप सैयद सादिक हुसैन शाह की तरह कह सकते हैं

तुन्दिये वादे मुखालिफ से ना घबरा उकाब, ये तो चलती है तुझे ऊंचा उड़ाने के लिए।

या फिर चर्चिल की तरह

Kites rise highest against the wind, not with it.

परंतु हौसला कहां से लाएंगे, वह जज्बा तो आपका अपने खून में बहना चाहिए, कुछ करने के लिए लहू में जोश होना चाहिए।

ग़ालिब कहते हैं

'रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल, जब आँख ही से टपका तो फिर लहू क्या है

परंतु यदि उकाब के पंख कमजोर होंगे और पतंग डोर विहीन होगी तो कुछ नहीं होगा। आपका लहू बहाना बेकार जाएगा। 

 

पर आपके पंख कहां हैं- आपका परिवार, आपके मित्र ही वह पंख हैं जो आपको परवाज भरने का हौसला देते हैं और डोर कहां है- आपकी पत्नी, आपके बच्चे जो आपको एहसास दिलाते हैं की एक जहाज है जहां पंछी लौट कर सकता है। पंख कमजोर तो उकाब गिरा, डोर टूटी तो पतंग गई। 

आपके पास हौसला है, पंख हैं, और डोर जुड़ी हुई है, और फिर छोड़ दो सब कुछ उस पर जो होते हुए भी नहीं है।

मुद्दई लाख बुरा चाहे पर क्या होता है, वही होता है जो मंजूरे है खुदा होता है। या 

जाको राखे साइयां मार सके ना कोई, बाल बांका कर सके जो जग बैरी होय।

 

परंतु जब आप नौकरी करते हैं तो आपका एक साहब होता है, और तुलसीदास जी ने साहब के बारे में कहा है-

नहीं कोई अस जन्मा जग माही, प्रभुता पाई जाही मद नही।

मद तो पशु को भी बेकाबू कर देता है, हिंसक बना देता है, विध्वंसक बना देता है। और इंसान तो कुर्सी के मद में अपने आप को भाग्य विधाता समझने लगता है।

एक निदेशक महोदय तो कहते थे कि सच वह होता है जो ऊंची कुर्सी पर बैठकर बोला जाता है, और ऊपर वाले (मेरे हिसाब से ईश्वर परन्तु मदमस्त लोगों के हिसाब से वे स्वयं) में बड़ी ताकत होती है जैसे की तुलसीदास जी कहते हैं 

समरथ को नहीं दोष गोसाईंरवि पावक सुरसरि की नाइं।

इसीलिए यह जो नौकरी-चाकरी है ना,

एक आग का दरिया है और डूब के जाना है। और इस डूबते-उतारने का खेल ही जिंदगी है।

आखिर मेरे लिए भी इस आग के दरिया का किनारा आज आ ही गया है।

What is retirement?

My views: वानप्रस्थ, विचरण का समय, कभी यहाँ कभी वहां, डोर जो खींचे उसी की तरफ

और सफर में, महाकवि गोपाल दास नीरज कहते हैं कि

जितना कम सामान रहेगा, उतना सफ़र आसान रहेगा

जितनी भारी गठरी होगी, उतना तू हैरान रहेगा ।।

So it is the time to shed your burden, to lose your baggage, to make journey comfortable.

Some people think that after their retirement all will be doomed, the time ahead is gloomy and world is losing the lamp they are holding (without knowing either it is giving light or darkness).

मैं जो तेरी महफ़िल से चला जाऊँगा, हजारों चराग़ जलाने पड़ेंगे रौशनी के लिए।

Meer Anees, a Sindhi poet wrote:

दुनिया भी अजब सरा-ए-फ़ानी देखी, हर चीज़ यहाँ आनी-जानी  देखी। 

जो आ के न जाए वो बुढ़ापा देखा, जो जा के न आए वो जवानी देखी।।

And the reality is:

क्या किसीका जलवा कायम रहा है सदा, एक बार सोचो और बताओ यारो।

वो तुर्रम खां जो अपने को समझते थे पैगंमबर और मानते थे ख़ुदा कभी,

तन्हा घूमते हैं आज शहर की गलियों में, और मिल गए ख़ाक में सभी।।

 

Habeeb Zalib wrote

कोई ठहरा हो जो लोगों, जरा बताओ मुझको, वो कहाँ हैं कि जिन्हें नाज़ बहुत अपने तईं था

अब वो फिरते हैं इसी शहर में तन्हा लिए दिल को, इक ज़माने में मिज़ाज उन का सर--अर्श--बरीं था ।।

Bertrand Russel, a British Philosopher, concludes in his short story, "The Theologian’s Nightmare", Man sometimes assumes himself the centre due to ignorance, and wastes his and others life in proving his importance”. It is a story about dream of a famous wise priest (Dr. Thaddeus) who dies and reaches at the door of heaven and then understands the reality.

Luckily, I am not a wise man. सब कुछ सीखा मैंने ना सीखी होशियारी, सच है दुनिया वालो मैं हूँ अनाड़ी।

What is VRS?

Sahir Ludhianavi writes:

मैं पल-दो-पल का शायर हूँ, पल-दो-पल मेरी कहानी है

पल-दो-पल मेरी हस्ती है, पल-दो-पल मेरी जवानी है

कल और आएंगे नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वालेमुझसे बेहतर कहने वालेतुमसे बेहतर सुनने वाले  

Thus voluntary retirement is स्वैच्छिक वानप्रस्थ, the wish and time to clear the path for new generations to come and take humanity to further heights.

 

Why am I here? Destiny!!

Naturally, you called me to bid farewell to my VRS, and I am with you.

But it is not the whole truth; the further details are hidden in sacrifices made by my Mother (Shanti Devi) and Wife (Geeta Singh) and a dream.

 

I was born into a non-literate family and was a naughty boy. My mother beat me to send me to school, and fought my father to send me to a hostel to do my High school and Senior Secondary, she worked hard to support my studies throughout.

 

A dream, in class six, we used to read science through the new Syllabus, “Aao Karke seekhen”, which made me dream of being a scientist one day. But I never wanted to be a veterinarian or doctor but a biochemist to be a researcher. One of my friends, Dr. Kaushal Kumar, poked me to fill out the entrance forms for Mathura Veterinary College and CPMT, and I opted for first come first join.

 

My wife: I married at 23, just after BVSc and AH, and was a successful veterinarian. She forced me to do an MVSc so we may have a settled life (but destiny was different). She toiled a lot and stayed at my ill-equipped village house. She always supported my studies, research, and becoming a scientist. She took all responsibility for raising our two intelligent daughters and much more.

 

What am I?

A son, a husband, a father, a grandfather, a scientist, an epidemiologist, a microbiologist, an activist, a writer, a myth-buster, and much more.

I am a satisfied person with an insatiable desire to do research, and after all a winner.

                But in reality, one is not one what he or she thinks or describes him or herself. You are the person that others describe you.

1.       My neighbours in childhood described me as Vagabond and Naughty.

2.       My teachers described me as an intelligent and nutty student.

3.       My classmates and many at the workplace called me arrogant.

4.      The ICAR Headquarters people called me, Fidayeen and Bhasmasur.

5.   One of the IVRI directors told ICAR that I teach revolution and another described me at many forums, as Resolute and adamant.

6.   One of the JNU Professors wrote an article on me, “A Rebellious Scientist Who Challenged the Myths”.

7.     FAO Executive Secretary (Dr. Sampson Keith) wrote about me, “Your courageous stand is extremely well respected  - the world owes you a debt, as do all scientists and persons of conscience, to let the truth be spoken, and ensure light shines in the darkness”.

8.     Animal 24-7 (an IRS 501(c)(3) non-profit organization incorporated in Washington state, USA), wrote an article on me, “Kill the messenger!”

9.     Daily Mail (UK and India) described me as a Whistleblower and wrote an article on me, “QUANTUM LEAP: Foot and Mouth scam proves we must protect our whistleblowers”.

10.  And recently Dr. Tarun Shridhar who visited our Institute on 7th December 2024 described me as, “A bold and truthful scientist who has not learned the Politics.”

 

All adjectives attached with me remind me a Jagjit Singh’s Gazal;

यह जो जिंदगी की किताब है, ये किताब भी क्या किताब है

कहीं छाँव है, कहीं धूप है, कहीं और ही कोई रूप है

चेहरे इसमें छुपे हुए, एक अजीब सी ये नक़ाब है

यह जो जिंदगी की किताब है, ये किताब भी क्या किताब है

Why am I like I?

मेरे लिए मेरा देश और देशवासी हमेश सर्वोपरि रहे हैं जिसके लिए मैं अपने और अपने परिवार को बहुत पीछे रखा है। और जब भी समझूंगा कि देश के लिए समर करने का समय आया है तो देर होने की संभावना नहीं है। 

बचपन एक प्रार्थना गाते थे, सरकारी स्कूल में 1961 से ही गाई जाने वाली एक प्रसिद्ध प्रार्थना (लेखक मुरारीलाल शर्मा बालबंधु / श्री परशुराम पान्डे)

वह शक्ति हमें दो दयानिधे कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ, जिस में हमने में जन्म लिया, बलिदान उसी पर हो जावें 

जो है अटके भूले भटके उनको तारें खुद तर जाएँ, वह शक्ति मुझे दो दयानिधे कर्तव्य मार्ग पर डट जाएँ।।

मेरे जीवन में कोई दिन नहीं आया जब मैं इस कविता से किनारा कर पाया, उसी का असर है की मैं ऐसा हूँ और ऐसा ही रहने का प्रयास करूँगा, जब कभी भी मेरे लायक कोई काम रहेगा मैं अवश्य ही उसे करूँग।

My uncle (Mr. Prem Singh) taught me not to come home crying for my weakness through a hot slap when in class 1st I was coming home from school and weeping because I was beaten by a class 5th boy.

            My Warden in 9th class, Mr. KN Singh, told me that I can do anything I wish, because I am too intelligent to achieve my wish, provided I can morph myself to fulfil my wish.

            The psychoanalyst team that examined me for a week in class 9th told me and my teachers that I have an IQ of 148 and may be a successful writer but my mother wished me to be a doctor and my father to be a veterinarian.

            My friends, Dr. Hardeo Singh, Dr. Kaushal Kumar, Dr. RP Yadav, and Dr. VK Chaturvedi kept me saying that I am a winner and no one can defeat me, and they supported me throughout, to date.

And my advocate (Dr. Sandeep Pahal), who came with his team to help me in dire need (when the Council disowned me) often tells people that I made him क्रांतिकारी, and besides doing his law practice he runs now a U-tube channel, सच.

            Many of my directors thought that they could destroy me and my career, and can teach me the lesson they wanted, or can change me. One of my first Managers told me, शादी के बाद सुधर जाओगे, another manager told me, बच्चे होंगे तब अकाल आएगी. लेकिन ना सुधारना था, ना अकल आनी थी, सारे प्रयास और भविष्यवाणियां गलत हो गईं। Even they can’t change my body weight, it was 72 Kg at the time of passing of BVSc and is still the same.

 

इस अवसर पर मेरे एक मित्र ने ये कविता भेजी है

आहिस्ता चल जिंदगी,अभी कई कर्ज चुकाना बाकी है

कुछ दर्द मिटाना बाकी हैकुछ फर्ज निभाना बाकी है।

रफ़्तार में तेरे चलने सेकुछ रूठ गए कुछ छूट गए

रूठों को मनाना बाकी हैरोतों को हँसाना बाकी है

कुछ रिश्ते बनकर टूट गएकुछ जुड़ते -जुड़ते छूट गए

उन टूटे -छूटे रिश्तों केजख्मों को मिटाना बाकी है।

कुछ हसरतें अभी अधूरी हैंकुछ काम भी और जरूरी हैं

जीवन की उलझी पहेली को, थोड़ा सुलझाना बाकी है।

जब साँसों को थम जाना हैफिर क्या खोना क्या पाना है

पर मन के जिद्दी बच्चे कोयह बात बताना बाकी है।

आहिस्ता चल जिंदगी ,अभी कई कर्ज चुकाना बाकी है

कुछ दर्द मिटाना बाकी हैकुछ फर्ज निभाना बाकी है

 

मेरी ख्वाहिश है

ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो

अपना पराया मेहरबां ना-मेहरबां कोई न हो ।

जा कर कहीं खो जाऊँ मैं, नींद आए और सो जाऊँ मैं

दुनिया मुझे ढूँढे मगर मेरा निशां कोई न हो ।

चलना है सब से दूर दूर अब कारवां कोई न हो

अपना पराया मेहरबां ना-मेहरबां कोई न हो,

ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो ।

And in the End:

मन की किताब से तुम   मेरा नाम ही मिटा देना 

गुण तो ना था कोई अवगुण मेरे भुला देना ।। 

Thank you all.

Thanks to all my family members, professional family members (IVRIans), and friends who supported me throughout and also those who criticized me, otherwise I would have not been what I am.

मैं अपनी और अपने परिवार जनो की और से मेरे सभी हमसफरों को जो आज यहाँ सेवानिवृत्त हो रहे हैं शुभकामनाएं अर्पित करता हूँ कि वे अपने परिवार के साथ स्वस्थ, प्रसन्न और इच्छित आयु प्राप्त करे, शतायु हों और जटायु हों।   और उन सभी का स्वागत करता हूँ जो इस संस्थान में नवागत हैं और कामना करता हूँ कि उनके सपने साकार हों।

धन्यवाद, सभी का आभार/ हार्दिक धन्यवाद मुझे यह अवसर देने के लिए. खासतौर से स्टाफ वेलफ़ेयर के अध्यक्ष, सचिव एवं उन सभी का जो इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए प्रयास किये हैं और निरंतर प्रयासरत हैं।