Saturday, May 27, 2017

बढ़ते कदम: भारत ने घटिया (substandard) और नकली (counterfeited) दवाएँ एवं वैक्सीन बनाने में सबको पछाड़ा: How India become Number one?

How India become Number one?
बढ़ते कदम: भारत ने घटिया (substandard) और नकली (counterfeited) दवाएँ एवं वैक्सीन बनाने में सबको पछाड़ा
To keep an eye on officially declared substandard drugs in India, keep an eye on https://cdsco.gov.in/opencms/opencms/en/Notifications/Alerts/
Do you know who are producing NSQD Antibiotics in India? Download here full list (Jan 2013 to March 2018) of Producers Antimicrobial drugs of non-standard (Substandard) Quality. https://www.researchgate.net/profile/Bhoj_Singh/post/How_serious_is_the_problem_of_Substandard_Antibiotics_old_in_India

To Read in English:
1. https://www.researchgate.net/publication/317715214_Why_India_Failed_to_Penalize_those_Responsible_for_the_Circulation_of_Substandard_Medicines_and_Vaccines_while_China_Succeeded?_


दुनिया में लगभग 200 बिलियन डालर का घटिया और नकली दवाओं एवं वैक्सीन का धंधा है और एशिया में बिकने वाली 30% दवाएँ नकली या घटिया हैं. और भारत में बिकने वाली हर पाँच गोलियों के पत्तों में में से एक नकली है. इन दवाइयों से हर वर्ष लगभग 5% धनहानि देश को होती है और ये धंधा रोज ब रोज असली दवाइयों के व्यापार से भी ज़्यादा तरक्की कर रहा है, लगभग 10% की दर से.
दो वर्ष पहले के सर्वे से पता चला है कि एशिया घटिया और नकली दवाइयों का सबसे बड़ा उत्पादक है. भाई एशिया तो शायद चीन, परंतु चीन तो भारत के सामने बच्चा निकला. कुल 75% हिस्से के साथ भारत पहले, 7% हिस्से के साथ ईजिप्ट दूसरे और चीन तीसरे (6%) स्थान पर है. चलो भारत ने कहीं तो चीन से बाजी मारी.
नकली दवाइयों और वैक्सीनों से हर वर्ष लगभग 10 लाख लोग काल के गाल में समा जाते हैं, शायद किसी भी युद्ध या आतंकवाद से ज़्यादा. तो देखा भारत के एक दाव ने कैसे ठिकाने लगा दिया युद्धप्रिय और आतंकवादी देशों को, तभी तो भारत महान है.
भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय की माने तो भारत में 5% दवाएँ चोर दरवाजे वाली एवं 0.3% नकली हैं. दिल्ली के चाँदनी चौक में भागीरथ पैलेस इन नकली और घटिया दवाइयों का विख्यात अड्डा है. भारत के दवाइयों के 40,000 करोड़ के बाजार में 20% हिस्सा सिर्फ़ इन्ही नकली और घटिया दवाइयों का है.

भारत में क्यों फल फूल रहा है नकली और घटिया दवाइयों का धंधा: भारत दुनिया के हर देश को बढ़िया से बढ़िया और उत्तम दवाएँ उपलब्ध कराता है परंतु अपने नागरिकों को क्यों नहीं.  भारत की कुछ नामी दवा कंपनियों के CEO ने एक अंतरंग बातचीत में बताया था कि भारत में उच्च गुणवत्ता की दवाएँ एवं वैक्सीन सप्लाई करने में सबसे बड़ी बाधा मनुष्य्यों एवं पशुओं के स्वास्थ्य बजट का नगण्य होना है. दूसरा बड़ा कारण है सरकारी खरीदारी में गुणवता पर एल-1 का भारी होना. और भी कई कारण हैं जैसे कि कुकरमुत्तों की तरह बढ़ती दवा कंपनियों की तादाद, कमजोर नियमन तथा उससे भी बुरा क़ानूनों का लागू होना, दवाइयों की बढ़ती कीमतें, टैक्स दर टैक्स, बिना लाइसेन्स के डाक्टरी, बिना प्रेस्क्रिप्सन के दवाइयों की बिक्री, जनता की अज्ञानता, क़ानून की कमज़ोरी, क़ानून की बदलती व्याख्याएँ, लंबी क़ानूनी प्रक्रिया, न्याय में देरी, न्याय में अन्याय, न्याय में धन-बल, बाहू-बल और राजनीतिक बल का बढ़ता प्रभुत्व, धर्म-जाती-समुदाय आदि से बदलता न्याय का स्वरूप आदि. और इन सबसे बढ़कर हमारा लंगड़ा लोकतंत्र जिसमें हर बुरा काम करने की आज़ादी है और हर भला काम करने में अड़ंगे हैं, जहाँ हर अच्छा और बुरा काम कराने की फीस लगती है. भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी इसे स्वीकार किया कि ड्रग एवं कास्मेटिक एक्ट को प्रभावी ढंग से लागू करने में तमाम बाधाएँ है, परंतु उनसे कोई (परंतु कौन) पूछे कि भाई ऐसे क़ानून को बदलने में क्या बाधा है.

घटिया और नकली दवाएँ और वैक्सीन बनाने एवं बेचने वालों को सज़ा के मामले में भारत के बढ़ते कदम:  अभी कुछ दिन पहले ही एक मुँह पका खुर पका रोग (FMD) की वैक्सीन बनाने वाली कंपनी के उत्पाद के काफ़ी नमूने घटिया स्तर के पाए गये, उसपर कार्यवाही क्या हुई: हरयाणा सरकार ने उसके ऑर्डर कैंसिल कर दिए, पूरे भारत में एक छोटा सा राज्य, कंपनी को क्या सज़ा हुई, कुछ नहीं.
तीन साल पहले भारत में FMD वैक्सीन बनाने वाली सभी कंपनियों के नमूने खराब गुणवत्ता के मिले थे पर कार्यवाही वही ढाक के तीन पात. लीपापोती, जाँच और जाँच में पहली जाँच को ग़लत सिद्ध करना आदि.
केरल के कन्नूर जिले में (2003) घटिया रैबीज वैक्सीन सालों लगती रही, लोग बचने के बजाय मरते रहे, जाँच में घटिया पाए जाने पर भी ना बनाने वाले, ना खरीदने वाले और ना लगाने वालों का बाल बांका हुआ परन्तु कितने ही भारत के बांके असमय ही काल-कवलित हो गये.
सन् 2013 में पता लगा की हिमाचल के एक सरकारी अस्पताल में पिछले 5 साल में लगभग 8000 लोग घटिया ऐंटी-बायोटिक लगने के चलते स्वर्ग सिधार गये, किसी का कुछ बिगड़ा क्या, आपको पता हो तो बताना शायद स्वर्गवासी आत्माओं को कुछ शांति मिले.
अरुणाचल प्रदेश में और मध्य प्रदेश में हज़ारों करोड़ की 33 नकली दवाएँ वर्षों तक खरीदी गईं, ज़रूर कोई तगड़ी प्लानिंग होगी, परंतु जाँच के बाद भी क्या हुआ, राम जाने.
सन्  2016 में CDSCO ने बताया कि 6 नामी कंपनियों (सिप्ला, इप्का लैब्स, एल्केम लैब्स, मॉरीपेन लैब्स, अब्बोट और सनोफि) की 181 दयाएँ घटिया पाई गईं, पर किया क्या. कंपनियों ने बाजार से अपनी घटिया दवाएँ वापस मंगाकर भारत की जनता पर भारी ऐहसान किया.
पिछले एक दशक में कितनी ही बार घटिया और नकली दवाओं के चलते कितने ही लोग मारे गये, कितनी ही बार ऐसी दवाएँ देश के हर कोने में पकड़ी गईं पर हुआ क्या, किसी को पता नहीं क्योंकि जब तक न्याय मिलेगा तब तक तो न्याय की तलाश में भटकने वाले इस दुनिया से विदा हो चुके होंगे.

भारत में नकली और घटिया दवाइयों के व्यापार कंट्रोल के लिए मशहूर गुजरात मॉडेल: गुजरात मॉडेल खूब सराहा गया है भारत के चहुमुखि विकास के लिए, फिर नकली दवाइयों के लिए क्यो नहीं. सरकार का कहना है कि इस मॉडेल के प्रयोग से जल्दी ही भारत नकली और घटिया दवाइयों से मुक्त होगा. गुजरात में 2013-14 में 567, 2014-15 में 516 और 2015-16 सिर्फ़ 448 नमूने ही नकली दवाइयों के थे जो पकड़े गये. भाई काफ़ी तरक्की की है, पर पकड़ के क्या किया, सज़ा मिली क्या किसी को या फिर 2116 का इंतजार है, तब तक तो वैसे ही रामराज्य आ जाना है.

भारत में अपराधी क्यूँ बच निकलते हैं: क्या क़ानून कमजोर हैं? क्या क़ानून का डर नहीं है? कि कोई क़ानून लागू करने वाला नहीं हैं? या कोई क़ानून मानने वाला नहीं है? भारत के क़ानून में नकली दवाइयों का धंधा करने के लिए कम से कम 10 साल की सज़ा है और मृत्यु दंड का भी प्रावधान है. परंतु आपकी जानकारी में है क्या कोई केस (इसके बावजूद कि भारत नकली दवाइयों के धंधे में दुनिया में नंबर वन है) जब किसी नकली दवा निर्माता या विक्रेता को फाँसी की सज़ा मिली हो या 10 साल की जेल हुई हो (पता चले तो ज़रूर बताना, मन को तसल्ली होगी). भारत की संसद ने भी (2012) माना कि भाई भारत में करप्सन एक गंभीर समस्या है जिसका कोई हल दूर तक नज़र नहीं आता जिसके चलते अपराधी हर फंदे को ऐसे चबा जाते हैं जैसे चुन्गम चबा लिए हों.
जिस देश में संसद पर हमला करने वालों को, दिन और रात आतंक फैलाने वाले दरिंदों को बचाने के लिए वकीलों की फौज हर वक्त हाजिर हो और सुप्रीम कोर्ट रात को 12 बजे भी खुलने को तैयार हो, वहाँ तेरे मेरे भारतजन की कौन बिसात है, भाई यहाँ हमेशा से गद्दारों का राज रहा है और रहने वाला भी लगता है.
सरकार को पता है कि नकली दवाइयों को बनाने वाले, बेचने वाले कौन हैं और दिल्ली में ही सरकार की नाक के तले बैठे हैं परंतु पता नहीं सरकार को कार्यवाही करने में क्यूँ  शर्म आ रही है, शायद वे सरकार के भी जेठ हैं, या कहीं खुद सरकार ही तो नहीं हैं. क्या भारत में कोई ईमानदार बचा ही नहीं या ईमानदारी एक ढकोसला है या ईमानदारी कमजोर है या फिर कुछ और ही राज की बात है.

नकली दवाइयों के धंधे में पिछड़े चीन का हाल: सन् 2016 में चीन में नकली दवाइयों के धंधे में लिप्त 202 व्यपारियों को और 357 उनकी सहायता करने वाले अधिकारियों को कठोर कारावास की सज़ा दे दी गई. शायद आज़ाद भारत के संपूर्ण इतिहास में भी इस धंधे में लिप्त इतने लोगों को सज़ा ना मिली हो. पिछले वर्ष ही (शर्मा, 2016) डेली मेल में लंदन और दिल्ली से एक खबर छपी थी कि भारत में ईमानदारी की सज़ा कैसी होती है, नकली दवा बनाने वालों का नाम उजागर करने वालों का क्या हश्र होता है और नकली को असली सिद्ध करने वाले कैसे रातों रात कुलपति बनकर देश में शिक्षा और विज्ञान को दिशा और दशा देते हैं.
सन् 2007 में चीन के खाद्य और स्वास्थ्य विभाग के मुखिया (झेंग झीयाऊ) को दो महीने की सुनवाई के बाद सीधे फाँसी की सज़ा इसलिए दे दी गई क्योंकि उन्होने बिना टेस्टिंग के ही कई कंपनियों की दवाइयों को बिकने दिया था. इससे उन्हे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक न्यायशील राष्ट्र और सही दवाएँ बेचने वाले राष्‍ट्र की छवि बनाने में सहयोग मिला. अपनी छवि को और सुधारने के लिए चीन अमेरिका और ब्रिटेन से भी दवाइयों की गुणवत्ता सुधारने के लिए सहयोग बढ़ा रहा (वैसे भारत जैसी कोई दोस्ती उसकी ना अमेरिका से है ना ब्रिटेन से). फिर भी चीनी लोगों ने कहा कि चीन में क़ानून कमजोर है इतने सारे लोगों की जिंदगी से खेलने वाले को इतनी आसान मौत. दूसरी तरफ मेरा भारत महान है जिसके वैक्सीन टेस्ट करने वाले संस्थान ने ना जाने कितने हज़ार नमूने बगैर जाँच के ही पास कर दिए, कितने हज़ारों की जाँच अधूरी की या ऐसे की कि हर फेल भी पास हो जाए (सिंह, 2016), जैसे कि बिहार में अपना नाम ना लिख पाने वाले भी पिछले दिनो परीक्षा में टॉप कर गये थे. परंतु यहाँ तो हाल ही निराला है, हर वैक्सीन पास करने वाला जाने कितनों को पछाड़ कर सबसे आगे अजेय होकर क्या से क्या हो गया. मेरा भारत महान है, महान था, महान रहेगा. जय हिंद, चलो कहीं तो हमने दुनिया में नंबर वन पाया. वैसे भारत एक और काम में भी नंबर वन है, खाल खींचने में, जैसे कि दूध उत्पादन, चमड़ा उत्पादन, बड़े बड़ों की खाल खींच डाली है. परंतु इसके बारे में फिर कभी.

सन्दर्भ:

1.       Atanur, M. 2016. China penalizes 357 officials over substandard vaccines. http://aa.com.tr/en/world/china-penalizes-357-officials-over-substandard-vaccines-/555013

2.       Hays J. 2012. DRUG MAKERS, VACCINES, FAKE DRUGS AND DRUG SAFETY IN CHINA. http://factsanddetails.com/china/cat13/sub83/item2275.html

3.        http://m.timesofindia.com/city/thiruvananthapuram/Anti-rabies-vaccine-substandard-KGPA/amp_articleshow/40090240.cms

4.       Indian Ministry of Health and Family Welfare (Government of India). 2003. A Comprehensive Examination of Drug Regulatory Issues, including the Problem of Spurious Drugs.
5.        Ossola A. 2015. The fake drug industry is exploding, and we can’t do anything about it. http://www.newsweek.com/2015/09/25/fake-drug-industry-exploding-and-we-cant-do-anything-about-it-373088.html
6.       Parliament of India. 2012. The Functioning of the Central Drugs Standard Control Organisation (CDSCO).
7.       Pharmaletter (2008) Largest Fake Drug Haul in Europe from India. http://www.thepharmaletter.com/file/60856/largest-fake-drug-haul-ineurope-from-india.html PSI

8.       PTI. 2003. Anti-rabies vaccine substandard: KGPA

9.       Sharma Dinesh C. 2016. How India punishes those who exposes corruption. http://www.dailyo.in/politics/foot-and-mouth-disease-br-singh-whistle-blowers-scam-veterinary-scientist/story/1/10929.html

10.    Singh, BR et al. 2014. Testing of FMD Vaccine (intended to be used under FMD-CP of Govt of India) at CCS NIAH, Baghpat (UP) India. https://www.researchgate.net/publication/267705649_Testing_of_FMD_Vaccine_intended_to_be_used_under_FMD-CP_of_Govt_of_India_at_CCS_NIAH_Baghpat_UP_India?_iepl%5BviewId%5D=sTqGzucwKlnEjnpx39jeyqXz&_iepl%5BprofilePublicationItemVariant%5D=default&_iepl%5Bcontexts%5D%5B0%5D=prfpi&_iepl%5BtargetEntityId%5D=PB%3A267705649&_iepl%5BinteractionType%5D=publicationTitle

11.    Singh, BR. 2016. Treachery with India: vaccine testing at ICAR-IVRI. https://www.blogger.com/blogger.g?blogID=6638451428693957679#editor/target=post;postID=4152191037779192738;onPublishedMenu=allposts;onClosedMenu=allposts;postNum=24;src=postname

12.    Southwick N. 2013. Counterfeit Drugs Kill 1 Mn People Annually: Interpol. http://www.insightcrime.org/news-briefs/counterfeit-drugs-kill-1-million-annually-interpol

13.    The Pharma Letter. 2016. Indian government moves to tackle substandard drugs. https://www.thepharmaletter.com/article/indian-government-moves-to-tackle-substandard-drugs

14.    Verma S., Kumar R. and Philip P.J. 2014. The Business of Counterfeit Drugs in India: A Critical Evaluation. International Journal of Management and International Business Studies. 4, 141-148. https://www.ripublication.com/ijmibs-spl/ijmibsv4n2spl_04.pdf.

15.    WHO. 2006. Counterfeit Medicines: an update on estimates. http://www.who.int/medicines/services/counterfeit/impact/TheNewEstimatesCounterfeit.pdf.

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