Monday, December 4, 2023

When should buffaloes be bred to produce more female calves? ज्यादा कटड़ी पैदा करने के लिए भैंसों में प्रजनन कब कराएं?

 

When should buffaloes be bred to produce more female calves? Is it possible to manipulate the sex ratio by timing the breeding month?

Data source: Annual Report of ICAR-CIRB available from https://cirb.icar.gov.in/annual-reports/

Also available from https://www.researchgate.net/publication/376207854_The_best_breeding_season_for_buffaloes_to_have_more_female_calves_and_the_least_number_of_abortions

After breeding your buffalo, you wait about 10 months (305-320 days) to see whether your buffalo calved a male or female calf. However, data analysis revealed that you may enhance the chances of having more female calves by timing the breeding of your buffaloes. After analyzing buffalo birth data retrieved from Annual reports of ICAR-Central Institute for Research on Buffalo (CIRB), Hissar (2019-2022, four years), it was interesting to note that the probability of birth of female Murrah buffalo calves was twice (Odds Ratio >2; CI95, 1.02-2.290) than the birth of male calves in July and August. You should breed your Murrah buffalo in October and November to have more female calves. At Nabha, Punjab Centre of CIRB Nili-Ravi buffalo breeding is done. The birth data of Nili-Ravi buffalo also indicated two months with a much higher possibility of the birth of female calves (Odds ratio 4.5 in April, CI99, 1.02-19.5; Odds ratio 2.3 in September, CI99, 1.04-5.08) than male calves, that means you should breed Nili-Ravi buffalo either in July (for calving in April) or in December (for calving in September). This analysis is based on four-year data only (2019 to 2022), in the period a total of 632 Murrah calves and 532 Nili-Ravi calves were borne. The bigger data analysis may yield better statistics and guide the buffalo farmers to breed the buffaloes profitably. The data needs to be handled carefully as if the climate of the month of breeding may affect the sex ratio, the best months of breeding may be different in different regions of the country. Therefore, calving data at different breeding centres needs to be relooked for the benefit of livestock farmers.



Abortions in buffaloes: Summer season is the peak season for observing abortion in Nili-Ravi buffalo (May to July) and the least probability of abortion in September to January. But in Murrah buffaloes abortions are erratically distributed over different months of the year but the maximum number of abortions are observed in May similar to abortions in Nili-Ravi buffaloes and the least in October.



The birth of more female calves in certain months may be associated with the observations that those months were preceded by a high abortion rate months. It is observed in past studies that in the last trimester of abortions sex ratio of males to females in aborted foeti is usually 1.36:1, that is more males might have been lost before their birth.

Ref: Jakobovits A. Sex ratio of spontaneously aborted fetuses and delivered neonates in the second trimester. European Journal of Obstetrics & Gynecology and Reproductive Biology. 1991; 40(3): 211-213. https://doi.org/10.1016/0028-2243(91)90119-6.

    Thus the best season of breeding in buffaloes to have more female calves coincides with less number of abortions, thus it is wise to choose the right breeding season for your buffaloes.

AI with Sex-Sorted Semen (SSS): Some veterinarians suggest that if you want female calves you should go for AI with sex-sorted semen, but the option may be deleterious. Studies at ICAR-CIRB, Hisar have shown that after artificial insemination (AI) the conception rate is about 35% in buffaloes, and on average three AIs are required and at least two breeding cycles are wasted [1]. Further use of sex-sorted semen in buffalo has the big disadvantage of still lower conception rate, the AI with sexed semen yields about 10% success rates [2]. A meta-analytical study indicated that the non-return rate (NRR) diminished by 13%, pregnancy rates were reduced by 23%, and calving rates were reduced by 24% when using sex-sorted sperms for AI [3]. Therefore, timing the breeding of buffaloes may be more economical than the use of sex-sorted semen AI.

References:

1.     1. Singh I, Balhara AK. New approaches in buffalo artificial insemination programs with special reference to India. Theriogenology. 2016; 86(1):194-199. doi: 10.1016/j.theriogenology.2016.04.031.

2.    2.  Sawant SS, Patil GM, Ingawal VM, Hase BP. Effect of sexed and conventional semen on pregnancy rate in Murrah buffaloes under field conditions. Ind J Vet Sci Biotech. 2022; 18(4):143-144.

3. Reese S, Pirez, M.C., Steele, H. et al. The reproductive success of bovine sperm after sex-sorting: a meta-analysis. Sci Rep. 2021; 11:17366. https://doi.org/10.1038/s41598-021-96834-2


ज्यादा कटड़ी पैदा करने के लिए भैंसों में प्रजनन कब कराएं? क्या भैंसों में प्रजनन (गर्भाधान कराने) का समय चुनकर कटड़ा या कटड़ी के पैदा होने की सम्भावना को बदल सकते हैं? 

कहने-सुनने में अवश्य ही अजीब लगता है परन्तु केंद्रीय भैंस अनुसन्धान संस्थान हिसार और नाभा केंद्रों पर पिछले चार वर्ष में पैदा होने वाले भैंस के लबारों के पैदा होने के आंकड़ों के अध्ययन से यही विदित होता है कि भैंस पालक भैंसो के प्रजनन समय में फेर-बदल करके पैदा होने वाली कटड़ियों की संख्या दो से चार गुना तक बढ़ा सकते हैं. हिसार केंद्र पर मुर्रा भैंसो के २०१९ से २०२२ तक के 632 प्रजनन के आंकड़े बताते हैं कि यदि आप अपनी मुर्रा भैंस को अक्टूबर और नवम्बर के महीने में गर्भाधान  कराते हैं अर्थात उनके ब्याने का समय जुलाई और अगस्त रहता तो कटड़ी पैदा होने कि सम्भावना कटड़ा होने कि सम्भावना से दुगनी रहती है. इसी प्रकार जब नाभा केंद्र के नीली-रावी भैंसो के 532 प्रजनन के आंकड़े जांचे गए तो पता चला कि अप्रैल माह में कटड़ियाँ पैदा होने की संभावना कटड़े पैदा होने कि संभावना से ४.५ गुना ज्यादा रहती है और सितम्बर माह में २.३ गुना ज्यादा रहती है अर्थात पशु पालक यदि ज्यादा कटड़ियाँ पैदा करना चाहते हैं तो अपनी नीली-रावी भैंसों को जुलाई या फिर दिसंबर के महीने में ही गाभिन (गर्भाधान) करवाएं. ये आंकड़े स्थान के अनुसार बदल सकते हैं अतः पशुपालकों के हितार्थ विभिन्न छेत्रों के सभी पशु संवर्धन फार्मों के आंकड़ों का सावधानी पूर्वक अध्ययन कराके पशुपालकों को अवगत कराना लाभदायक पशु-पालन के लिए उपयोगी हो सकता है .

भैंसो में गर्भपात: गर्भपात के आंकड़ों के अध्ययन से पता चलता है कि भैंसो में जिन महीनो में तुलनात्मक रूप कटड़ों से ज्यादा कटड़ियाँ पैदा होती हैं उन महीनो में गर्भपात कि संभावना भी कम होती  है इस विश्लेषणात्मक लेख से विदित होता है कि पशुपालक भैंसों में  गर्भाधान के लिए उचित माह का चुनाव कर सकते हैं 




Wednesday, November 1, 2023

गौरक्षक और गौमाता का संरक्षण एवं संवर्धन : Holy Cow Protectors and Holy Cow Conservation and Enrichment

Holy Cow Protectors and Holy Cow Conservation  and Enrichment

गौरक्षक और गौमाता का संरक्षण एवं संवर्धन

जाट मनुज ना जानिये, ना गाय जानिये ढोर ।  

तुलसी गाछ न जानिये, ये तीनो नन्द किशोर।। 

और भी 

अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा लिखा जाट खुदा जैसा । 


ये उक्तियाँ कहने के लिए बहुत सुन्दर है और गौरक्षक लोग अक्सर इन्हें कहते पाए जाते हैं पर वास्तविकता कुछ भी ऐसी नहीं है, ना तो हर जाट, ना ही हर गाय और न ही तुलसी का हर पौधा पूजनीय है और ना कभी था।   तुलसी की पूजा जिन घरों में होती है वहां भी एक पौधा जो पूजा स्थान पर लगा है उसकी पत्ती कोई नहीं तोड़ता और दूसरा पौधा जो कहीं अगल बगल ही खड़ा है उसकी पत्तियां रोज ही नोच-नोच कर उबलते पानी में डाल दी जाती हैं, और जो तुलसी जंगल में उग रही है उसका तो कोई खैरख्वाह ही नहीं होता।  उसी तरह हर गाय पूजनीय नहीं होती, सिर्फ देशी गाय (Bos indicus), वो भी किसी सनातनी के घर में वह सम्मान पाती है जो इस उक्ति में वर्णित है।  रही बात जाट की तो कुछ ना कहना ही बेहतर है।  वैसे वास्तविक जिंदगी में इस उक्ति का गौ-संरक्षण या गौ-संवर्धन से ऐसे ही कोई लेना देना नहीं है जैसे कि गौरक्षा का, ये तो सिर्फ बातें हैं और बातों का क्या, लोग गली चौराहों पर और नेता गाहे-बगाहे गाल बजाते ही रहते हैं उसमे सत्यता का अंस  ढूंढने वाले  भक्त कुछ न कुछ ढूंढ ही लेते हैं। 

    गौरक्षा एक धार्मिक प्रतिबद्धता है जबकि गौ-संवर्धन और संरक्षण आम जन की आवश्य्कता है।  पिछले कुछ वर्षों में एक राजनैतिक पार्टी विशेष और उसके समर्थकों का गौरक्षा पर विशेष ध्यान रहा है, और इसके लिए सरकारी तौर पर कई योजनाएं भी चलाई गई हैं।  उनमें से कुछ इसलिए चलानी पड़ी क्योंकि गौरक्षा के संकल्प के चलते देश में लगभग ५० लाख गायें निराश्रित हो गईं अर्थात गौ संवर्धन और गौसंरक्षण दोनों ही घास चरने चले गए और गौमाता भूख से तड़पती हुई आवारा घूमने लगी। पशुगणना २०१९ के आंकड़ों से (https://www.nddb.coop/information/stats/pop; https://dahd.nic.in/documents/statistics/livestock-census) यह विदित हुआ कि जहाँ-जहाँ भी गौरक्षा आंदोलन ने  जोर पकड़ा वहां-वहां ही गौसंवर्धन के बदले गौ-संख्या-ह्रास  हो गया गया। 

 और जहाँ जहाँ राजनैतिक तौर पर गौरक्षा आंदोलन धीमा रहा या नहीं रहा वहां स्थिति थोड़ी सकारात्मक रही। 


  इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि गौरक्षा आंदोलन से गौ-संरक्षण या गौ-संवर्धन नहीं हो सकता।  परन्तु कारण ढूंढना भी आवश्यक है।  ऐसा आखिरकार हुआ कैसे, क्या 

1.  गौपालक और गौरक्षक दो अलग अलग समूह हैं। 

2.  गौपालकों के लिए गाय पूजनीय नहीं बल्कि एक दुधारू पशु है। 

3.  गौपालक गाय को सेवा करने के लिए नहीं बल्कि उत्पादक पशु के तौर पर सेवा लेने के लिए पालते हैं। 

4. ज्यादातर गौरक्षक सिर्फ नाम के गौरक्षक हैं या गौरक्षा आंदोलन में उनका राजनैतिक या आर्थिक स्वार्थ निहित है और स्वार्थवश मनुष्य अंधानुसरण कर सकता या फिर विनाश। 

5.  गौरक्षा आंदोलन के चलते गौपशुओं का विपणन बाधित हो गया तो गौपालकों ने आर्थिक तौर पर गैर-लाभकारी गौधन को त्याग दिया; फल, लगभग ५० लाख गौधन आज भारत में निराश्रित और आवारा गिना जा रहा है ।  

6.  गौरक्षक समूहों द्वारा गौपालकों और गौ-व्यापारियों को अनावश्यक प्रताड़ना भी कुछ हद तक गौपालन के प्रति बढ़ती अनिच्छा का कारण हो सकती है और आये दिन आने वाली इस तरह की सूचनाएं गौरक्षकों को तो मानसिक शांति और एकाधिक लाभ पहुंचा सकती हैं परन्तु गौ-संवर्धन के लिए निश्चित ही हानिकारक सिद्ध हो सकती हैं। 

       इससे हमें यह समझना होगा कि गौरक्षा एक अलग विषय है इसका गौ-संवर्धन या गौ-संरक्षण से कोई वास्ता नहीं है ऐसा हुआ होता तो यह सब न होता जो ऊपर दिखाई गई तालिकाओं में दिख रहा है। 

     भारत में गौसंवर्धन में सबसे बड़ा उछाल श्वेतक्रांति काल में देखने में आया था।  भारत में १९७० से १९८० के बीच चले श्वेतक्रांति काल में दूध उत्पदान तो बढ़ा ही, देश दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर बना, साथ ही गौपालन और भैंस पालन भी  क्रमशः १०.८६% एवं १३.८६% की दर से संख्यात्मक रूप में बढ़ा।  देश में दुग्ध उत्पादन लगातार बढ़ रहा है और गाय-भैंसों की संख्या भी बढ़ रही है परन्तु श्वेतक्रांति के बाद गायों की संख्या में वृद्धि (३७.५०%) भैंसों के (६९.२३%) मुकाबले लगभग आधी रह गई है।  और जो गायों की संख्या में मामूली सी (६.१३%) वृद्धि देखने में आई  है वह भी गौमाताओं (गौरक्षा की लाभ प्राप्त कर्ता) की वृद्धि (०.८१%) के कारण नहीं बल्कि संकर नस्ल की गायों की संख्या में हुई  ३९.१३% वृद्धि के कारण ही है।  इसका अर्थ यह हुआ कि गौपालकों ने उन दुधारू पशुओं को पालने में रूचि दिखाई जो कम लागत में ज्यादा दुग्ध उत्पादन दे सकें अर्थात भैंस और संकर नस्ल की गायें ना कि पूजनीय गौ-माताएं। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान में प्रति किलो दूध के उत्पादन में लगने वाले पानी (Water Foot Print of Milk Production) पर हाल ही में देशी गाय और भैंस पर हुए तुलनात्मक अध्ययन में कम पानी खर्चे पर ज्यादा दूध उत्पादन करके भैंसों ने ही विजय पताका फहराई और गौमाता एक बार फिर आरक्षण की मोहताज हो गई। 

    यह भी एक तथ्य है कि संवर्धन और संरक्षण दो विभिन्न दिशाओं के रास्ते हैं, आप गौरक्षा करते हुए अर्थात प्रत्येक गाय को संरक्षित करते हुए गौसंवर्धन नहीं कर सकते।  गौसंवर्धन करने के लिए आपको बीमार, गैर-उत्पादक गौधन को एक किनारे करना ही पड़ेगा जैसे कि गेंहूं के खेत से आप गेहूं के मामा और दूसरे घास-फूंस के पौधे उनके बड़ा होने और फूलने-फैलने से पहले ही निकाल देते हैं, अन्यथा ना तो आप गौसंरक्षण कर पाएंगे और न ही गौसंवर्धन।    

     गौसंवर्धन के लिए आपको चाहियें ज्यादा उत्पादन छमता वाले रोगरहित स्वस्थ गौधन। ज्यादा उत्पादन छमता वाले गौधन पैदा होते हैं बेकार और कम उत्पादक गायों, रोगी और रोग-धारक गायों से अपनी गौशालाओं को मुक्त करते हुए ज्यादा से ज्यादा दुग्ध उत्पादन करने वाली, स्वस्थ और निरोगी गायों को संरक्षित करके।  

       आज हम  अपनी ही देशी गायों की उन्नत नस्लें विदेशों से आयात करने को लाचार हैं क्योंकि हमने कभी गौसंवर्धन के बारे में सोचा ही नहीं, सिर्फ गौरक्षण की बात की और आज भी कर रहे हैं, अच्छी नस्लें संवर्धित करके सरंक्षित की जाती हैं, ना कि घास फूंस इकठ्ठा करके। 

    अतः मेरा सभी गौरक्षकों और गौसंरक्षकों से अनुरोध है की गौसंवर्धन करें, गौरक्षण स्वतः ही हो जाएगा।  इससे आप मुँह नहीं चुरा सकते कि जिन देशों में भी गौसंवर्धन हुआ है कभी भी कहीं भी गौरक्षा आंदोलन चलाने की आवश्यकता नहीं हुई।  आज दुनिया के ज्यादातर देश  हमसे बेहतर गौपालन कर रहे हैं और सिर्फ गौपालन ही कर रह रहें, भैंस पालन नहीं, और हम क्या सोच रहे हैं कि किस तरह हम अपनी गौमाता को बचा लें।  

गौमाता को बचाना है तो शीघ्रतातिशीघ्र हमें 

1. हर गाय को और गाय प्रजाति के पशु को सिर्फ पशु मानना होगा पूज्य नहीं, या कम से कम उसे माँ-बाप, भाई बहिन तो मानने से परहेज करना पड़ेगा। जैसे कि हर पढ़ा लिखा जाट खुदा नहीं होता और न ही हो सकता। जैसे कि हर तुलसी के पौधे को पूजा नहीं जाता, ठीक वैसे ही हर गौधन को रक्षण या संरक्षण की आवश्यक्ता नहीं है। 

2. गोविष्ठा (गोबर) और गौमूत्र पी, और पिलाकर गौरक्षा संभव नहीं है। हाँ, दुनिया वाले हम पर हंसेगे और देश बदनाम होगा। 

3. गाय एक दूध देने वाला पशु है इसे ब्रह्म वाक्य मानकर गौसंवर्धन करना होगा। जैसा कि और सभी गौपालक, और गौसंवर्धक देशों ने किया है। जो दूसरों को देखकर सम्हल जाए उसे समझदार कहते हैं, जो गिर कर सम्हल जाए वो इंसान होता है, और जो अपनी गलतियों से भी सबक ना ले उसे अन्धा नहीं अन्धबुद्धि कहते हैं। 

      नहीं सम्हले तो आपको पता भी नहीं चलेगा और देखते देखते ही देश एक भैंस प्रधान देश हो जाएगा। आप गौरक्षक हैं तो यह भी जानते होंगे कि भैंस का का दूसरा नाम महिषी है अर्थात रानी। और माता के देखते देखते कब महिषी गृहस्वामिनी बन जाती है इसका एहसास माता को तब होता होता जब उसे उसकी कोने वाली चारपाई दिखा दी जाती है, भले पुत्र कितना ही मातृ भक्त क्यों न हो, यह होना अवश्यंभावी है।  

     अतः अभी देर तो हुई है पर अंधेर नहीं, तो गौरक्षा छोड़ कर गौसंवर्धक बनो और गौसंवर्धन करो। हाँ यदि आप एक राजनैतिक गौरक्षक और गौसंरक्षक हैं तो इस अर्धप्रजातांत्रिक (जहाँ कानून का प्रभाव आपके रुतबे और राजनैतिक पृष्टभूमि के अनुसार होता है) देश में आप जो आप कर रहे हैं करने को स्वतंत्र हैं। 



See this video about the truth of Gauraksha https://twitter.com/i/status/1728478557406740786

and





Friday, October 27, 2023

Patent of Soul: आत्मा का एकस्व

 Patent of Soul: आत्मा का एकस्व

  A real-time story just started

 A scientist named R-1 for the first time not only isolated the soul but characterized it to the extent of knowing its all controls to direct its movements, transfers from one body to another, and edit its characteristics like its sexual identity, carrying capacity for good and bad deeds, and length of life remotely, and methods for storing souls en mass. He got it patented and finally, after a long legal fight using legal and illegal means (Shaam, Dand, Bhed). Finally, he is the new God, God-R. The God-R has all human weaknesses, ambitions, vices, and whatnot.  He knows that the body is made of short-term decaying material with an optimum age of 35 years and the soul is made up of energy-quants, also degradable with a half-life of 3000 years. Another scientist S-1, who patented the technique to keep the body age fixed at 35 years for 300 years is a collaborator of R-1 and his new name is God-S. God-R has already programmed the souls of all National and International leaders, many intellectuals, intelligent scientists, business tycoons, social workers, and philanthropists to achieve a final Goal, the Kingdom-R or Republic of God. It is an amazing world that exists in the Solar time zone. However, a flaw was noticed by God-R that some of the scientists with a group of a few business tycoons had already flown away from the solar time zone in the short period of the long legal and illegal fight for the patent of Soul. Those absconder souls are away from the God-R system's reach and being in celestial space is also beyond aging and death. Those absconders are searching for a suitable planet to land on and be mortal again, they think that mortality is essential for the cycle to move towards the light of the initial God, and trying to find the abode of the Initial God, that creates the mortal bodies and immortal souls. The time of chaos is all over the Earth and New World Order rules are under framing and will be reviewed soon to tame 8 billion human souls and trillions and trillions of other souls in the Solar time zone. Time is mostly standing still but sometimes it goes back (past) and other time forth (future) to see the new developments, soon, maybe a hundred years in the Solar time zone or maybe a few seconds in the Ruber Time zone where the absconders are roaming to settle. Time will keep on updating you till all the souls are trained to act in harmony for the Goal, thereafter, the Solar time may be killed or be distorted or maybe controlled to move as per the wish of the God-R and S.

Tuesday, October 24, 2023

मेरा राम, तेरा राम और हमारा रावण

 मेरा राम, तेरा राम और हमारा रावण 

      अजीब सा वक़्त है, रावण विजयदशमी मना रहे हैं और राम दर दर भटक रहे हैं. क्या सारे मिथक हमें भरमाने के लिए ही रचे गए हैं, क्या हमें अन्याय को बार-बार सहने के लिए ही राम होने और राम बनने को कहा जाता है? रावण तो अमर है, हर रोज राम रावण से हारता है इस भ्रम के साथ कि शायद कल मैं जीत जाऊं, परन्तु क्या कभी कल आता है इस जद्दोजहद में राम भ्रमित भी होता है सोचता है कि कहीं वही तो रावण नहीं, कहीं उसका नामकरण ही तो गलत नहीं हो गया है? राम कल भी पराजित था, आज भी है, परन्तु कल किसने देखा है वो तो आता ही नहीं. राम ने हमेशा समाज के लिए संघर्ष किया है, परन्तु समाज ने उसके ऊपर हमेशा रावण को ही वरीयता दी है, कारण स्पष्ट है समाज दबंगो से कल भी डरता था, आज भी डरता है, उसी को अपना सब कुछ सौंपता है जिससे उसे डर लगता है, भले मनुष्य को या कहो राम को कल भी समाज ने तिरस्कृत किया था आज भी करता है. हाँ यह अवश्य है कि सभी एक दूसरे को राम बनने की शिक्षा देते हैं, राम की दुहाई भी देते हैं, परन्तु कभी स्वयं को राम बनाने का प्रयास नहीं करते. अगर सभी राम बन जाएंगे तो समाज का ताना बाना उसी तरह छिन्न भिन्न हो जाएगा जैसे सभी के रावण बनने पर.  

       लोग कहते हैं कि रावण एक प्रवृत्ति है, हमारी पापी प्रवृत्ति, उसी तरह जैसे हमारे अंदर कभी-कभी राम प्रवृत्ति जाग्रत हो जाती है, और हम भले मनुष्य बनने का प्रयास करते हैं परन्तु राम प्रवृत्ति बहुधा रावण प्रवृत्ति से हार जाती है और हम करने लगते राम होने का ढौंग या कहो हमारे अंतर्मन में खेली जाने लगती है रामायण और जब यह अंतर्द्वंद और बढ़ता है तब जाग जाता है कंस और दुर्योधन महाभारत शुरू करने को, और राम बन जाते है रणछोड़ जी, कभी अपनी कायरता छुपाने को, कभी शांति स्थापना का ढौंग रचने हेतु यह कहकर कि धर्म की रक्षा करने के लिए अधर्म से दूर जाना ही उचित है, परन्तु जब फिर तन और मन में शक्ति संगृहीत होती है तो मन मचल उठता है दुष्टों का संहार करके शान्ति और धर्म स्थापना के लिए. परन्तु क्या आप जानते हैं कि छणिक राम, छणिक रणछोड़ और छणिक कृष्ण जो हमारे अंतर्मन में जागा था वह देखते देखते ही रावण कब बन जाता है पता ही नहीं चलता, और हर राम, कृष्ण, दुर्योधन और रावण की तरह इस संसार से विदा लेते हैं शायद एक और राम-रावण युद्ध या  महाभारत लड़ने के लिए. 

     कौन राम है, और कौन रावण, कौन कौरव हैं, और कौन पांडव, कौन कंस और कौन कृष्ण, आज तक भी हमारे मन में स्पष्ट नहीं है क्योंकि ये सब तो मैं ही हूँ सनातन रूप से भ्रमित. यदा-कदा ज्ञानियों ने कहा भी कि ये सब हमारे अंदर ही बसने वाली भावनायें, इच्छाएं और भ्रम हैं. सत्य और सनातन जैसी सिर्फ एक ही चीज है, समय चक्र. समय का ही फेर है जो कभी राम रावण बनके सामने आता है तो कभी हमारा धर्मराज हर चीज को जीतने की चाह में जुआ खेलते हुए उसे भी लुटा देता है जो उसका था ही नहीं, धर्मराज कब शकुनि-मन के भ्रमजाल में फंसकर अधर्मी बन जाता है धर्म को भी पता नहीं लगता.

     जहाँ तक धर्म की बात है वह तो एक ही है, भूख, वह जैसी होगी वैसा ही स्वयं का धर्म प्रकट करेगी. भूख के प्रकार अनंत हैं तो धर्म भी अनंत हैं, जो आज धर्म है कल वो निश्चित ही धर्म नहीं रहेगा, यह तो संभव है कि वह अधर्म न बने परन्तु मिटना तय है. 

          धर्म अगर राम है, राम होना है, और राम होने का प्रयास है तो वो तेरा अलग है, मेरा अलग है, और उसका अलग है, परन्तु हमारा रावण भिन्न नहीं है, वह एक ही है, एक ही जो सनातन समय से अपरिवर्तित है, हाँ वह रूप बदलकर कभी मैं हूँ, कभी तू है, कभी माँ, कभी बाप, कभी पुत्र, कभी पुत्री,   कभी पति, कभी पत्नी, कभी भाई, कभी बहन, कभी दुश्मन, कभी दोस्त, कभी साधू, कभी संत, कभी रागी तो कभी बैरागी.  पता नहीं कितना मायावी है रावण, ना कल के राम को पता था न आज के. अतः मित्र तू जो है वही प्रकट हो जा, अगर जैसा है वैसा ही प्रकट करने का साहस जुटा पाया ना तो तू राम रहेगा न ही रावण बन सकेगा, रह जाएगा एक समय के फेर में भटकता हुआ मनुष्य, एक बिन मंजिल का राही, क्योंकि मंजिल तो रावण होते हुए भी राम दिखने की है जब वही नहीं रहेगी तो -----.


एक तेरा राम है, एक मेरा राम है

इस जग में जितने नर-नारी हैं उतने ही भगवान् हैं 

चाहे जितने राम हैं, चाहे जितने भगवान् हैं 

रावण सबमें एक है, और उसका उसे गुमान है .

राम, कृष्ण और और भगवान् बदलते रहते हैं 

रावण ही सत्य है, अजर है, अमर हैं 

वही सनातन है 

यह तुम्हे भी पता 

मुझे भी गुमान है.

क्योंकि, 

तेरा भी एक राम है, मेरा भी एक राम है, परन्तु 

रावण सब का समान है.

यदि रावण मरा तो सब कुछ समाप्त

अतः हम हर वर्ष रावण को मारने का नाटक करते हैं.

जिससे कि रावण सनातन बना रहे. 

Saturday, October 14, 2023

How to break the vicious cycle of low IQ, poverty, and hunger in India?

 How to break the vicious cycle of low IQ, poverty, and hunger in India?


The average IQ of Indians (76.24) is well below that of other countries https://lnkd.in/dHD5DbA9 and the second lowest (just a step above Nepal) in Asia & it may be the reason behind Andhbhakti, worship of Babas, politicians, poverty & hunger (https://lnkd.in/d4VgiDZ4) in India. We may criticize indices at one or another pretext for n number of reasons, but introspection to act is the solution to breaking the vicious cycle of low IQ, poverty, and hunger in India. However, no one is interested in breaking the cycle because those at the top and at the bottom don't need and those under the umbrella of the Gaussian Bell, they can't do it. 
               India is a democratic country and the Government is elected by the majority (the average IQ people) under the Gaussian Bell and is run by the outliers on the right end of the Gaussian Bell Curve to exploit the majority. Having a huge population, in India, there are millions of right-end outliers, many of them either leave the country or keep quiet but many (not all) target to exploit the majority and become Doctors, Engineers, IAS, IPS, Babas, Politicians and Administrators to keep the Nation Hungry, the main reason behind low IQ, and thus the poverty and hunger vicious cycle keeps on moving, it is going on for ages since Sanatan time and seeds are sown sometimes a few thousands years ago when the majority was barred from education and healthy living.

Suggested Solution: 
1. Quality and impartial free education to all. 
2. Abolishment of Jati-Pati at all levels
3. Propagation of Religionlessness or impartiality to all religions
4. A Uniform Civil Code that makes all citizens equal
5. Abolishment of VIP and VVIP culture
6. Abolishment of freebies or free ration. Instead, it may be better to make payment for work than payment without work.
You may suggest more in the comment box to improve our national strength.

Thursday, October 12, 2023

तुलसी के पत्तों पर रहते हैं अच्छे (लाभदायक) एवं बुरे (हानिकारक) दोनों प्रकार के जीवाणु

 तुलसी के पत्तों पर रहते हैं अच्छे (लाभदायक) एवं बुरे (हानिकारक) दोनों प्रकार के जीवाणु

    तुलसी एक भारतीय महाद्वीप में होने वाला एक उगने वाला छोटा झाड़ीदार पवित्र पौधा है जिसे बहुत से सनातन हिन्दू परिवारों में नियमित रूप से पूजा जाता है. इसके पूजे जाने के धार्मिक और वैज्ञानिक कारण हैं. धार्मिक कारणों को एक और रखकर यहाँ सिर्फ तुलसी के औषधीय गुणों कि बात करते हैं. तुलसी के पौधों को पादप जगत की रानी या फिर प्राकृतिक चिकित्सा की माँ के रूप में जाना जाता है.  पूर्व में किये गए अध्ययन बताते हैं कि तुलसी के तेल और इसके पत्तों के रस में बहुत से रोगाणुओं को मारने की शक्ति है, तुलसी के नियमित सेवन से आँतों में रहने वाले जीवाणुओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन आता है, इसका सेवन आपको तनाव मुक्त करता है, शरीर में सूजन को काम करता है, शर्करा के स्टार को नियंत्रित करता है, यह अपने प्रतिउपचायक या ऑक्सीकरणरोधी (एंटीऑक्सीडेंट) गुणों के कारण आपके यकृत (लिवर) को शक्ति देता है तथा कैंसर से भी बचाता है. मछलियों में हुए एक शोध में पाया गया कि तुलसी का मछलियों में बढ़वार को प्रेरित करता है, रोगरोधक शक्ति बढ़ाता है, तथा रोगाणुओं को मारता है. तुलसी का तेल एक बहुत शक्तिशाली जीवाणुनाशक सुगन्धयुक्त तेल है, तुलसी के पत्ते या उनके रस का सेवन विषजनित रोग, पेट दर्द, सामान्य सर्दी खांसी, सरदर्द, मलेरिया, ज्वर, तनाव, अस्थमा, कोलेस्ट्रॉल की  अधिकता, ह्रदय रोग, उलटी या मतली, और सूजन रोकने और कम करने में कारगर माना गया है.

     इतने सब गुण होते हुए भी स्यूडोमोनास नामक जीवाणु इस पौधे में रोग उत्पन्न करके इसकी पत्तियों में चित्ती रोग उत्पन्न करके इस पवित्र पौधे को नष्ट कर देता है. सच ही कहा गया है कि हर शेर को सवा-शेर मिल ही जाता है, और जो आया है उसे देर-सबेर जाना ही होता है.  

       तुलसी के पत्ते अक्सर चाय या काढ़ा बनाने में प्रयुक्त होते हैं और इस प्रक्रिया में सभी प्रकार के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं, परन्तु यदि आप तुलसी के पत्ते स्वास्थ्य लाभ के लिए कच्चे ही खा रहे हैं या प्रसाद, पंचामृत, चरणामृत आदि बनाने में प्रयोग कर रहे हैं या फिर पत्तियों रस निकलकर प्रयोग कर रहे हैं तब आपको यह जान लेना चाहिए कि तुलसी के पत्तों पर बसने वाले रोगाणु आपके इन्तजार में बैठे हैं और पवित्रता आपको रोग ग्रसित होने से नहीं बचा पाएगी. 

        हाल ही भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली के जानपदिक रोग विभाग में हुए अनुसंधान में बरेली के छः स्थानों (आईवीआरआई, सनसिटी, महानगर, राजेंद्रनगर, भोजीपुरा, नार्थ-सिटी)  112 घरों में लगे रामा तुलसी के पौधों से पत्तियों के नमूने एकत्रित करके उनपर उपस्थित लाभदायक और हानिकारक जीवाणुओं का अध्ययन किया गया. तुलसी की पत्तियों के ६०.७१% नमूनों में २३ जातियों के लाभदायक जीवाणु तो ९६.४३% नमूनों में ७३ जातियों के रोगाणु पाए गए. जो कुल चार रोगाणुरहित नमूने मिले उनमें से तीन महानगर और एक भोजीपुरा के घरों से लिए गए थे. आईवीआरआई से लिए गए नमूनों में अच्छे जीवाणुओं के मिलने की सम्भावना सबसे कम पाई गई. 

             अध्ययन से विदित हुआ कि तुलसी के पत्तों पर १०६ प्रकार के जीवाणु उपस्थित थे. कुल ५७९ विलगन (आइसोलेट्स) जो १०६ जातियों में विभाजित किये गए उनमे सबसे ज्यादा नमूनों में (४३ नमूनों में)  पैंटोइया एग्लोमेरैंस  (Pantoea agglomerans) जाति  के जीवाणु थे, इस जाति के जीवाणु मनुष्यों और पशुओं में विविध  प्रकार के रोग और गर्भपात  का कारण बन सकते हैं, दूसरे स्थान पर रहे २१ नमूनों में मिले वर्जीबेसिलस पेंटोथेनटिकस (Virgibacillus pantothenticus) जाति  के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक जीवाणु, इसके बाद १८ नमूनों में मिला एक अन्य स्वास्थ्य कारक बेसिलस कोएगुलेन्स (Bacillus coagulans) जाति का जीवाणु, फिर १७ नमूनों में मिला खाद्यजनित विषुत्पादक बेसिलस सीरियस (Bacillus cereus) जाति  का जीवाणु, १६ नमूनों में एक डेरी उत्पादों और फेरमेन्टरों आदि में सड़न पैदा करने वाला जीओबेसिलस स्टीअरोथेरमोफिलस (Geobacillus stearothermophilus), १३ नमूनों में एक बहुत ही हानिकारक और न्यूमोनिया कारक क्लेबसिएल्ला नुमोनी (Klebsiella pneumoniae) जीवाणु, १२ नमूनों में एक थोड़े कम हानिकारक सिट्रोबैक्टर फ्रूअण्डी (Citrobacter freundii), और लायसिनिबेसिलस स्फेरिकस (Lysinibacillus sphaericus), ११ नमूनों में मिला एक बहुत ही हानिकारक जीवाणु जो अक्सर अस्पतालों में भर्ती रोगियों में संक्रमण करता है, ऐसिनेटोबेक्टर काल्कोऐसेटिक्स-बौमानी (Acinetobacter calcoaceticus-baumanii), और बहुत ही जाना-माना एस्चेरीचिया कोलाई (Escherichia coli) और जेनोरबडस बोविएनि (Xenorhabdus bovienii), जो अक्सर पेट के कीड़ो से फैलने वाला गर्भपात कारक है और कई अन्य रोग उत्पन्न करता है.  

 तुलसी कि पत्तियों के कुछ नमूनों पर और भी घातक रोगाणु जैसे ऐरोमोनस बेस्टीएरम (Aeromonas bestiarum), ऐरोमोनस सुबर्ति (A. schubertii), ऐरोमोनस ट्रोटा (A. trota), ऐरोमोनस हाइड्रोफाईला (A. hydrophila), ऐरोमोनस यूक्रैनोफैला (A. eucranophila), हैफनिया अलवयी (Hafnia alvei), राउल्टेला टेरिजेना (Raoultella terrigena), साल्मोनेला एन्टेरिका (Salmonella enterica), क्लेबसिएल्ला ऑक्सिटोका (Klebsiella oxytoca), क्लेबसिएल्ला ऐरोजिनीज (K. aerogenes), क्लेबसिएल्ला ऐरोमोबिलिस (K. aeromobilis), स्यूडोमोनास एरुजीनोसा (Pseudomonas aeruginosa), ऐसिनेटोबैक्टर लोफी, (Acinetobacter lwoffii)   ऐसिनेटोबैक्टर हेमोलिटिकस (A. haemolyticus),  ऐसिनेटोबैक्टर उर्सिनजी (A. ursngii), ऐसिनेटोबैक्टर चिंदलेरी (A. schindleri), बर्खोल्डेरिया  सेपेसिया (Burkholderia cepacia), मोरेक्सेल्ला  ओस्लोएन्सिस (Moraxella osloensis),  कई जातियों के स्टेफाईलोकॉकस (Staphylococcus) और स्ट्रेप्टोकोकस (Streptococcus) आदि भी पाए गए.

         इस अध्ययन में एक अनोखी बात ये देखने में आयी कि तुलसी की पत्तियों में पाए जाने वाले लाभदायक जीवाणुओं में ऐन्टीबायोटिक के लिए प्रतिरोधकता तुलसी पर मिले रोगाणुओं के मुकाबले कहीं ज्यादा थी. तुलसी के पत्तों पर मिले ५७९ विलगणो (आइसोलेट्स) में से 356 में बहु-ऐन्टीबायोटिक  (तीन से ज्यादा एंटीबायोटिक के लिए, MDR)  प्रतिरोधकता थी तथा 44 आधुनिक  सिफालोस्पोरिन  नामक दवाओं के लिए भी प्रतिरोधी (ESBL-producers) थे. 

            इस अध्ययन से यह सिद्ध हुआ कि यदि आपका वातावरण प्रदूषित है तो उसमे उगने वाले पौधों में भी संक्रमणकारी जीवाणु अवश्य मिलेंगे चाहे वे पौधे कितने ही पूजनीय या पवित्र क्यों न हों. पहले भी बरेली से नीम की पत्तियों पर बहुत से हानिकारक जीवाणुओं का मिलना पुष्ट हुआ है.

 इस अध्ययन को विस्तार से पढ़ने लिए निम्नलिखित सन्दर्भ पर जाएँ: Singh BR, Chandra M, Agri H, Karthikeyan R, Yadav A, Jayakumar V. The assessment of good and bad bacteria in holy basil (Ocimum sanctum) leaves. Infect Dis Res. 2023;4(4):17. doi: 10.53388/IDR2023017.





Wednesday, October 4, 2023

Is Dark Age back in the world?

 Is Dark Age back?

How do you feel about the award of the Nobel Prize 2023 to inventors of the COVID-19 mRNA Vaccine (Katalin Karikó & Drew Weissman)? Both of them are neither inventors of mRNA vaccine technology nor the first users of this technology for humans but their COVID-19 vaccine use caused apathy (hesitancy) for the use of other vaccines among many vaccine users (https://lnkd.in/dUnV4bgi). Created two groups among medicos, ProVaxers and AntiVaxer, as the COVID-19 vaccine uses have been disputed a lot (https://lnkd.in/di5VKt4Y; https://lnkd.in/dmiGGHfh).

A recent study showed that immune function among COVID-19-vaccinated individuals after 8 months of the administration of two doses of the COVID-19 vaccine was lower than that among unvaccinated individuals. According to European Medicines Agency recommendations, frequent COVID-19 booster shots could adversely affect the immune response and may not be feasible (https://lnkd.in/dqxAV9SM; doi:10.1001/jamanetworkopen.2021.40364 & doi: 10.1186/s12985-022-01831-0). 

Further, the forced and blanket COVID-19 vaccination globally over a long period to vaccinate all with insufficient doses and poor quality control of the vaccines (https://lnkd.in/dxXCcDrn) made communities unable to reach thresholds of coverage necessary for herd immunity against COVID-19, thus unnecessarily perpetuating the pandemic and resulted in untold suffering and deaths. The outcome led to Vaccine hesitancy, which is pervasive, misinformed, contagious, and is not limited to COVID-19 vaccination (doi: 0.1080/21645515.2021.1893062).

I feel that the world is now under the Dark Age. I may be wrong and I wish to be wrong, but dark all around does not permit me to be at peace.

Monday, October 2, 2023

विश्व गुरु भारत में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं

 विश्व गुरु भारत में कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं

1. भक्त: जो अपने ईष्ट देवता या देवी की धार्मिक आस्था के हिसाब से पूजा अर्चना करता है. भक्त लोग भी किसी काम के नहीं होते, हाँ राजनतिक रूप से इनका फायदा अक्सर इनके इष्ट देव या देवी के निर्माता अवश्य उठा लेते हैं परन्तु अक्सर भ्रम में रहने के कारण ये लोटे किए तरह इधर से उधर भटकते रहते हैं.

2. अंधभक्त: जो किसी जीवित इंसान की पूजा अर्चना इस हद तक करता है कि यदि उसका स्वामी उससे गोबर खाकर मूत्र पीने के लिए भी कहे तो हिचकिचाता नहीं. ये अक्सर मध्यवर्गीय भारतीयों के समूह से होते हैं जो मौके की नजाकत को देखकर मेंढक की तरह रंग बदलने में माहिर होते हैं. बुद्धि होते हुए भी बुद्धि का प्रयोग करने से कतराते हैं .

3. सनातन अंधभक्त: यह वह अंधभक्त हैं जो अंधभक्ति की चरम सीमा से बहुत आगे आगे जाकर अपने स्वामी के एक आदेश को जैसे कि गोबर खाकर मूत्र पीने के लिए यदि एक बार कह दिया तो वह उसे हमेशा हमेशा के लिए ब्रह्म वाक्य मानकर अनुसरण करते रहते हैं तथा पीढ़ी दर पीढ़ी उस आदेश को प्रथा बनाकर कायम रखते हैं अर्थात स्वामी के आदेश को सनातन सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं. ये किसी जाती या समूह विशेष से नहीं होते बस ये अक्सर बुद्धि का प्रयोग नहीं करते या फिर इनके पास बुद्धि होती नहीं या फिर व्यक्ति पूजा में लुप्त हो जाती है.
सभी प्रकार के अंधभक्त राजनीतिक तौर पर बड़े उपयोगी होते हैं, बस एक बार इनके मन में भक्ति बीज बो दो और ताउम्र वोटों की फसल काटो. परन्तु बीज बोने के लिए पहले इनके मन में अतुल भय जैसे की धर्म हानि का, अधर्मी होने का, लुट जाने का, नौकरी जाने का उत्पन्न करना होता है फिर उसमे धार्मिकता का तड़का लगाते हुए एक हाथ से से धार्मिक उन्माद के बीज बोने होते हैं, और दूसरे हाथ से मुफ्त रासन जैसा कोई उपयुक्त खाद डालना होता है, बड़ा कठिन काम है पर मन मोहने वाली बातें करते करते (झूठ बोलो, बार बार बोलो, इतना बोलो को सुनने वाले को झूठ और सच में ऐसा भ्रम हो जाए के सच झूठ और झूठ सच नजर आने लगे ऐसे के जादूगर और जमेरे का खेल हो) काम हो जाता है.
4. चमचा: मनुष्य की वो प्रजाति जो किसी की नहीं, बस सत्ता के हमेशा पास और साथ, सत्ता के केंद्र में, ये वो हैं, जहाँ पर देखी तवा परात वहीँ गुजारी साड़ी रात. ये अक्सर अपने आप को कुलीन या उच्चच्वर्गीय बताते हैं, बड़े चतुर होते हैं कभी भी भक्त या अंधभक्त नहीं बनते बस बनने का दिखावा करते हैं, इनसे हमेशा सावधान रहने की हिदायत दी जाती है पर शायद ही आजतक कोई इनकी चुपड़ी रोटी खाने से बच पाया हो .
चमचा प्रजाति आपको खुश रखते हुए डुबाने का काम करती है बशर्ते उसके मन में जीवन मरण का इतना भय उत्पन्न न कर दिया जाए के वे अंधभक्त बनने के लिए तत्पर ना हो जाएँ परन्तु इनपर अंधभक्ति चश्मा ज्यादा देर ठहरता नहीं.

वैज्ञानिक डॉ. बूरा के अनुसार
5. जाति: यह वह अस्त्र है जिसके द्वारा बडे-बडे कबीलों को वर्ण वर्गीकरण के जाल में फँसाकर, उन्हेँ अयोग्य होने का जन्मसिद्ध अंतरमन तक अहसास करवाकर, संसाधनों एवं पदों से दूर रखा जाता है (पिरामिड को उल्टा किया जाता है).
6. धर्म: ऐसा औजार जिसके द्वारा विभिन्न जातीय समूहों को संगठित कर उन्हें खतरे का अहसास करवाकर उनका प्रतिनिधित्व किया जाता है और संसाधनों/ पदों पर कब्जा किया जाता है

प्रतिक्रिया करने वाले महानुभाओं से प्रार्थना कि कुछ परिभाषाएं वे भी निर्मित करें और भविष्य में मैं भी उनके लिए प्रयास करूंगा, समय के साथ इनमें विस्तार होता रहेगा, कोई ब्रह्म वाक्य थोड़े ही है कि बदला ना जा सके या उसमे सुधार की संभावना ना हो मनुष्य निर्मित हर चीज में सुधार की हमेंशा संभावना रहती ही है।

Friday, September 22, 2023

Is Indian Holy Cow a Muslim or a Christian? क्या गौ माता मुसलमान है या फिर इसाई?

         Is Indian Holy Cow a Muslim or a Christian? क्या गौ माता मुसलमान है या फिर इसाई?

मैं गौभक्तों, गौरक्षको और गौसेवकों से पूछता हूं:

 क्या आप अपनी मां को कभी अनुपयोगी कहते हैं, या अनउत्पादक कहते हैं या माता कभी अनुपयोगी हो सकती है? अगर नहीं तो फिर आप यह कैसे सह लेते हैं की बहुत से सरकारी संस्थान बुढ़िया और बीमार गायों को अनुपयोगी या अनउत्पादक कहकर नीलाम कर देते हैं, अगर गौरक्षक सरकार और उसके संस्थान ही गौरक्षा से भागते हैं तब फिर गौ रक्षा का गाना क्यों गाते हैं?
     क्या गौ माता मुसलमान है या इसाई जो हम उसे मर जाने पर कब्र में दफना देते है? जब गौमाता स्वर्ग सिधार जाती है तब हम गौ माता का हिंदू रीति रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार क्यों नहीं करते? हम क्यों उसे ईसाई या मुसलमान तरीकों से जमीन में दफना देते हैं?
    क्या कोई बता पाएगा कि सनातन संस्कृति में गौ माता का ऐसा अपमान, जैसा आज हो रहा है, कभी पहले भी हुआ है? आज गौ माता बेघर होकर रह गई है, दर-दर की ठोकरे खाती है, गौशालाओं अर्थात वृद्धाश्रम में आश्रय लेने के लिए मजबूर है, सरकार के दिए Rs. 30 या Rs.50 के दम पर जीवन यापन करने को मजबूर है, हम कैसे गौपुत्र हैं, हम कैसे गौभक्त हैं , हम कैसे गौसेवक हैं?

    यह सब तो यही दिखाता है कि हम सिर्फ झूठ-मूठ के सनातनी हैं, झूठ-मूठ के गौभक्त, झूठ-मूठ के गौसेवक हैं, और सिर्फ दिखावटी हिंदू हैं, हमारा उद्देश्य ना गौरक्षा है ना गौसंवर्धन, तब फिर आप ही बताओ कि हम क्या हैं? और हमारा इस झूठ-मूठ की गौसेवा और गौरक्षा के पीछे असली उद्देश्य क्या है?

      आज ज्यादातर मुस्लिम और ईसाई देशों  में गौसंवर्धन के नए-नए कीर्तिमान बन रहे हैं, भारत भी वहां से नई नई  गौसंवर्धन तकनीकों, गौमाताओं और उन्नत नस्ल सांडो (पता नहीं उसे गौपिता कहूं या सहोदर) या उनके उन्नत वीर्य का आयात कर रहा है। वहां आपको गौमाता भटकती हुई नहीं दिखेगी और ना ही उसे कोई अनुपयोगी और अनुत्पादक कहता है, कारण वहां गाय बूढी नहीं होने दी जाती, परन्तु उसकी देखभाल और उसके आराम में कोई कोताही भी बर्दाश्त नहीं की जाती तो कभी-कभी यह विचार आता है की शायद गौमाता मुस्लिम है, या फिर ईसाई, जहाँ उसे और उसकी संतति को  शायद बहन या बेटी या फिर शरीक़ समझा जाता है (शरीक़ को शरीक़ बर्दास्त कम ही होता, भारत और विश्व के न्यायालयों में ज्यादातर मुकदमें शरीक़ों के मध्य ही लड़े जाते हैं और एक दूसरे की हत्या भी एक आम बात है), जो एक दूसरे को मारते हैं तो एक दूसरे के लिए मरते भी हैं?  

    माता तो एक ही होती है, उसका संवर्धन नहीं, उसकी सेवा की जाती है, वो संतान की सेवा करती है, संवर्धन भी करती है, अतः जब हमने गाय को माता बना लिया तो संवर्धन तो कहना झूठ ही होगा।  शायद इसलिए हम ना तो गौसंवर्धन के वैज्ञानिक तरीकों का विकास करते  हैं ना ही अपनाते हैं। हाँ जहाँ तक सेवा की बात है तो उसका प्रचलन हिन्दू समाज में कम ही दिखता है, शोषण का ज्यादा।  हमारे हिन्दू समाज में सेवा करने वालों (सेवादारों) का एक अलग समूह ही बना दिया गया है जिसे हम शूद्र कहते हैं, जिसे  हम सम्मान देना तो दूर की बात अछूत कहकर पास बैठने पर भी परहेज करते हैं।  यही तो है हमारी सनातन संस्कृति और सेवाभाव। 

     तो अब सोचिए, और हो सके तो उत्तर भी दीजिये कि  आप सच में गौभक्त, गौसेवक या गौरक्षक हैं या फिर यूँ ही वक्त काटते घूम रहें हैं, या फिर आपका वास्तविक इरादा गौमाता का मंदिर बनाकर पत्थर की गाय को पूजना है, जो न कभी बूढी होगी, न काटी जाएगी, न अनुत्पादक होगी, न खायेगी, न पीयेगी, न गोबर करेगी और न ही गंधयुक्त मूत्र द्वारा गंधीला वातावरण उत्पन्न करेगी, बस शांत और संतुष्ट गौमाता मंदिर में विराजमान रहेगी, जहाँ मंदिर के अंदर पुजारी और बाहर भिखारी (कुछ हनुमान रूपा बन्दर भी) हिन्दुओं से उनकी जेब में पड़ी दमड़ी, और चावल या चने के दानों पर  पर नजर गड़ाए बैठे होंगे। 

Published at: https://www.indusnews24x7.com/is-mother-cow-a-muslim-or-a-christian/

Sunday, September 17, 2023

Jawan: The movie

 Jawan: The movie that nurtures Sanatan Dharma

जवान:  एक फिल्म जो पोषित करती है एक सनातन सत्य या फिर सनातन झूठ  

Nothing is right and nothing is wrong in Kaliyug (the transition period)

फिल्म जवान कि समीक्षा: एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण 

        It is a movie that is earning a lot, and Indians are showering their earnings on this movie probably Indians hope that a Superman/ or God will come to save them from the politicians of India or free them of the Gundaraj or their poverty or injustice. The film portrays a hero bringing justice to the people using his villain-like methods. The use of villain-like or injusticeful methods in Mahabharata by Pandavas to win the war to establish the Dharma has been justified by Lord Krishna himself and he predicted that in Kaliyug more brutal methods will be used to establish Dharma, an imaginary Good Path of life.  The film tries to malign the image of Indian politicians those politicians are coming from Indians only. Accepting all the flaws in the Indian system, and being the sufferer in the system for telling the truth and exposing the corruption I am unable to digest the approach suggested, the highly improbable approach of being Superman or coming of Superman to save you. Certainly, the problems depicted in the film like torturing poor farmers for petty loans, waiving loans of billions of rupees taken by billionaires at the expense of tax-payers money, making public education and health services useless or hell in the name of services, extracting people by taxing them for every joy of politicians, punishing to the death to honest people serving the nation at expense of their lives and many more. Still, the film tries to bluff the people about the power of their vote in a country where voters are hungry to give their vote either in return for a few buckets of ration for their family or a few sips or hooch, voters are uneducated and those educated lives in fear or in selfishness, your vote can be purchased, manipulated, hacked, or wasted (due to change of party by the greedy/ dishonest public representatives) and the whole electoral system is kept hostage, or forced to be just a pimp for the mighty or is made mistress of a few.

       In Gita, the great Epic of Santan dharma, Shrikrishna indicated time and again and practised in the Mahabharata war that not the path but the victory is important.  The Jawan film also tries to give the same message time and again. Still, I am not convinced, I believe that if the path is wrong you can't reach the right place, yes you can prove that the place you reached is the right one because the definition of Dharm, right and wrong is construed by the winners, the loser is always the wrong or adharmi. This is the only principle the human race has followed since its origin rest is just fictious. In different ages the definition of Dharma kept on changing, those who adjusted the change became successful, and the Brahmins (the winners) who failed to adjust were called Kafirs, Shudras or untouchables.

     It is a movie that nurtures the hypothesis of Sanatan Dharma saying that someone (the God incarnation) will come to rescue you and restore Dharma. Sometimes it appears to confirm that we are progressing towards Bhakti-Kaal, the era when Indians were devoid of any hopes for the betterment of their lives and started believing, that whoever the king their lives of slaves were not going to change (कोऊ हो राजा हमें का हानि, दासी छोड़ न बनिहैं रानी ). The period when so many incarnations of Gods were imagined, so many Rmayans and Ramas, so many forms of Lord Krishna, Ganesha, and Shiva were worshipped along with their mighty counterparts (wives). The depression was so great that they got solace in Bhakti in Bhaktikaal and also imagined that Kaliyug was going to be more detrimental to humanity, and which is proving itself.

      The Movie is full of entertainment and people enjoy it because they enjoy pain, defeat, and victory, if it fits their imagination. The objectives of the film appear to educate people, however, people don't like to be educated but entertained. The movie fulfills people's expectations for entertainment, a superhero image of Sharukh, and their expectations that someone shall come any day to ward off their drudgery.

        However, even if you follow the instructions in the movie to elect your leaders, you are certain to be bluffed, a few years ago we elected a Mahamanav based on his promises to remove our poverty, grudges with the system, transparency, and end of black money and the outcome we all know and this film also portray the same broken faith and lost transparency.

    Not only once but many times and I always felt treachery at the hands of politicians and administration.  My experience is, never believe politicians and administration while digging for some truth or exposing corruption, or else you will be scalded in boiling acids.

    I liked the film but then thought about what I could do and dare to do to save humanity, honesty, and my nationalism to further feel my humiliation ongoing for the last two decades. 


हिंदी स्वरुप

यह एक ऐसी फिल्म है जो खूब कमाई कर रही है, और भारतीय इस फिल्म पर अपनी कमाई की बारिश कर रहे हैं, शायद भारतीयों को उम्मीद है कि कोई सुपरमैन/या भगवान उन्हें भारत के राजनेताओं से बचाने या गुंडाराज या उनकी गरीबी या अन्याय से मुक्त करने के लिए आएगा।  फिल्म में एक नायक को अपने खलनायक जैसे तरीकों का उपयोग करके लोगों को न्याय दिलाते हुए दिखाया गया है।  महाभारत में पांडवों द्वारा धर्म की स्थापना के लिए युद्ध जीतने के लिए खलनायक जैसे या अन्यायपूर्ण तरीकों के इस्तेमाल को स्वयं भगवान कृष्ण ने उचित ठहराया है और उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि कलियुग में धर्म की स्थापना के लिए और अधिक क्रूर तरीकों का इस्तेमाल किया जाएगा.  धर्म, जो जीवन का एक काल्पनिक अच्छा मार्ग है। फिल्म में भारतीय राजनेताओं की छवि खराब करने की कोशिश की गई है, वो राजनेता भारतीयों से ही आते हैं।  भारतीय व्यवस्था की सभी खामियों को स्वीकार करते हुए, सच बोलने और भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए व्यवस्था में पीड़ित होने के नाते, मैं सुझाए गए दृष्टिकोण, सुपरमैन बनने या आपको बचाने के लिए सुपरमैन के आने के अत्यधिक असंभव दृष्टिकोण को पचाने में असमर्थ हूं।  निश्चित रूप से फिल्म में गरीब किसानों को छोटे-मोटे कर्ज के लिए प्रताड़ित करना, करदाताओं के पैसे की कीमत पर अरबपतियों द्वारा लिए गए अरबों रुपये के कर्ज को माफ करना, सार्वजनिक शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को बेकार या नरक बना देना, सेवाओं के नाम पर जबरन वसूली करना जैसी समस्याओं को दर्शाया गया है।  राजनेताओं की हर ख़ुशी के लिए लोगों पर कर लगाना, अपनी जान की कीमत पर देश की सेवा करने वाले ईमानदार लोगों को मौत की सज़ा देना, और भी बहुत कुछ।  फिर भी, फिल्म ऐसे देश में लोगों को उनके वोट की ताकत के बारे में झांसा देने की कोशिश करती है, जहां मतदाता अपने परिवार के लिए राशन  दानों या कुछ घूंट या शराब के बदले में अपना वोट देने के लिए भूखे हैं, मतदाता अशिक्षित हैं, और ,शिक्षित लोग भय में या स्वार्थ में रहते हैं, आपका वोट खरीदा जा सकता है, हेरफेर किया जा सकता है, हैक किया जा सकता है, या बर्बाद किया जा सकता है (लालची/बेईमान जन प्रतिनिधियों द्वारा पार्टी बदलने के कारण) और पूरी चुनाव प्रणाली को बंधक बना लिया जाता है, या सिर्फ एक दलाल बनने के लिए मजबूर किया जाता है,  पूरी चुनाव प्रणाली को ताकतवर के लिए या कुछ लोगों की रखैल बना दिया जाता है।
    गीता में, माधव ने अर्जुन को बार बार इंगित किया है और महाभारत युद्ध में उनसे  चरितार्थ भी कराया है कि युद्ध में नैतिकता नहीं विजय महत्वपूर्ण है, रास्ता नहीं मंजिल महत्वपूर्ण है; और यह फिल्म फिल्म भी यही सन्देश बारम्बार देती लगती है, फिर भी मन विचलित होता है कि रास्ता यदि गलत है तो सही मंजिल तक नहीं पहुंचा जा सकता, हाँ जहाँ पहुंचे उस मंजिल को सही सिद्ध करना आसान है क्योंकि धर्म की परिभाषा जीतने वाले गढ़ते हैं,  हारने वाला हमेश अधर्मी ही कहलाता है, यही मानव का सिद्ध धर्म है बाकि सब खोखली बातें (गल्प) हैं, धर्म हर युग में बदलते रहे हैं और बदलते रहेंगे इनसे सामंजस्य जो बिठालें वे पंडित कहलाते हैं और बाकि सभी शूद्र, काफ़िर या त्याज्य । 
              यह एक ऐसी फिल्म है जो सनातन धर्म की उस परिकल्पना का पोषण करती है जिसमें कहा गया है कि कोई (भगवान का अवतार) आपको बचाने और धर्म को बहाल करने के लिए आएगा।  कभी-कभी यह इस बात की पुष्टि करती प्रतीत होती है कि हम भक्ति-काल की ओर बढ़ रहे हैं, वह युग जब भारतीयों को अपने जीवन की बेहतरी की कोई उम्मीद नहीं थी, और उन्होंने यह मानना ​​​​शुरू कर दिया था कि राजा कोई भी हो, उनके गुलामी के जीवन में बदलाव नहीं आएगा (कोऊ हो राजा हमें क्या हानि, दासी छोड़ न बनिहें रानी).  वह काल जब देवताओं के इतने सारे अवतारों की कल्पना की गई, इतने सारे रामायण और राम, भगवान कृष्ण, गणेश और शिव के इतने सारे रूपों की  उनकी शक्ति स्वरूपा या लक्ष्मी स्वरूपा पत्नियों की परिकल्पना की गई उनके साथ पूजा के अनगिनत विधान सृजित किये गए (क्योंकि कोई भी विधान उन्हें गुलामी से मुक्त कराने में उपयोगी सिद्ध नहीं हो रहा था)।  अवसाद इतना अधिक था कि उन्हें भक्तिकाल में भक्ति से सांत्वना मिली और उन्होंने यह भी कल्पना की कि कलियुग मानवता के लिए अधिक हानिकारक होने वाला है, और जो स्वयं सिद्ध हो रहा है।
      फिल्म मनोरंजन से भरपूर है और लोग इसका आनंद लेते हैं क्योंकि  सभी लोग  आपके दर्द, हार और जीत का भी आनंद लेते हैं अगर यह उनकी कल्पना पर फिट बैठता है।  फिल्म का उद्देश्य लोगों को शिक्षित करना प्रतीत होता है, हालाँकि, लोगों को शिक्षित होना नहीं बल्कि मनोरंजन करना पसंद है।  यह फिल्म मनोरंजन के लिए लोगों की अपेक्षाओं, शारुख की सुपरहीरो छवि और उनकी अपेक्षाओं को पूरा करती है कि किसी भी दिन कोई उनके कष्ट को दूर करने के लिए आएगा।
   हालाँकि, यदि आप अपने नेताओं को चुनने के लिए फिल्म में दिए गए निर्देशों का पालन भी करते हैं, तो भी आपको धोखा दिया जाना निश्चित है, कुछ साल पहले हमने अपनी गरीबी दूर करने, सिस्टम से शिकायतें दूर करने, पारदर्शिता लाने और भ्रष्टाचार को खत्म करने के उनके वादों के आधार पर एक महामानव को चुना था।  काला धन और उसके परिणाम हम सभी जानते हैं और यह फिल्म भी उसी टूटे हुए विश्वास और खोई हुई पारदर्शिता को दर्शाती है, और उसे पुनर्स्थापित  करने का पूरा प्रयास करती है।
 केवल एक बार नहीं, बल्कि कई बार मुझे राजनेताओं और प्रशासन के हाथों विश्वासघात का एहसास हुआ।  मेरा अनुभव यह है कि किसी सच्चाई की खोज करते समय या भ्रष्टाचार को उजागर करते समय कभी भी राजनेताओं और प्रशासन पर विश्वास न करें, अन्यथा आप उनकी आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के उबलते तेजाब में झुलस जायेंगे।
 मुझे फिल्म पसंद आई लेकिन फिर मैंने सोचा कि मानवता, ईमानदारी और अपने राष्ट्रवाद को बचाने के लिए मैं क्या कर सकता हूं और क्या करने का साहस कर सकता हूं ताकि पिछले दो दशकों से जारी अपने अनवरत अपमान को और गहनता से अनुभव कर सकूं।

इसी सन्दर्भ में एक कविता

मैं सच बोलता रहा उनके कुकर्मों के सबूत टटोलता रहा इसीलिए  

सबकी नजरों में गिराने के लिए मुझे ही मुजरिम बना दिया, 

मेरी ईमादारी पे कितने ही सवाल खड़े कर दिए, 

और कितने ही इल्जाम मेरे पर चस्पा कर दिए, 

इतना आसान नहीं रहा कभी भी जीना मेरे लिए,

रोज मौत की राह पर खड़ा था मैं मौत के इंतजार में,

फिर भी खड़ा ही रहा, जाने क्यों और कैसे, किसके लिए .

लोग सोचते तो होंगे कि झंझावात तो तेज काफी थे फिर ये दिया किस तरह जलता हुआ रह गया,

मैं तो मर गया  था उसी दिन जिस दिन मेरे ईमान ने बिकने से मना कर दिया,

लगता है आज मैं जिन्दा नहीं बस मेरे ईमान की परछाईं देखते हैं लोग,

हम जीते हैं यहाँ सभी एक दिन मर जाने के लिए,

पर मैंने मरने के लिए कितने ही जहर के घूँट पी लिए. 

फिर भी जीए हम तो बस इस दुनिया को झूठ जाना,

ख़ुशी से मर गए होते कभी के अगर दुनिया कि सच्चाई का ऐतबार होता.

लोग कहते हैं रोज ही मुझसे, कि सच कभी हारता नहीं,

पर मेरे नसीब देखो, रोज ही सच को हारकर मरते देखा,

शायद सच भी होते हैं बहुत तरह के, भगवानो की तरह,

किस-किसपे लाएं ईमान या फिर जियें बेईमानो कि तरह.

कैसा लगता है जब आपको इमानदारी के लिए कोई बेईमान कहे, 

कैसे लगता है जब देश में देशभक्ति के लिए मुकदमा लड़े कोई,

बस इंतजार करता है इंसान की इंसानियत का,

या फिर उस ईश्वर के आने का, जो ना आया था कभी . 

उठ जा भारतवासी अब ना आएंगे कोई भगवान तुझे बचाने,

या तो अपना भगवान् खुद बनकर मर या फिर इन्तजार करके मर जा.  

Wednesday, September 6, 2023

God in the vision of a microbiologist: एक सूक्ष्मजीव विज्ञानी की दृष्टि से ईश्वर

 God in the vision of a microbiologist

एक सूक्ष्मजीव विज्ञानी की दृष्टि से ईश्वर

    ईश्वर है या नहीं यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर मनुष्य प्रारब्ध से ही ढूंढता रहा है. कोई 100 साल पहले हमें नहीं पता था कि जीवाणु, विषाणु और उन्हें निर्माण करने वाली सूक्ष्म से सूक्ष्मतर कणिकाएं हैं भी कि नहीं, परंतु मनुष्य ने अपनी दृष्टि में विस्तार किया, विस्तार करने के लिए नए-नए उपकरण बनाए और हम अदृश्य को भी देखने लगे. कल हो सकता है ऐसा दृष्टि यंत्र बना ले कि हम उस तत्व को भी जान लें जो हमारी सांस का आना-जाना जारी रखता है हमें जीवित और मृत के रूप में जानने योग्य बनाता है, कुछ लोग उसे आत्मा कहते हैं और कुछ लोग उसे परमात्मा का अंश परंतु सत्य अंतहीन है.

    इस सबसे यही सिद्ध होता है कि जो हम आज देख रहे हैं वह सत्य नहीं है, या तो वह अर्ध-सत्य है या वह भ्रम है. और हम अपने प्रारब्ध से ही भ्रम को सत्य समझते रहे हैं, और सत्य का हमें आज भी पता नहीं.

    हम अक्सर समझते हैं कि मनुष्य इस पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान जीव है परंतु मैं कभी-कभी सोचता हूं कि इस बुद्धिमान जीव ने अपने लिए क्या कभी ऐसे घर बनाए हैं जहां यह निश्चित होकर आनंद में रहे जैसे कि कितने ही जीवाणु और विषाणु हमारे शरीर में निवास करते हैं, बिना कोई प्रयास जैसा कि हमें रोज करना पड़ता है, चलते-फिरते घर, खाने-पीने का इंतजाम करते घर, हमारे बच्चों को पालने वाले घर, हमारे लिए आरामदायक वातावरण का निर्माण करते घर, हमें कश्टकारी पॉल्यूशन से बचाने वाले घर, अपने को मिटाकर भी हमें बचाने वाले घर. परंतु जीवाणु विषाणु और जाने कितने ही हमारी समझ के हिसाब से निरबुद्धि जीवों ने बड़े जीवो और मनुष्य के शरीर के रूप में कितने ही सुंदर और आरामदायक घरों का निर्माण किया है.
इस छोटे से विवरण से ईश्वर और उसे समझने वाली बुद्धि के बारे में एक और भ्रम का निर्माण होता है और ब्रह्म (भ्रम) में हमें जीने का एहसास भी नहीं होता.

    मेरे विचार से ईश्वर आस्था का नहीं विज्ञान का विषय है आस्थाएं समय और काल के अनुसार बदलती रहती है अर्थात ईश्वर भी बदलता रहता है, परंतु ऐसा सत्य प्रतीत नहीं होता इसलिए आज ईश्वर आस्था नहीं सत्य की खोज का विषय होना चाहिए.


    Whether God exists or not is such a question, the answer to which man has been searching since its origin. Some 100 years ago we did not know whether bacteria, viruses, and the smallest particles that create the material world existed or not, but man expanded his vision, and created new tools to expand the vision and now we can see even the invisible. Tomorrow maybe such a vision instrument will be made that we will also know that element that keeps our breath coming and going and makes us capable of knowing us as alive and dead, some people call it soul, and some people call it part of God. But the truth is endless.

    All this proves that what we are seeing today is not the truth, it is either a half-truth or it is an illusion. Since our origin, we have been considering illusion as truth, and even today we do not know the truth.

    We often think that man is the most intelligent creature on this earth but I sometimes wonder whether this intelligent creature has ever made such a house for itself where it can live safely and happily like so many bacteria and viruses live in our body. Tiny creatures live in all of us without any effort as we have to do every day, in mobile homes, in homes that provide food and drinks free and all the time, in homes that raise our children, in homes that create a comfortable environment for them, in homes that protect them from the pesky pollution, homes that save them even after destroying themselves. According to our understanding, bacteria, viruses and many other tiny creatures are mindless but they have built many beautiful and comfortable houses in the form of giant animals and human bodies.
This small detail creates another illusion about God and the intellect that understands Him and we do not even realize that we live in Brahman (an illusion).

    In my opinion, God should not be a matter of faith but of science to save our generations from being Andhbhakts (blind devotees) but a thoughtful generation. Beliefs keep changing according to time and period, that is, God also keeps changing, but this does not seem to be true, hence Today God should not be a matter of faith, it should be a subject of search for truth.