Thursday, October 12, 2023

तुलसी के पत्तों पर रहते हैं अच्छे (लाभदायक) एवं बुरे (हानिकारक) दोनों प्रकार के जीवाणु

 तुलसी के पत्तों पर रहते हैं अच्छे (लाभदायक) एवं बुरे (हानिकारक) दोनों प्रकार के जीवाणु

    तुलसी एक भारतीय महाद्वीप में होने वाला एक उगने वाला छोटा झाड़ीदार पवित्र पौधा है जिसे बहुत से सनातन हिन्दू परिवारों में नियमित रूप से पूजा जाता है. इसके पूजे जाने के धार्मिक और वैज्ञानिक कारण हैं. धार्मिक कारणों को एक और रखकर यहाँ सिर्फ तुलसी के औषधीय गुणों कि बात करते हैं. तुलसी के पौधों को पादप जगत की रानी या फिर प्राकृतिक चिकित्सा की माँ के रूप में जाना जाता है.  पूर्व में किये गए अध्ययन बताते हैं कि तुलसी के तेल और इसके पत्तों के रस में बहुत से रोगाणुओं को मारने की शक्ति है, तुलसी के नियमित सेवन से आँतों में रहने वाले जीवाणुओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन आता है, इसका सेवन आपको तनाव मुक्त करता है, शरीर में सूजन को काम करता है, शर्करा के स्टार को नियंत्रित करता है, यह अपने प्रतिउपचायक या ऑक्सीकरणरोधी (एंटीऑक्सीडेंट) गुणों के कारण आपके यकृत (लिवर) को शक्ति देता है तथा कैंसर से भी बचाता है. मछलियों में हुए एक शोध में पाया गया कि तुलसी का मछलियों में बढ़वार को प्रेरित करता है, रोगरोधक शक्ति बढ़ाता है, तथा रोगाणुओं को मारता है. तुलसी का तेल एक बहुत शक्तिशाली जीवाणुनाशक सुगन्धयुक्त तेल है, तुलसी के पत्ते या उनके रस का सेवन विषजनित रोग, पेट दर्द, सामान्य सर्दी खांसी, सरदर्द, मलेरिया, ज्वर, तनाव, अस्थमा, कोलेस्ट्रॉल की  अधिकता, ह्रदय रोग, उलटी या मतली, और सूजन रोकने और कम करने में कारगर माना गया है.

     इतने सब गुण होते हुए भी स्यूडोमोनास नामक जीवाणु इस पौधे में रोग उत्पन्न करके इसकी पत्तियों में चित्ती रोग उत्पन्न करके इस पवित्र पौधे को नष्ट कर देता है. सच ही कहा गया है कि हर शेर को सवा-शेर मिल ही जाता है, और जो आया है उसे देर-सबेर जाना ही होता है.  

       तुलसी के पत्ते अक्सर चाय या काढ़ा बनाने में प्रयुक्त होते हैं और इस प्रक्रिया में सभी प्रकार के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं, परन्तु यदि आप तुलसी के पत्ते स्वास्थ्य लाभ के लिए कच्चे ही खा रहे हैं या प्रसाद, पंचामृत, चरणामृत आदि बनाने में प्रयोग कर रहे हैं या फिर पत्तियों रस निकलकर प्रयोग कर रहे हैं तब आपको यह जान लेना चाहिए कि तुलसी के पत्तों पर बसने वाले रोगाणु आपके इन्तजार में बैठे हैं और पवित्रता आपको रोग ग्रसित होने से नहीं बचा पाएगी. 

        हाल ही भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली के जानपदिक रोग विभाग में हुए अनुसंधान में बरेली के छः स्थानों (आईवीआरआई, सनसिटी, महानगर, राजेंद्रनगर, भोजीपुरा, नार्थ-सिटी)  112 घरों में लगे रामा तुलसी के पौधों से पत्तियों के नमूने एकत्रित करके उनपर उपस्थित लाभदायक और हानिकारक जीवाणुओं का अध्ययन किया गया. तुलसी की पत्तियों के ६०.७१% नमूनों में २३ जातियों के लाभदायक जीवाणु तो ९६.४३% नमूनों में ७३ जातियों के रोगाणु पाए गए. जो कुल चार रोगाणुरहित नमूने मिले उनमें से तीन महानगर और एक भोजीपुरा के घरों से लिए गए थे. आईवीआरआई से लिए गए नमूनों में अच्छे जीवाणुओं के मिलने की सम्भावना सबसे कम पाई गई. 

             अध्ययन से विदित हुआ कि तुलसी के पत्तों पर १०६ प्रकार के जीवाणु उपस्थित थे. कुल ५७९ विलगन (आइसोलेट्स) जो १०६ जातियों में विभाजित किये गए उनमे सबसे ज्यादा नमूनों में (४३ नमूनों में)  पैंटोइया एग्लोमेरैंस  (Pantoea agglomerans) जाति  के जीवाणु थे, इस जाति के जीवाणु मनुष्यों और पशुओं में विविध  प्रकार के रोग और गर्भपात  का कारण बन सकते हैं, दूसरे स्थान पर रहे २१ नमूनों में मिले वर्जीबेसिलस पेंटोथेनटिकस (Virgibacillus pantothenticus) जाति  के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक जीवाणु, इसके बाद १८ नमूनों में मिला एक अन्य स्वास्थ्य कारक बेसिलस कोएगुलेन्स (Bacillus coagulans) जाति का जीवाणु, फिर १७ नमूनों में मिला खाद्यजनित विषुत्पादक बेसिलस सीरियस (Bacillus cereus) जाति  का जीवाणु, १६ नमूनों में एक डेरी उत्पादों और फेरमेन्टरों आदि में सड़न पैदा करने वाला जीओबेसिलस स्टीअरोथेरमोफिलस (Geobacillus stearothermophilus), १३ नमूनों में एक बहुत ही हानिकारक और न्यूमोनिया कारक क्लेबसिएल्ला नुमोनी (Klebsiella pneumoniae) जीवाणु, १२ नमूनों में एक थोड़े कम हानिकारक सिट्रोबैक्टर फ्रूअण्डी (Citrobacter freundii), और लायसिनिबेसिलस स्फेरिकस (Lysinibacillus sphaericus), ११ नमूनों में मिला एक बहुत ही हानिकारक जीवाणु जो अक्सर अस्पतालों में भर्ती रोगियों में संक्रमण करता है, ऐसिनेटोबेक्टर काल्कोऐसेटिक्स-बौमानी (Acinetobacter calcoaceticus-baumanii), और बहुत ही जाना-माना एस्चेरीचिया कोलाई (Escherichia coli) और जेनोरबडस बोविएनि (Xenorhabdus bovienii), जो अक्सर पेट के कीड़ो से फैलने वाला गर्भपात कारक है और कई अन्य रोग उत्पन्न करता है.  

 तुलसी कि पत्तियों के कुछ नमूनों पर और भी घातक रोगाणु जैसे ऐरोमोनस बेस्टीएरम (Aeromonas bestiarum), ऐरोमोनस सुबर्ति (A. schubertii), ऐरोमोनस ट्रोटा (A. trota), ऐरोमोनस हाइड्रोफाईला (A. hydrophila), ऐरोमोनस यूक्रैनोफैला (A. eucranophila), हैफनिया अलवयी (Hafnia alvei), राउल्टेला टेरिजेना (Raoultella terrigena), साल्मोनेला एन्टेरिका (Salmonella enterica), क्लेबसिएल्ला ऑक्सिटोका (Klebsiella oxytoca), क्लेबसिएल्ला ऐरोजिनीज (K. aerogenes), क्लेबसिएल्ला ऐरोमोबिलिस (K. aeromobilis), स्यूडोमोनास एरुजीनोसा (Pseudomonas aeruginosa), ऐसिनेटोबैक्टर लोफी, (Acinetobacter lwoffii)   ऐसिनेटोबैक्टर हेमोलिटिकस (A. haemolyticus),  ऐसिनेटोबैक्टर उर्सिनजी (A. ursngii), ऐसिनेटोबैक्टर चिंदलेरी (A. schindleri), बर्खोल्डेरिया  सेपेसिया (Burkholderia cepacia), मोरेक्सेल्ला  ओस्लोएन्सिस (Moraxella osloensis),  कई जातियों के स्टेफाईलोकॉकस (Staphylococcus) और स्ट्रेप्टोकोकस (Streptococcus) आदि भी पाए गए.

         इस अध्ययन में एक अनोखी बात ये देखने में आयी कि तुलसी की पत्तियों में पाए जाने वाले लाभदायक जीवाणुओं में ऐन्टीबायोटिक के लिए प्रतिरोधकता तुलसी पर मिले रोगाणुओं के मुकाबले कहीं ज्यादा थी. तुलसी के पत्तों पर मिले ५७९ विलगणो (आइसोलेट्स) में से 356 में बहु-ऐन्टीबायोटिक  (तीन से ज्यादा एंटीबायोटिक के लिए, MDR)  प्रतिरोधकता थी तथा 44 आधुनिक  सिफालोस्पोरिन  नामक दवाओं के लिए भी प्रतिरोधी (ESBL-producers) थे. 

            इस अध्ययन से यह सिद्ध हुआ कि यदि आपका वातावरण प्रदूषित है तो उसमे उगने वाले पौधों में भी संक्रमणकारी जीवाणु अवश्य मिलेंगे चाहे वे पौधे कितने ही पूजनीय या पवित्र क्यों न हों. पहले भी बरेली से नीम की पत्तियों पर बहुत से हानिकारक जीवाणुओं का मिलना पुष्ट हुआ है.

 इस अध्ययन को विस्तार से पढ़ने लिए निम्नलिखित सन्दर्भ पर जाएँ: Singh BR, Chandra M, Agri H, Karthikeyan R, Yadav A, Jayakumar V. The assessment of good and bad bacteria in holy basil (Ocimum sanctum) leaves. Infect Dis Res. 2023;4(4):17. doi: 10.53388/IDR2023017.





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