Friday, October 27, 2023

Patent of Soul: आत्मा का एकस्व

 Patent of Soul: आत्मा का एकस्व

  A real-time story just started

 A scientist named R-1 for the first time not only isolated the soul but characterized it to the extent of knowing its all controls to direct its movements, transfers from one body to another, and edit its characteristics like its sexual identity, carrying capacity for good and bad deeds, and length of life remotely, and methods for storing souls en mass. He got it patented and finally, after a long legal fight using legal and illegal means (Shaam, Dand, Bhed). Finally, he is the new God, God-R. The God-R has all human weaknesses, ambitions, vices, and whatnot.  He knows that the body is made of short-term decaying material with an optimum age of 35 years and the soul is made up of energy-quants, also degradable with a half-life of 3000 years. Another scientist S-1, who patented the technique to keep the body age fixed at 35 years for 300 years is a collaborator of R-1 and his new name is God-S. God-R has already programmed the souls of all National and International leaders, many intellectuals, intelligent scientists, business tycoons, social workers, and philanthropists to achieve a final Goal, the Kingdom-R or Republic of God. It is an amazing world that exists in the Solar time zone. However, a flaw was noticed by God-R that some of the scientists with a group of a few business tycoons had already flown away from the solar time zone in the short period of the long legal and illegal fight for the patent of Soul. Those absconder souls are away from the God-R system's reach and being in celestial space is also beyond aging and death. Those absconders are searching for a suitable planet to land on and be mortal again, they think that mortality is essential for the cycle to move towards the light of the initial God, and trying to find the abode of the Initial God, that creates the mortal bodies and immortal souls. The time of chaos is all over the Earth and New World Order rules are under framing and will be reviewed soon to tame 8 billion human souls and trillions and trillions of other souls in the Solar time zone. Time is mostly standing still but sometimes it goes back (past) and other time forth (future) to see the new developments, soon, maybe a hundred years in the Solar time zone or maybe a few seconds in the Ruber Time zone where the absconders are roaming to settle. Time will keep on updating you till all the souls are trained to act in harmony for the Goal, thereafter, the Solar time may be killed or be distorted or maybe controlled to move as per the wish of the God-R and S.

Tuesday, October 24, 2023

मेरा राम, तेरा राम और हमारा रावण

 मेरा राम, तेरा राम और हमारा रावण 

      अजीब सा वक़्त है, रावण विजयदशमी मना रहे हैं और राम दर दर भटक रहे हैं. क्या सारे मिथक हमें भरमाने के लिए ही रचे गए हैं, क्या हमें अन्याय को बार-बार सहने के लिए ही राम होने और राम बनने को कहा जाता है? रावण तो अमर है, हर रोज राम रावण से हारता है इस भ्रम के साथ कि शायद कल मैं जीत जाऊं, परन्तु क्या कभी कल आता है इस जद्दोजहद में राम भ्रमित भी होता है सोचता है कि कहीं वही तो रावण नहीं, कहीं उसका नामकरण ही तो गलत नहीं हो गया है? राम कल भी पराजित था, आज भी है, परन्तु कल किसने देखा है वो तो आता ही नहीं. राम ने हमेशा समाज के लिए संघर्ष किया है, परन्तु समाज ने उसके ऊपर हमेशा रावण को ही वरीयता दी है, कारण स्पष्ट है समाज दबंगो से कल भी डरता था, आज भी डरता है, उसी को अपना सब कुछ सौंपता है जिससे उसे डर लगता है, भले मनुष्य को या कहो राम को कल भी समाज ने तिरस्कृत किया था आज भी करता है. हाँ यह अवश्य है कि सभी एक दूसरे को राम बनने की शिक्षा देते हैं, राम की दुहाई भी देते हैं, परन्तु कभी स्वयं को राम बनाने का प्रयास नहीं करते. अगर सभी राम बन जाएंगे तो समाज का ताना बाना उसी तरह छिन्न भिन्न हो जाएगा जैसे सभी के रावण बनने पर.  

       लोग कहते हैं कि रावण एक प्रवृत्ति है, हमारी पापी प्रवृत्ति, उसी तरह जैसे हमारे अंदर कभी-कभी राम प्रवृत्ति जाग्रत हो जाती है, और हम भले मनुष्य बनने का प्रयास करते हैं परन्तु राम प्रवृत्ति बहुधा रावण प्रवृत्ति से हार जाती है और हम करने लगते राम होने का ढौंग या कहो हमारे अंतर्मन में खेली जाने लगती है रामायण और जब यह अंतर्द्वंद और बढ़ता है तब जाग जाता है कंस और दुर्योधन महाभारत शुरू करने को, और राम बन जाते है रणछोड़ जी, कभी अपनी कायरता छुपाने को, कभी शांति स्थापना का ढौंग रचने हेतु यह कहकर कि धर्म की रक्षा करने के लिए अधर्म से दूर जाना ही उचित है, परन्तु जब फिर तन और मन में शक्ति संगृहीत होती है तो मन मचल उठता है दुष्टों का संहार करके शान्ति और धर्म स्थापना के लिए. परन्तु क्या आप जानते हैं कि छणिक राम, छणिक रणछोड़ और छणिक कृष्ण जो हमारे अंतर्मन में जागा था वह देखते देखते ही रावण कब बन जाता है पता ही नहीं चलता, और हर राम, कृष्ण, दुर्योधन और रावण की तरह इस संसार से विदा लेते हैं शायद एक और राम-रावण युद्ध या  महाभारत लड़ने के लिए. 

     कौन राम है, और कौन रावण, कौन कौरव हैं, और कौन पांडव, कौन कंस और कौन कृष्ण, आज तक भी हमारे मन में स्पष्ट नहीं है क्योंकि ये सब तो मैं ही हूँ सनातन रूप से भ्रमित. यदा-कदा ज्ञानियों ने कहा भी कि ये सब हमारे अंदर ही बसने वाली भावनायें, इच्छाएं और भ्रम हैं. सत्य और सनातन जैसी सिर्फ एक ही चीज है, समय चक्र. समय का ही फेर है जो कभी राम रावण बनके सामने आता है तो कभी हमारा धर्मराज हर चीज को जीतने की चाह में जुआ खेलते हुए उसे भी लुटा देता है जो उसका था ही नहीं, धर्मराज कब शकुनि-मन के भ्रमजाल में फंसकर अधर्मी बन जाता है धर्म को भी पता नहीं लगता.

     जहाँ तक धर्म की बात है वह तो एक ही है, भूख, वह जैसी होगी वैसा ही स्वयं का धर्म प्रकट करेगी. भूख के प्रकार अनंत हैं तो धर्म भी अनंत हैं, जो आज धर्म है कल वो निश्चित ही धर्म नहीं रहेगा, यह तो संभव है कि वह अधर्म न बने परन्तु मिटना तय है. 

          धर्म अगर राम है, राम होना है, और राम होने का प्रयास है तो वो तेरा अलग है, मेरा अलग है, और उसका अलग है, परन्तु हमारा रावण भिन्न नहीं है, वह एक ही है, एक ही जो सनातन समय से अपरिवर्तित है, हाँ वह रूप बदलकर कभी मैं हूँ, कभी तू है, कभी माँ, कभी बाप, कभी पुत्र, कभी पुत्री,   कभी पति, कभी पत्नी, कभी भाई, कभी बहन, कभी दुश्मन, कभी दोस्त, कभी साधू, कभी संत, कभी रागी तो कभी बैरागी.  पता नहीं कितना मायावी है रावण, ना कल के राम को पता था न आज के. अतः मित्र तू जो है वही प्रकट हो जा, अगर जैसा है वैसा ही प्रकट करने का साहस जुटा पाया ना तो तू राम रहेगा न ही रावण बन सकेगा, रह जाएगा एक समय के फेर में भटकता हुआ मनुष्य, एक बिन मंजिल का राही, क्योंकि मंजिल तो रावण होते हुए भी राम दिखने की है जब वही नहीं रहेगी तो -----.


एक तेरा राम है, एक मेरा राम है

इस जग में जितने नर-नारी हैं उतने ही भगवान् हैं 

चाहे जितने राम हैं, चाहे जितने भगवान् हैं 

रावण सबमें एक है, और उसका उसे गुमान है .

राम, कृष्ण और और भगवान् बदलते रहते हैं 

रावण ही सत्य है, अजर है, अमर हैं 

वही सनातन है 

यह तुम्हे भी पता 

मुझे भी गुमान है.

क्योंकि, 

तेरा भी एक राम है, मेरा भी एक राम है, परन्तु 

रावण सब का समान है.

यदि रावण मरा तो सब कुछ समाप्त

अतः हम हर वर्ष रावण को मारने का नाटक करते हैं.

जिससे कि रावण सनातन बना रहे. 

Saturday, October 14, 2023

How to break the vicious cycle of low IQ, poverty, and hunger in India?

 How to break the vicious cycle of low IQ, poverty, and hunger in India?


The average IQ of Indians (76.24) is well below that of other countries https://lnkd.in/dHD5DbA9 and the second lowest (just a step above Nepal) in Asia & it may be the reason behind Andhbhakti, worship of Babas, politicians, poverty & hunger (https://lnkd.in/d4VgiDZ4) in India. We may criticize indices at one or another pretext for n number of reasons, but introspection to act is the solution to breaking the vicious cycle of low IQ, poverty, and hunger in India. However, no one is interested in breaking the cycle because those at the top and at the bottom don't need and those under the umbrella of the Gaussian Bell, they can't do it. 
               India is a democratic country and the Government is elected by the majority (the average IQ people) under the Gaussian Bell and is run by the outliers on the right end of the Gaussian Bell Curve to exploit the majority. Having a huge population, in India, there are millions of right-end outliers, many of them either leave the country or keep quiet but many (not all) target to exploit the majority and become Doctors, Engineers, IAS, IPS, Babas, Politicians and Administrators to keep the Nation Hungry, the main reason behind low IQ, and thus the poverty and hunger vicious cycle keeps on moving, it is going on for ages since Sanatan time and seeds are sown sometimes a few thousands years ago when the majority was barred from education and healthy living.

Suggested Solution: 
1. Quality and impartial free education to all. 
2. Abolishment of Jati-Pati at all levels
3. Propagation of Religionlessness or impartiality to all religions
4. A Uniform Civil Code that makes all citizens equal
5. Abolishment of VIP and VVIP culture
6. Abolishment of freebies or free ration. Instead, it may be better to make payment for work than payment without work.
You may suggest more in the comment box to improve our national strength.

Thursday, October 12, 2023

तुलसी के पत्तों पर रहते हैं अच्छे (लाभदायक) एवं बुरे (हानिकारक) दोनों प्रकार के जीवाणु

 तुलसी के पत्तों पर रहते हैं अच्छे (लाभदायक) एवं बुरे (हानिकारक) दोनों प्रकार के जीवाणु

    तुलसी एक भारतीय महाद्वीप में होने वाला एक उगने वाला छोटा झाड़ीदार पवित्र पौधा है जिसे बहुत से सनातन हिन्दू परिवारों में नियमित रूप से पूजा जाता है. इसके पूजे जाने के धार्मिक और वैज्ञानिक कारण हैं. धार्मिक कारणों को एक और रखकर यहाँ सिर्फ तुलसी के औषधीय गुणों कि बात करते हैं. तुलसी के पौधों को पादप जगत की रानी या फिर प्राकृतिक चिकित्सा की माँ के रूप में जाना जाता है.  पूर्व में किये गए अध्ययन बताते हैं कि तुलसी के तेल और इसके पत्तों के रस में बहुत से रोगाणुओं को मारने की शक्ति है, तुलसी के नियमित सेवन से आँतों में रहने वाले जीवाणुओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन आता है, इसका सेवन आपको तनाव मुक्त करता है, शरीर में सूजन को काम करता है, शर्करा के स्टार को नियंत्रित करता है, यह अपने प्रतिउपचायक या ऑक्सीकरणरोधी (एंटीऑक्सीडेंट) गुणों के कारण आपके यकृत (लिवर) को शक्ति देता है तथा कैंसर से भी बचाता है. मछलियों में हुए एक शोध में पाया गया कि तुलसी का मछलियों में बढ़वार को प्रेरित करता है, रोगरोधक शक्ति बढ़ाता है, तथा रोगाणुओं को मारता है. तुलसी का तेल एक बहुत शक्तिशाली जीवाणुनाशक सुगन्धयुक्त तेल है, तुलसी के पत्ते या उनके रस का सेवन विषजनित रोग, पेट दर्द, सामान्य सर्दी खांसी, सरदर्द, मलेरिया, ज्वर, तनाव, अस्थमा, कोलेस्ट्रॉल की  अधिकता, ह्रदय रोग, उलटी या मतली, और सूजन रोकने और कम करने में कारगर माना गया है.

     इतने सब गुण होते हुए भी स्यूडोमोनास नामक जीवाणु इस पौधे में रोग उत्पन्न करके इसकी पत्तियों में चित्ती रोग उत्पन्न करके इस पवित्र पौधे को नष्ट कर देता है. सच ही कहा गया है कि हर शेर को सवा-शेर मिल ही जाता है, और जो आया है उसे देर-सबेर जाना ही होता है.  

       तुलसी के पत्ते अक्सर चाय या काढ़ा बनाने में प्रयुक्त होते हैं और इस प्रक्रिया में सभी प्रकार के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं, परन्तु यदि आप तुलसी के पत्ते स्वास्थ्य लाभ के लिए कच्चे ही खा रहे हैं या प्रसाद, पंचामृत, चरणामृत आदि बनाने में प्रयोग कर रहे हैं या फिर पत्तियों रस निकलकर प्रयोग कर रहे हैं तब आपको यह जान लेना चाहिए कि तुलसी के पत्तों पर बसने वाले रोगाणु आपके इन्तजार में बैठे हैं और पवित्रता आपको रोग ग्रसित होने से नहीं बचा पाएगी. 

        हाल ही भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली के जानपदिक रोग विभाग में हुए अनुसंधान में बरेली के छः स्थानों (आईवीआरआई, सनसिटी, महानगर, राजेंद्रनगर, भोजीपुरा, नार्थ-सिटी)  112 घरों में लगे रामा तुलसी के पौधों से पत्तियों के नमूने एकत्रित करके उनपर उपस्थित लाभदायक और हानिकारक जीवाणुओं का अध्ययन किया गया. तुलसी की पत्तियों के ६०.७१% नमूनों में २३ जातियों के लाभदायक जीवाणु तो ९६.४३% नमूनों में ७३ जातियों के रोगाणु पाए गए. जो कुल चार रोगाणुरहित नमूने मिले उनमें से तीन महानगर और एक भोजीपुरा के घरों से लिए गए थे. आईवीआरआई से लिए गए नमूनों में अच्छे जीवाणुओं के मिलने की सम्भावना सबसे कम पाई गई. 

             अध्ययन से विदित हुआ कि तुलसी के पत्तों पर १०६ प्रकार के जीवाणु उपस्थित थे. कुल ५७९ विलगन (आइसोलेट्स) जो १०६ जातियों में विभाजित किये गए उनमे सबसे ज्यादा नमूनों में (४३ नमूनों में)  पैंटोइया एग्लोमेरैंस  (Pantoea agglomerans) जाति  के जीवाणु थे, इस जाति के जीवाणु मनुष्यों और पशुओं में विविध  प्रकार के रोग और गर्भपात  का कारण बन सकते हैं, दूसरे स्थान पर रहे २१ नमूनों में मिले वर्जीबेसिलस पेंटोथेनटिकस (Virgibacillus pantothenticus) जाति  के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक जीवाणु, इसके बाद १८ नमूनों में मिला एक अन्य स्वास्थ्य कारक बेसिलस कोएगुलेन्स (Bacillus coagulans) जाति का जीवाणु, फिर १७ नमूनों में मिला खाद्यजनित विषुत्पादक बेसिलस सीरियस (Bacillus cereus) जाति  का जीवाणु, १६ नमूनों में एक डेरी उत्पादों और फेरमेन्टरों आदि में सड़न पैदा करने वाला जीओबेसिलस स्टीअरोथेरमोफिलस (Geobacillus stearothermophilus), १३ नमूनों में एक बहुत ही हानिकारक और न्यूमोनिया कारक क्लेबसिएल्ला नुमोनी (Klebsiella pneumoniae) जीवाणु, १२ नमूनों में एक थोड़े कम हानिकारक सिट्रोबैक्टर फ्रूअण्डी (Citrobacter freundii), और लायसिनिबेसिलस स्फेरिकस (Lysinibacillus sphaericus), ११ नमूनों में मिला एक बहुत ही हानिकारक जीवाणु जो अक्सर अस्पतालों में भर्ती रोगियों में संक्रमण करता है, ऐसिनेटोबेक्टर काल्कोऐसेटिक्स-बौमानी (Acinetobacter calcoaceticus-baumanii), और बहुत ही जाना-माना एस्चेरीचिया कोलाई (Escherichia coli) और जेनोरबडस बोविएनि (Xenorhabdus bovienii), जो अक्सर पेट के कीड़ो से फैलने वाला गर्भपात कारक है और कई अन्य रोग उत्पन्न करता है.  

 तुलसी कि पत्तियों के कुछ नमूनों पर और भी घातक रोगाणु जैसे ऐरोमोनस बेस्टीएरम (Aeromonas bestiarum), ऐरोमोनस सुबर्ति (A. schubertii), ऐरोमोनस ट्रोटा (A. trota), ऐरोमोनस हाइड्रोफाईला (A. hydrophila), ऐरोमोनस यूक्रैनोफैला (A. eucranophila), हैफनिया अलवयी (Hafnia alvei), राउल्टेला टेरिजेना (Raoultella terrigena), साल्मोनेला एन्टेरिका (Salmonella enterica), क्लेबसिएल्ला ऑक्सिटोका (Klebsiella oxytoca), क्लेबसिएल्ला ऐरोजिनीज (K. aerogenes), क्लेबसिएल्ला ऐरोमोबिलिस (K. aeromobilis), स्यूडोमोनास एरुजीनोसा (Pseudomonas aeruginosa), ऐसिनेटोबैक्टर लोफी, (Acinetobacter lwoffii)   ऐसिनेटोबैक्टर हेमोलिटिकस (A. haemolyticus),  ऐसिनेटोबैक्टर उर्सिनजी (A. ursngii), ऐसिनेटोबैक्टर चिंदलेरी (A. schindleri), बर्खोल्डेरिया  सेपेसिया (Burkholderia cepacia), मोरेक्सेल्ला  ओस्लोएन्सिस (Moraxella osloensis),  कई जातियों के स्टेफाईलोकॉकस (Staphylococcus) और स्ट्रेप्टोकोकस (Streptococcus) आदि भी पाए गए.

         इस अध्ययन में एक अनोखी बात ये देखने में आयी कि तुलसी की पत्तियों में पाए जाने वाले लाभदायक जीवाणुओं में ऐन्टीबायोटिक के लिए प्रतिरोधकता तुलसी पर मिले रोगाणुओं के मुकाबले कहीं ज्यादा थी. तुलसी के पत्तों पर मिले ५७९ विलगणो (आइसोलेट्स) में से 356 में बहु-ऐन्टीबायोटिक  (तीन से ज्यादा एंटीबायोटिक के लिए, MDR)  प्रतिरोधकता थी तथा 44 आधुनिक  सिफालोस्पोरिन  नामक दवाओं के लिए भी प्रतिरोधी (ESBL-producers) थे. 

            इस अध्ययन से यह सिद्ध हुआ कि यदि आपका वातावरण प्रदूषित है तो उसमे उगने वाले पौधों में भी संक्रमणकारी जीवाणु अवश्य मिलेंगे चाहे वे पौधे कितने ही पूजनीय या पवित्र क्यों न हों. पहले भी बरेली से नीम की पत्तियों पर बहुत से हानिकारक जीवाणुओं का मिलना पुष्ट हुआ है.

 इस अध्ययन को विस्तार से पढ़ने लिए निम्नलिखित सन्दर्भ पर जाएँ: Singh BR, Chandra M, Agri H, Karthikeyan R, Yadav A, Jayakumar V. The assessment of good and bad bacteria in holy basil (Ocimum sanctum) leaves. Infect Dis Res. 2023;4(4):17. doi: 10.53388/IDR2023017.





Wednesday, October 4, 2023

Is Dark Age back in the world?

 Is Dark Age back?

How do you feel about the award of the Nobel Prize 2023 to inventors of the COVID-19 mRNA Vaccine (Katalin Karikó & Drew Weissman)? Both of them are neither inventors of mRNA vaccine technology nor the first users of this technology for humans but their COVID-19 vaccine use caused apathy (hesitancy) for the use of other vaccines among many vaccine users (https://lnkd.in/dUnV4bgi). Created two groups among medicos, ProVaxers and AntiVaxer, as the COVID-19 vaccine uses have been disputed a lot (https://lnkd.in/di5VKt4Y; https://lnkd.in/dmiGGHfh).

A recent study showed that immune function among COVID-19-vaccinated individuals after 8 months of the administration of two doses of the COVID-19 vaccine was lower than that among unvaccinated individuals. According to European Medicines Agency recommendations, frequent COVID-19 booster shots could adversely affect the immune response and may not be feasible (https://lnkd.in/dqxAV9SM; doi:10.1001/jamanetworkopen.2021.40364 & doi: 10.1186/s12985-022-01831-0). 

Further, the forced and blanket COVID-19 vaccination globally over a long period to vaccinate all with insufficient doses and poor quality control of the vaccines (https://lnkd.in/dxXCcDrn) made communities unable to reach thresholds of coverage necessary for herd immunity against COVID-19, thus unnecessarily perpetuating the pandemic and resulted in untold suffering and deaths. The outcome led to Vaccine hesitancy, which is pervasive, misinformed, contagious, and is not limited to COVID-19 vaccination (doi: 0.1080/21645515.2021.1893062).

I feel that the world is now under the Dark Age. I may be wrong and I wish to be wrong, but dark all around does not permit me to be at peace.

Monday, October 2, 2023

विश्व गुरु भारत में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं

 विश्व गुरु भारत में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं

1. भक्त: जो अपने ईष्ट देवता या देवी की धार्मिक आस्था के हिसाब से पूजा अर्चना करता है. भक्त लोग भी किसी काम के नहीं होते, हाँ राजनतिक रूप से इनका फायदा अक्सर इनके इष्ट देव या देवी के निर्माता अवश्य उठा लेते हैं परन्तु अक्सर भ्रम में रहने के कारण ये लोटे किए तरह इधर से उधर भटकते रहते हैं.

2. अंधभक्त: जो किसी जीवित इंसान की पूजा अर्चना इस हद तक करता है कि यदि उसका स्वामी उससे गोबर खाकर मूत्र पीने के लिए भी कहे तो हिचकिचाता नहीं. ये अक्सर मध्यवर्गीय भारतीयों के समूह से होते हैं जो मौके की नजाकत को देखकर मेंढक की तरह रंग बदलने में माहिर होते हैं. बुद्धि होते हुए भी बुद्धि का प्रयोग करने से कतराते हैं .

3. सनातन अंधभक्त: यह वह अंधभक्त हैं जो अंधभक्ति की चरम सीमा से बहुत आगे आगे जाकर अपने स्वामी के एक आदेश को जैसे कि गोबर खाकर मूत्र पीने के लिए यदि एक बार कह दिया तो वह उसे हमेशा हमेशा के लिए ब्रह्म वाक्य मानकर अनुसरण करते रहते हैं तथा पीढ़ी दर पीढ़ी उस आदेश को प्रथा बनाकर कायम रखते हैं अर्थात स्वामी के आदेश को सनातन सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं. ये किसी जाती या समूह विशेष से नहीं होते बस ये अक्सर बुद्धि का प्रयोग नहीं करते या फिर इनके पास बुद्धि होती नहीं या फिर व्यक्ति पूजा में लुप्त हो जाती है.
सभी प्रकार के अंधभक्त राजनीतिक तौर पर बड़े उपयोगी होते हैं, बस एक बार इनके मन में भक्ति बीज बो दो और ताउम्र वोटों की फसल काटो. परन्तु बीज बोने के लिए पहले इनके मन में अतुल भय जैसे की धर्म हानि का, अधर्मी होने का, लुट जाने का, नौकरी जाने का उत्पन्न करना होता है फिर उसमे धार्मिकता का तड़का लगाते हुए एक हाथ से से धार्मिक उन्माद के बीज बोने होते हैं, और दूसरे हाथ से मुफ्त रासन जैसा कोई उपयुक्त खाद डालना होता है, बड़ा कठिन काम है पर मन मोहने वाली बातें करते करते (झूठ बोलो, बार बार बोलो, इतना बोलो को सुनने वाले को झूठ और सच में ऐसा भ्रम हो जाए के सच झूठ और झूठ सच नजर आने लगे ऐसे के जादूगर और जमेरे का खेल हो) काम हो जाता है.
4. चमचा: मनुष्य की वो प्रजाति जो किसी की नहीं, बस सत्ता के हमेशा पास और साथ, सत्ता के केंद्र में, ये वो हैं, जहाँ पर देखी तवा परात वहीँ गुजारी साड़ी रात. ये अक्सर अपने आप को कुलीन या उच्चच्वर्गीय बताते हैं, बड़े चतुर होते हैं कभी भी भक्त या अंधभक्त नहीं बनते बस बनने का दिखावा करते हैं, इनसे हमेशा सावधान रहने की हिदायत दी जाती है पर शायद ही आजतक कोई इनकी चुपड़ी रोटी खाने से बच पाया हो .
चमचा प्रजाति आपको खुश रखते हुए डुबाने का काम करती है बशर्ते उसके मन में जीवन मरण का इतना भय उत्पन्न न कर दिया जाए के वे अंधभक्त बनने के लिए तत्पर ना हो जाएँ परन्तु इनपर अंधभक्ति चश्मा ज्यादा देर ठहरता नहीं.

वैज्ञानिक डॉ. बूरा के अनुसार
5. जाति: यह वह अस्त्र है जिसके द्वारा बडे-बडे कबीलों को वर्ण वर्गीकरण के जाल में फँसाकर, उन्हेँ अयोग्य होने का जन्मसिद्ध अंतरमन तक अहसास करवाकर, संसाधनों एवं पदों से दूर रखा जाता है (पिरामिड को उल्टा किया जाता है).
6. धर्म: ऐसा औजार जिसके द्वारा विभिन्न जातीय समूहों को संगठित कर उन्हें खतरे का अहसास करवाकर उनका प्रतिनिधित्व किया जाता है और संसाधनों/ पदों पर कब्जा किया जाता है

प्रतिक्रिया करने वाले महानुभाओं से प्रार्थना कि कुछ परिभाषाएं वे भी निर्मित करें और भविष्य में मैं भी उनके लिए प्रयास करूंगा, समय के साथ इनमें विस्तार होता रहेगा, कोई ब्रह्म वाक्य थोड़े ही है कि बदला ना जा सके या उसमे सुधार की संभावना ना हो मनुष्य निर्मित हर चीज में सुधार की हमेंशा संभावना रहती ही है।