Tuesday, October 24, 2023

मेरा राम, तेरा राम और हमारा रावण

 मेरा राम, तेरा राम और हमारा रावण 

      अजीब सा वक़्त है, रावण विजयदशमी मना रहे हैं और राम दर दर भटक रहे हैं. क्या सारे मिथक हमें भरमाने के लिए ही रचे गए हैं, क्या हमें अन्याय को बार-बार सहने के लिए ही राम होने और राम बनने को कहा जाता है? रावण तो अमर है, हर रोज राम रावण से हारता है इस भ्रम के साथ कि शायद कल मैं जीत जाऊं, परन्तु क्या कभी कल आता है इस जद्दोजहद में राम भ्रमित भी होता है सोचता है कि कहीं वही तो रावण नहीं, कहीं उसका नामकरण ही तो गलत नहीं हो गया है? राम कल भी पराजित था, आज भी है, परन्तु कल किसने देखा है वो तो आता ही नहीं. राम ने हमेशा समाज के लिए संघर्ष किया है, परन्तु समाज ने उसके ऊपर हमेशा रावण को ही वरीयता दी है, कारण स्पष्ट है समाज दबंगो से कल भी डरता था, आज भी डरता है, उसी को अपना सब कुछ सौंपता है जिससे उसे डर लगता है, भले मनुष्य को या कहो राम को कल भी समाज ने तिरस्कृत किया था आज भी करता है. हाँ यह अवश्य है कि सभी एक दूसरे को राम बनने की शिक्षा देते हैं, राम की दुहाई भी देते हैं, परन्तु कभी स्वयं को राम बनाने का प्रयास नहीं करते. अगर सभी राम बन जाएंगे तो समाज का ताना बाना उसी तरह छिन्न भिन्न हो जाएगा जैसे सभी के रावण बनने पर.  

       लोग कहते हैं कि रावण एक प्रवृत्ति है, हमारी पापी प्रवृत्ति, उसी तरह जैसे हमारे अंदर कभी-कभी राम प्रवृत्ति जाग्रत हो जाती है, और हम भले मनुष्य बनने का प्रयास करते हैं परन्तु राम प्रवृत्ति बहुधा रावण प्रवृत्ति से हार जाती है और हम करने लगते राम होने का ढौंग या कहो हमारे अंतर्मन में खेली जाने लगती है रामायण और जब यह अंतर्द्वंद और बढ़ता है तब जाग जाता है कंस और दुर्योधन महाभारत शुरू करने को, और राम बन जाते है रणछोड़ जी, कभी अपनी कायरता छुपाने को, कभी शांति स्थापना का ढौंग रचने हेतु यह कहकर कि धर्म की रक्षा करने के लिए अधर्म से दूर जाना ही उचित है, परन्तु जब फिर तन और मन में शक्ति संगृहीत होती है तो मन मचल उठता है दुष्टों का संहार करके शान्ति और धर्म स्थापना के लिए. परन्तु क्या आप जानते हैं कि छणिक राम, छणिक रणछोड़ और छणिक कृष्ण जो हमारे अंतर्मन में जागा था वह देखते देखते ही रावण कब बन जाता है पता ही नहीं चलता, और हर राम, कृष्ण, दुर्योधन और रावण की तरह इस संसार से विदा लेते हैं शायद एक और राम-रावण युद्ध या  महाभारत लड़ने के लिए. 

     कौन राम है, और कौन रावण, कौन कौरव हैं, और कौन पांडव, कौन कंस और कौन कृष्ण, आज तक भी हमारे मन में स्पष्ट नहीं है क्योंकि ये सब तो मैं ही हूँ सनातन रूप से भ्रमित. यदा-कदा ज्ञानियों ने कहा भी कि ये सब हमारे अंदर ही बसने वाली भावनायें, इच्छाएं और भ्रम हैं. सत्य और सनातन जैसी सिर्फ एक ही चीज है, समय चक्र. समय का ही फेर है जो कभी राम रावण बनके सामने आता है तो कभी हमारा धर्मराज हर चीज को जीतने की चाह में जुआ खेलते हुए उसे भी लुटा देता है जो उसका था ही नहीं, धर्मराज कब शकुनि-मन के भ्रमजाल में फंसकर अधर्मी बन जाता है धर्म को भी पता नहीं लगता.

     जहाँ तक धर्म की बात है वह तो एक ही है, भूख, वह जैसी होगी वैसा ही स्वयं का धर्म प्रकट करेगी. भूख के प्रकार अनंत हैं तो धर्म भी अनंत हैं, जो आज धर्म है कल वो निश्चित ही धर्म नहीं रहेगा, यह तो संभव है कि वह अधर्म न बने परन्तु मिटना तय है. 

          धर्म अगर राम है, राम होना है, और राम होने का प्रयास है तो वो तेरा अलग है, मेरा अलग है, और उसका अलग है, परन्तु हमारा रावण भिन्न नहीं है, वह एक ही है, एक ही जो सनातन समय से अपरिवर्तित है, हाँ वह रूप बदलकर कभी मैं हूँ, कभी तू है, कभी माँ, कभी बाप, कभी पुत्र, कभी पुत्री,   कभी पति, कभी पत्नी, कभी भाई, कभी बहन, कभी दुश्मन, कभी दोस्त, कभी साधू, कभी संत, कभी रागी तो कभी बैरागी.  पता नहीं कितना मायावी है रावण, ना कल के राम को पता था न आज के. अतः मित्र तू जो है वही प्रकट हो जा, अगर जैसा है वैसा ही प्रकट करने का साहस जुटा पाया ना तो तू राम रहेगा न ही रावण बन सकेगा, रह जाएगा एक समय के फेर में भटकता हुआ मनुष्य, एक बिन मंजिल का राही, क्योंकि मंजिल तो रावण होते हुए भी राम दिखने की है जब वही नहीं रहेगी तो -----.


एक तेरा राम है, एक मेरा राम है

इस जग में जितने नर-नारी हैं उतने ही भगवान् हैं 

चाहे जितने राम हैं, चाहे जितने भगवान् हैं 

रावण सबमें एक है, और उसका उसे गुमान है .

राम, कृष्ण और और भगवान् बदलते रहते हैं 

रावण ही सत्य है, अजर है, अमर हैं 

वही सनातन है 

यह तुम्हे भी पता 

मुझे भी गुमान है.

क्योंकि, 

तेरा भी एक राम है, मेरा भी एक राम है, परन्तु 

रावण सब का समान है.

यदि रावण मरा तो सब कुछ समाप्त

अतः हम हर वर्ष रावण को मारने का नाटक करते हैं.

जिससे कि रावण सनातन बना रहे. 

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