Tuesday, April 14, 2020

COVIDIOTS of India: भारत के कोविड-१९ दीवाने

COVIDIOTS of India: भारत के कोविड-१९ दीवाने
COVID-19 Pandemic will be remembered as a disease fought with political methods (instead of medical) for political gains कोविड-१९, महामारी इतिहास इसलिए याद रखेगा कि इससे परंपरागत मेडिकल तरीकों के बजाय राजनैतिक तरीकों से राजनैतिक फायदों के लिए लड़ा गया
सिर्फ मच्छर को मार कर हम जितने लोगों को हर वर्ष बचा सकते हैं, अगर हम एक दिन भी लॉक डाउन ना रखें तब भी कोविड-19 से इतने लोग बीमार नहीं पड़ेंगे और ना ही मरेंगे.  पर मच्छर तो दिखता है वह कोई अल्ट्रा माइक्रोस्कोपिक या काल्पनिक या अदृश्य खतरा नहीं है और ना ही उसकी डायग्नोसिस के लिए हमने कोई नया किट या कोई नया वैक्सीन बनाना है तो फिर उस से क्या डरना.
जितने प्रयास हम कोविड-19 को फैलने से रोकने के लिए कर रहे हैं और अपार धन खर्च कर रहे हैं अगर इससे आधा प्रयास और एक चौथाई धन मच्छरों के निवारण के लिए कर लिया गया होता तो यह देश स्वर्ग होता परंतु स्वर्ग बनाने में फायदा किसे है नर्क ही अच्छा है.
आज हम कोरोना से हर मरने वाले (भले ही वह गलत डायग्नोसिस हो) की गिनती कर रहे हैं क्या कल भूख और गरीबी से लड़ते हुए मरने वालों की गिनती करेंगे? करने की जरूरत भी किसे है? उससे किस कंपनी का, और किस नेता का फायदा होने वाला है?
देश में हर साल डेढ़ करोड़ लोग मलेरिया से पीड़ित होते हैं और 20000 मर जाते हैं, देश में 5 करोड लोगों को फाइलेरिया है (https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC5034168/), दुनिया में हर वर्ष 10 करोड़ लोग डेंगू का शिकार होते हैं (https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC5034168/), और कोविड-19 से इतने लोग पूरी दुनिया में भी बीमार नहीं होंगे यह मेरा पूरा विश्वास और दावा है परंतु हमें हर बार इंपोर्टेड चीजें ज्यादा भाती हैं इसलिए हर चैनल और मीडिया ग्रुप कोविड-19 चिल्ला रहा है क्यों? अगर इतना जोर मच्छर मारने के लिए लगाया होता तो आज देश में ना मलेरिया होता, ना फाइलेरिया होता, ना डेंगू होता, ना चिकनगुनिया और तो और जापानी इंसेफेलाइटिस भी भाग जाती परंतु उसमें किसी कंपनी का फिलहाल कोई फायदा नहीं और कोविड-19 एक हॉट केक है, हर आदमी बड़ा साइंटिस्ट, बड़ी कंपनी, बड़ा मैनेजर, बड़ा लीडर, बड़ा देशभक्त और भी पता नहीं क्या क्या बनना चाहता है. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/books/NBK1720/
एक मच्छर को मार कर हम जो कर सकते थे वह हम महीनों भर के लॉक डाउन के बाद भी नहीं कर सकते.


हम उस बीमारी से डरे हुए हैं जिस बीमारी से तथाकथित COVID-19 से बर्बाद देशों में भी 10000 में से 5 लोग. और उनमें भी 90 परसेंट बुड्ढे और बीमार मरे हैं और हद तो यह है कि उन 5 मरने वालों को बचाने के लिए हम हर 10000 में से 5000 को भूख से मारने और तड़पाने के लिए तैयार हैं पता नहीं देश और दुनिया में कैसे epidemiologist पैदा हुए हैं. और उन ५ बूढ़े और बीमारों को बचा भी लिया तो कितने दिन, कितने साल.
और असलियत यह भी है कि हम चाहे साल भर लॉकडाउन में रहें इस बीमारी से पीछा नहीं छूटेगा, यह भी ऐसे ही रहेगी जैसे मच्छर, कोविड-19 की बीमारी भी रहेगी और हम भी रहेंगे. अंधभक्ति नहीं देशभक्ति की जरूरत है.


कितने दिन घर में बंद पड़े रहोगे लॉकडाउन में, पहले से ४० करोड़ भूखे लोगों को बगैर उत्पादन के कब तक खिला पाओगे, कब तक तैयार हो पाएंगी वो आइसोलेशन की सुविधा और कितना बढ़ जाएगा टैस्टिंग का स्तर, अमेरिका जितना या उससे भी ज्यादा, यदि २ लाख रोज का टैस्टिंग स्तर आ भी गया तो कितने साल लग जाएंगे भारत की जनता को टैस्ट करने में। और टैस्ट कर भी लिया तो क्या कर लोगो १-२ लाख लोगों को बचाकर जबकि आपके कई करोड़ भूख से तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। कब तक खिला पाओगे लोगों को आइसोलेशन/ क्वारंटाइन और घरों में बंद करके। जिस दिन भी कोविड-१९ का जिन्न निकलेगा (आखिर कभी तो लॉकडाउन ख़त्म करोगे) इसका असर दिखेगा।

4 comments:

  1. Its the fear of the unknown and an untreatable disease that is the overiding factor in case of COVID-19 pandemic.

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  2. Nation is one in its fight against CORONA whereas it would have been more rewarding to eradicate poverty by controlling our ever exploding population, the root cause of our all miseries but a beautiful vote bank of our political system.

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  3. मुझे लगता है कि कोविड का भय अन्य रोगों से भिन्न केवल इसलिए है कि इससे बड़ी संख्या में लोग एक साथ मरते हैं जिससे लोगों के आतंकित होने की आशंका है। कुछ लोग तो मृत्यु से पहले ही आत्महत्या जैसे कदम उठाने हेतु मजबूर हो सकते हैं। करनाल के कल्पना चावला मेडिकल कॉलेज में ऐसा हुआ भी है। मृतकों की बड़ी संख्या को देखकर हमारी जनता अनियंत्रित भी हो सकती है। लोगों को तनाव हो सकता है। अतः हमारे देश की वर्तमान स्थिति में शायद इससे बेहतर विकल्प सम्भव न हो। रही बात आपके सुझाव की, सो अमेरिका और पाकिस्तान दोनों ही देश आपके कहे अनुसार चल रहे हैं। उनके परिणाम सम्पूर्ण विश्व को उपयुक्त राह दिखाने में सक्षम हो सकते हैं, भले ही उन्होंने यह कदम अपनी घरेलू मजबूरियों के तहत ही उठाया हो। संक्रमण रोगों का फ़ैलाव जब भी होता है, तब कोई भी निर्णय लेना इतना आसान नहीं होता। अगर आप सही हैं तो लोग सर आंखों पर बिठाते हैं लेकिन ग़लत होने पर लोग आपके द्वारा किए गए सत्कर्मों को भी भुला देते हैं। वर्तमान एपिडेमिक में भी कुछ ऐसा ही ख़तरा दिखाई दे रहा है। आशा है आप सरकार की विवशताओं को भी बख़ूबी समझ रहे होंगे।
    अश्विनी रॉय

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  4. हमें तो बारात वाले फुफ़ाओं की याद आ रही है सर। सब्जी में नमक कम तो फीकी सब्जी खिला दी और नमक ज्यादा तो मेरा बीपी बढ़वा दिया।

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