Friday, September 22, 2023

Is Indian Holy Cow a Muslim or a Christian? क्या गौ माता मुसलमान है या फिर इसाई?

         Is Indian Holy Cow a Muslim or a Christian? क्या गौ माता मुसलमान है या फिर इसाई?

मैं गौभक्तों, गौरक्षको और गौसेवकों से पूछता हूं:

 क्या आप अपनी मां को कभी अनुपयोगी कहते हैं, या अनउत्पादक कहते हैं या माता कभी अनुपयोगी हो सकती है? अगर नहीं तो फिर आप यह कैसे सह लेते हैं की बहुत से सरकारी संस्थान बुढ़िया और बीमार गायों को अनुपयोगी या अनउत्पादक कहकर नीलाम कर देते हैं, अगर गौरक्षक सरकार और उसके संस्थान ही गौरक्षा से भागते हैं तब फिर गौ रक्षा का गाना क्यों गाते हैं?
     क्या गौ माता मुसलमान है या इसाई जो हम उसे मर जाने पर कब्र में दफना देते है? जब गौमाता स्वर्ग सिधार जाती है तब हम गौ माता का हिंदू रीति रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार क्यों नहीं करते? हम क्यों उसे ईसाई या मुसलमान तरीकों से जमीन में दफना देते हैं?
    क्या कोई बता पाएगा कि सनातन संस्कृति में गौ माता का ऐसा अपमान, जैसा आज हो रहा है, कभी पहले भी हुआ है? आज गौ माता बेघर होकर रह गई है, दर-दर की ठोकरे खाती है, गौशालाओं अर्थात वृद्धाश्रम में आश्रय लेने के लिए मजबूर है, सरकार के दिए Rs. 30 या Rs.50 के दम पर जीवन यापन करने को मजबूर है, हम कैसे गौपुत्र हैं, हम कैसे गौभक्त हैं , हम कैसे गौसेवक हैं?

    यह सब तो यही दिखाता है कि हम सिर्फ झूठ-मूठ के सनातनी हैं, झूठ-मूठ के गौभक्त, झूठ-मूठ के गौसेवक हैं, और सिर्फ दिखावटी हिंदू हैं, हमारा उद्देश्य ना गौरक्षा है ना गौसंवर्धन, तब फिर आप ही बताओ कि हम क्या हैं? और हमारा इस झूठ-मूठ की गौसेवा और गौरक्षा के पीछे असली उद्देश्य क्या है?

      आज ज्यादातर मुस्लिम और ईसाई देशों  में गौसंवर्धन के नए-नए कीर्तिमान बन रहे हैं, भारत भी वहां से नई नई  गौसंवर्धन तकनीकों, गौमाताओं और उन्नत नस्ल सांडो (पता नहीं उसे गौपिता कहूं या सहोदर) या उनके उन्नत वीर्य का आयात कर रहा है। वहां आपको गौमाता भटकती हुई नहीं दिखेगी और ना ही उसे कोई अनुपयोगी और अनुत्पादक कहता है, कारण वहां गाय बूढी नहीं होने दी जाती, परन्तु उसकी देखभाल और उसके आराम में कोई कोताही भी बर्दाश्त नहीं की जाती तो कभी-कभी यह विचार आता है की शायद गौमाता मुस्लिम है, या फिर ईसाई, जहाँ उसे और उसकी संतति को  शायद बहन या बेटी या फिर शरीक़ समझा जाता है (शरीक़ को शरीक़ बर्दास्त कम ही होता, भारत और विश्व के न्यायालयों में ज्यादातर मुकदमें शरीक़ों के मध्य ही लड़े जाते हैं और एक दूसरे की हत्या भी एक आम बात है), जो एक दूसरे को मारते हैं तो एक दूसरे के लिए मरते भी हैं?  

    माता तो एक ही होती है, उसका संवर्धन नहीं, उसकी सेवा की जाती है, वो संतान की सेवा करती है, संवर्धन भी करती है, अतः जब हमने गाय को माता बना लिया तो संवर्धन तो कहना झूठ ही होगा।  शायद इसलिए हम ना तो गौसंवर्धन के वैज्ञानिक तरीकों का विकास करते  हैं ना ही अपनाते हैं। हाँ जहाँ तक सेवा की बात है तो उसका प्रचलन हिन्दू समाज में कम ही दिखता है, शोषण का ज्यादा।  हमारे हिन्दू समाज में सेवा करने वालों (सेवादारों) का एक अलग समूह ही बना दिया गया है जिसे हम शूद्र कहते हैं, जिसे  हम सम्मान देना तो दूर की बात अछूत कहकर पास बैठने पर भी परहेज करते हैं।  यही तो है हमारी सनातन संस्कृति और सेवाभाव। 

     तो अब सोचिए, और हो सके तो उत्तर भी दीजिये कि  आप सच में गौभक्त, गौसेवक या गौरक्षक हैं या फिर यूँ ही वक्त काटते घूम रहें हैं, या फिर आपका वास्तविक इरादा गौमाता का मंदिर बनाकर पत्थर की गाय को पूजना है, जो न कभी बूढी होगी, न काटी जाएगी, न अनुत्पादक होगी, न खायेगी, न पीयेगी, न गोबर करेगी और न ही गंधयुक्त मूत्र द्वारा गंधीला वातावरण उत्पन्न करेगी, बस शांत और संतुष्ट गौमाता मंदिर में विराजमान रहेगी, जहाँ मंदिर के अंदर पुजारी और बाहर भिखारी (कुछ हनुमान रूपा बन्दर भी) हिन्दुओं से उनकी जेब में पड़ी दमड़ी, और चावल या चने के दानों पर  पर नजर गड़ाए बैठे होंगे। 

Published at: https://www.indusnews24x7.com/is-mother-cow-a-muslim-or-a-christian/

Sunday, September 17, 2023

Jawan: The movie

 Jawan: The movie that nurtures Sanatan Dharma

जवान:  एक फिल्म जो पोषित करती है एक सनातन सत्य या फिर सनातन झूठ  

Nothing is right and nothing is wrong in Kaliyug (the transition period)

फिल्म जवान कि समीक्षा: एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण 

        It is a movie that is earning a lot, and Indians are showering their earnings on this movie probably Indians hope that a Superman/ or God will come to save them from the politicians of India or free them of the Gundaraj or their poverty or injustice. The film portrays a hero bringing justice to the people using his villain-like methods. The use of villain-like or injusticeful methods in Mahabharata by Pandavas to win the war to establish the Dharma has been justified by Lord Krishna himself and he predicted that in Kaliyug more brutal methods will be used to establish Dharma, an imaginary Good Path of life.  The film tries to malign the image of Indian politicians those politicians are coming from Indians only. Accepting all the flaws in the Indian system, and being the sufferer in the system for telling the truth and exposing the corruption I am unable to digest the approach suggested, the highly improbable approach of being Superman or coming of Superman to save you. Certainly, the problems depicted in the film like torturing poor farmers for petty loans, waiving loans of billions of rupees taken by billionaires at the expense of tax-payers money, making public education and health services useless or hell in the name of services, extracting people by taxing them for every joy of politicians, punishing to the death to honest people serving the nation at expense of their lives and many more. Still, the film tries to bluff the people about the power of their vote in a country where voters are hungry to give their vote either in return for a few buckets of ration for their family or a few sips or hooch, voters are uneducated and those educated lives in fear or in selfishness, your vote can be purchased, manipulated, hacked, or wasted (due to change of party by the greedy/ dishonest public representatives) and the whole electoral system is kept hostage, or forced to be just a pimp for the mighty or is made mistress of a few.

       In Gita, the great Epic of Santan dharma, Shrikrishna indicated time and again and practised in the Mahabharata war that not the path but the victory is important.  The Jawan film also tries to give the same message time and again. Still, I am not convinced, I believe that if the path is wrong you can't reach the right place, yes you can prove that the place you reached is the right one because the definition of Dharm, right and wrong is construed by the winners, the loser is always the wrong or adharmi. This is the only principle the human race has followed since its origin rest is just fictious. In different ages the definition of Dharma kept on changing, those who adjusted the change became successful, and the Brahmins (the winners) who failed to adjust were called Kafirs, Shudras or untouchables.

     It is a movie that nurtures the hypothesis of Sanatan Dharma saying that someone (the God incarnation) will come to rescue you and restore Dharma. Sometimes it appears to confirm that we are progressing towards Bhakti-Kaal, the era when Indians were devoid of any hopes for the betterment of their lives and started believing, that whoever the king their lives of slaves were not going to change (कोऊ हो राजा हमें का हानि, दासी छोड़ न बनिहैं रानी ). The period when so many incarnations of Gods were imagined, so many Rmayans and Ramas, so many forms of Lord Krishna, Ganesha, and Shiva were worshipped along with their mighty counterparts (wives). The depression was so great that they got solace in Bhakti in Bhaktikaal and also imagined that Kaliyug was going to be more detrimental to humanity, and which is proving itself.

      The Movie is full of entertainment and people enjoy it because they enjoy pain, defeat, and victory, if it fits their imagination. The objectives of the film appear to educate people, however, people don't like to be educated but entertained. The movie fulfills people's expectations for entertainment, a superhero image of Sharukh, and their expectations that someone shall come any day to ward off their drudgery.

        However, even if you follow the instructions in the movie to elect your leaders, you are certain to be bluffed, a few years ago we elected a Mahamanav based on his promises to remove our poverty, grudges with the system, transparency, and end of black money and the outcome we all know and this film also portray the same broken faith and lost transparency.

    Not only once but many times and I always felt treachery at the hands of politicians and administration.  My experience is, never believe politicians and administration while digging for some truth or exposing corruption, or else you will be scalded in boiling acids.

    I liked the film but then thought about what I could do and dare to do to save humanity, honesty, and my nationalism to further feel my humiliation ongoing for the last two decades. 


हिंदी स्वरुप

यह एक ऐसी फिल्म है जो खूब कमाई कर रही है, और भारतीय इस फिल्म पर अपनी कमाई की बारिश कर रहे हैं, शायद भारतीयों को उम्मीद है कि कोई सुपरमैन/या भगवान उन्हें भारत के राजनेताओं से बचाने या गुंडाराज या उनकी गरीबी या अन्याय से मुक्त करने के लिए आएगा।  फिल्म में एक नायक को अपने खलनायक जैसे तरीकों का उपयोग करके लोगों को न्याय दिलाते हुए दिखाया गया है।  महाभारत में पांडवों द्वारा धर्म की स्थापना के लिए युद्ध जीतने के लिए खलनायक जैसे या अन्यायपूर्ण तरीकों के इस्तेमाल को स्वयं भगवान कृष्ण ने उचित ठहराया है और उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि कलियुग में धर्म की स्थापना के लिए और अधिक क्रूर तरीकों का इस्तेमाल किया जाएगा.  धर्म, जो जीवन का एक काल्पनिक अच्छा मार्ग है। फिल्म में भारतीय राजनेताओं की छवि खराब करने की कोशिश की गई है, वो राजनेता भारतीयों से ही आते हैं।  भारतीय व्यवस्था की सभी खामियों को स्वीकार करते हुए, सच बोलने और भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए व्यवस्था में पीड़ित होने के नाते, मैं सुझाए गए दृष्टिकोण, सुपरमैन बनने या आपको बचाने के लिए सुपरमैन के आने के अत्यधिक असंभव दृष्टिकोण को पचाने में असमर्थ हूं।  निश्चित रूप से फिल्म में गरीब किसानों को छोटे-मोटे कर्ज के लिए प्रताड़ित करना, करदाताओं के पैसे की कीमत पर अरबपतियों द्वारा लिए गए अरबों रुपये के कर्ज को माफ करना, सार्वजनिक शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को बेकार या नरक बना देना, सेवाओं के नाम पर जबरन वसूली करना जैसी समस्याओं को दर्शाया गया है।  राजनेताओं की हर ख़ुशी के लिए लोगों पर कर लगाना, अपनी जान की कीमत पर देश की सेवा करने वाले ईमानदार लोगों को मौत की सज़ा देना, और भी बहुत कुछ।  फिर भी, फिल्म ऐसे देश में लोगों को उनके वोट की ताकत के बारे में झांसा देने की कोशिश करती है, जहां मतदाता अपने परिवार के लिए राशन  दानों या कुछ घूंट या शराब के बदले में अपना वोट देने के लिए भूखे हैं, मतदाता अशिक्षित हैं, और ,शिक्षित लोग भय में या स्वार्थ में रहते हैं, आपका वोट खरीदा जा सकता है, हेरफेर किया जा सकता है, हैक किया जा सकता है, या बर्बाद किया जा सकता है (लालची/बेईमान जन प्रतिनिधियों द्वारा पार्टी बदलने के कारण) और पूरी चुनाव प्रणाली को बंधक बना लिया जाता है, या सिर्फ एक दलाल बनने के लिए मजबूर किया जाता है,  पूरी चुनाव प्रणाली को ताकतवर के लिए या कुछ लोगों की रखैल बना दिया जाता है।
    गीता में, माधव ने अर्जुन को बार बार इंगित किया है और महाभारत युद्ध में उनसे  चरितार्थ भी कराया है कि युद्ध में नैतिकता नहीं विजय महत्वपूर्ण है, रास्ता नहीं मंजिल महत्वपूर्ण है; और यह फिल्म फिल्म भी यही सन्देश बारम्बार देती लगती है, फिर भी मन विचलित होता है कि रास्ता यदि गलत है तो सही मंजिल तक नहीं पहुंचा जा सकता, हाँ जहाँ पहुंचे उस मंजिल को सही सिद्ध करना आसान है क्योंकि धर्म की परिभाषा जीतने वाले गढ़ते हैं,  हारने वाला हमेश अधर्मी ही कहलाता है, यही मानव का सिद्ध धर्म है बाकि सब खोखली बातें (गल्प) हैं, धर्म हर युग में बदलते रहे हैं और बदलते रहेंगे इनसे सामंजस्य जो बिठालें वे पंडित कहलाते हैं और बाकि सभी शूद्र, काफ़िर या त्याज्य । 
              यह एक ऐसी फिल्म है जो सनातन धर्म की उस परिकल्पना का पोषण करती है जिसमें कहा गया है कि कोई (भगवान का अवतार) आपको बचाने और धर्म को बहाल करने के लिए आएगा।  कभी-कभी यह इस बात की पुष्टि करती प्रतीत होती है कि हम भक्ति-काल की ओर बढ़ रहे हैं, वह युग जब भारतीयों को अपने जीवन की बेहतरी की कोई उम्मीद नहीं थी, और उन्होंने यह मानना ​​​​शुरू कर दिया था कि राजा कोई भी हो, उनके गुलामी के जीवन में बदलाव नहीं आएगा (कोऊ हो राजा हमें क्या हानि, दासी छोड़ न बनिहें रानी).  वह काल जब देवताओं के इतने सारे अवतारों की कल्पना की गई, इतने सारे रामायण और राम, भगवान कृष्ण, गणेश और शिव के इतने सारे रूपों की  उनकी शक्ति स्वरूपा या लक्ष्मी स्वरूपा पत्नियों की परिकल्पना की गई उनके साथ पूजा के अनगिनत विधान सृजित किये गए (क्योंकि कोई भी विधान उन्हें गुलामी से मुक्त कराने में उपयोगी सिद्ध नहीं हो रहा था)।  अवसाद इतना अधिक था कि उन्हें भक्तिकाल में भक्ति से सांत्वना मिली और उन्होंने यह भी कल्पना की कि कलियुग मानवता के लिए अधिक हानिकारक होने वाला है, और जो स्वयं सिद्ध हो रहा है।
      फिल्म मनोरंजन से भरपूर है और लोग इसका आनंद लेते हैं क्योंकि  सभी लोग  आपके दर्द, हार और जीत का भी आनंद लेते हैं अगर यह उनकी कल्पना पर फिट बैठता है।  फिल्म का उद्देश्य लोगों को शिक्षित करना प्रतीत होता है, हालाँकि, लोगों को शिक्षित होना नहीं बल्कि मनोरंजन करना पसंद है।  यह फिल्म मनोरंजन के लिए लोगों की अपेक्षाओं, शारुख की सुपरहीरो छवि और उनकी अपेक्षाओं को पूरा करती है कि किसी भी दिन कोई उनके कष्ट को दूर करने के लिए आएगा।
   हालाँकि, यदि आप अपने नेताओं को चुनने के लिए फिल्म में दिए गए निर्देशों का पालन भी करते हैं, तो भी आपको धोखा दिया जाना निश्चित है, कुछ साल पहले हमने अपनी गरीबी दूर करने, सिस्टम से शिकायतें दूर करने, पारदर्शिता लाने और भ्रष्टाचार को खत्म करने के उनके वादों के आधार पर एक महामानव को चुना था।  काला धन और उसके परिणाम हम सभी जानते हैं और यह फिल्म भी उसी टूटे हुए विश्वास और खोई हुई पारदर्शिता को दर्शाती है, और उसे पुनर्स्थापित  करने का पूरा प्रयास करती है।
 केवल एक बार नहीं, बल्कि कई बार मुझे राजनेताओं और प्रशासन के हाथों विश्वासघात का एहसास हुआ।  मेरा अनुभव यह है कि किसी सच्चाई की खोज करते समय या भ्रष्टाचार को उजागर करते समय कभी भी राजनेताओं और प्रशासन पर विश्वास न करें, अन्यथा आप उनकी आकांक्षाओं और अपेक्षाओं के उबलते तेजाब में झुलस जायेंगे।
 मुझे फिल्म पसंद आई लेकिन फिर मैंने सोचा कि मानवता, ईमानदारी और अपने राष्ट्रवाद को बचाने के लिए मैं क्या कर सकता हूं और क्या करने का साहस कर सकता हूं ताकि पिछले दो दशकों से जारी अपने अनवरत अपमान को और गहनता से अनुभव कर सकूं।

इसी सन्दर्भ में एक कविता

मैं सच बोलता रहा उनके कुकर्मों के सबूत टटोलता रहा इसीलिए  

सबकी नजरों में गिराने के लिए मुझे ही मुजरिम बना दिया, 

मेरी ईमादारी पे कितने ही सवाल खड़े कर दिए, 

और कितने ही इल्जाम मेरे पर चस्पा कर दिए, 

इतना आसान नहीं रहा कभी भी जीना मेरे लिए,

रोज मौत की राह पर खड़ा था मैं मौत के इंतजार में,

फिर भी खड़ा ही रहा, जाने क्यों और कैसे, किसके लिए .

लोग सोचते तो होंगे कि झंझावात तो तेज काफी थे फिर ये दिया किस तरह जलता हुआ रह गया,

मैं तो मर गया  था उसी दिन जिस दिन मेरे ईमान ने बिकने से मना कर दिया,

लगता है आज मैं जिन्दा नहीं बस मेरे ईमान की परछाईं देखते हैं लोग,

हम जीते हैं यहाँ सभी एक दिन मर जाने के लिए,

पर मैंने मरने के लिए कितने ही जहर के घूँट पी लिए. 

फिर भी जीए हम तो बस इस दुनिया को झूठ जाना,

ख़ुशी से मर गए होते कभी के अगर दुनिया कि सच्चाई का ऐतबार होता.

लोग कहते हैं रोज ही मुझसे, कि सच कभी हारता नहीं,

पर मेरे नसीब देखो, रोज ही सच को हारकर मरते देखा,

शायद सच भी होते हैं बहुत तरह के, भगवानो की तरह,

किस-किसपे लाएं ईमान या फिर जियें बेईमानो कि तरह.

कैसा लगता है जब आपको इमानदारी के लिए कोई बेईमान कहे, 

कैसे लगता है जब देश में देशभक्ति के लिए मुकदमा लड़े कोई,

बस इंतजार करता है इंसान की इंसानियत का,

या फिर उस ईश्वर के आने का, जो ना आया था कभी . 

उठ जा भारतवासी अब ना आएंगे कोई भगवान तुझे बचाने,

या तो अपना भगवान् खुद बनकर मर या फिर इन्तजार करके मर जा.  

Wednesday, September 6, 2023

God in the vision of a microbiologist: एक सूक्ष्मजीव विज्ञानी की दृष्टि से ईश्वर

 God in the vision of a microbiologist

एक सूक्ष्मजीव विज्ञानी की दृष्टि से ईश्वर

    ईश्वर है या नहीं यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर मनुष्य प्रारब्ध से ही ढूंढता रहा है. कोई 100 साल पहले हमें नहीं पता था कि जीवाणु, विषाणु और उन्हें निर्माण करने वाली सूक्ष्म से सूक्ष्मतर कणिकाएं हैं भी कि नहीं, परंतु मनुष्य ने अपनी दृष्टि में विस्तार किया, विस्तार करने के लिए नए-नए उपकरण बनाए और हम अदृश्य को भी देखने लगे. कल हो सकता है ऐसा दृष्टि यंत्र बना ले कि हम उस तत्व को भी जान लें जो हमारी सांस का आना-जाना जारी रखता है हमें जीवित और मृत के रूप में जानने योग्य बनाता है, कुछ लोग उसे आत्मा कहते हैं और कुछ लोग उसे परमात्मा का अंश परंतु सत्य अंतहीन है.

    इस सबसे यही सिद्ध होता है कि जो हम आज देख रहे हैं वह सत्य नहीं है, या तो वह अर्ध-सत्य है या वह भ्रम है. और हम अपने प्रारब्ध से ही भ्रम को सत्य समझते रहे हैं, और सत्य का हमें आज भी पता नहीं.

    हम अक्सर समझते हैं कि मनुष्य इस पृथ्वी पर सबसे बुद्धिमान जीव है परंतु मैं कभी-कभी सोचता हूं कि इस बुद्धिमान जीव ने अपने लिए क्या कभी ऐसे घर बनाए हैं जहां यह निश्चित होकर आनंद में रहे जैसे कि कितने ही जीवाणु और विषाणु हमारे शरीर में निवास करते हैं, बिना कोई प्रयास जैसा कि हमें रोज करना पड़ता है, चलते-फिरते घर, खाने-पीने का इंतजाम करते घर, हमारे बच्चों को पालने वाले घर, हमारे लिए आरामदायक वातावरण का निर्माण करते घर, हमें कश्टकारी पॉल्यूशन से बचाने वाले घर, अपने को मिटाकर भी हमें बचाने वाले घर. परंतु जीवाणु विषाणु और जाने कितने ही हमारी समझ के हिसाब से निरबुद्धि जीवों ने बड़े जीवो और मनुष्य के शरीर के रूप में कितने ही सुंदर और आरामदायक घरों का निर्माण किया है.
इस छोटे से विवरण से ईश्वर और उसे समझने वाली बुद्धि के बारे में एक और भ्रम का निर्माण होता है और ब्रह्म (भ्रम) में हमें जीने का एहसास भी नहीं होता.

    मेरे विचार से ईश्वर आस्था का नहीं विज्ञान का विषय है आस्थाएं समय और काल के अनुसार बदलती रहती है अर्थात ईश्वर भी बदलता रहता है, परंतु ऐसा सत्य प्रतीत नहीं होता इसलिए आज ईश्वर आस्था नहीं सत्य की खोज का विषय होना चाहिए.


    Whether God exists or not is such a question, the answer to which man has been searching since its origin. Some 100 years ago we did not know whether bacteria, viruses, and the smallest particles that create the material world existed or not, but man expanded his vision, and created new tools to expand the vision and now we can see even the invisible. Tomorrow maybe such a vision instrument will be made that we will also know that element that keeps our breath coming and going and makes us capable of knowing us as alive and dead, some people call it soul, and some people call it part of God. But the truth is endless.

    All this proves that what we are seeing today is not the truth, it is either a half-truth or it is an illusion. Since our origin, we have been considering illusion as truth, and even today we do not know the truth.

    We often think that man is the most intelligent creature on this earth but I sometimes wonder whether this intelligent creature has ever made such a house for itself where it can live safely and happily like so many bacteria and viruses live in our body. Tiny creatures live in all of us without any effort as we have to do every day, in mobile homes, in homes that provide food and drinks free and all the time, in homes that raise our children, in homes that create a comfortable environment for them, in homes that protect them from the pesky pollution, homes that save them even after destroying themselves. According to our understanding, bacteria, viruses and many other tiny creatures are mindless but they have built many beautiful and comfortable houses in the form of giant animals and human bodies.
This small detail creates another illusion about God and the intellect that understands Him and we do not even realize that we live in Brahman (an illusion).

    In my opinion, God should not be a matter of faith but of science to save our generations from being Andhbhakts (blind devotees) but a thoughtful generation. Beliefs keep changing according to time and period, that is, God also keeps changing, but this does not seem to be true, hence Today God should not be a matter of faith, it should be a subject of search for truth.

Monday, September 4, 2023

मेरे देश के लोग

  मेरे देश के लोग

मुझे मालूम है,

मुझे सच बोलने की हर मुमकिन सजा देंगे मेरे देश के लोग.

मुझे एक मुजरिम दिखाने के लिए,

जाने क्या-क्या आरोप मुझ पर लगा देंगे मेरे देश के लोग.


फिर भी मुझे ना मालूम कब, 

सच बोलने का रोग लग गया, 

सनातन झूठ वालों से उलझने का रोग लग गया. 

अब तो बस इंतजार है, 

देखें कब तलक मुझे इस जमीन से उठा देंगे मेरे देश के लोग. 


सच इन्हें चाहिए नहीं और झूठ मेरे पास नहीं तब क्या, 

मुझसे छीन लेंगे मेरे सच बोलने का रोग, ये मेरे देश के लोग.

 

यूं तो इस सराय फानी में कुछ भी बचता नहीं, तो क्या, 

सच को पराजित कर झूठ का जहां बना लेंगे मेरे देश के लोग. 


दुनिया कहती है सच कभी छुपता नहीं तो क्या, 

कभी सनातन झूठ को भी छुपा लेंगे मेरे देश के लोग. 


ये मुझे देंगे तो क्या देंगे, 

सच बोलने की सजा देकर क्या मुझे सच बोलना भुला देंगे मेरे देश के लोग.


ये देंगे तो क्या देंगे,
सनातन धर्म और धर्म के नाम पर, एक दूसरे को गोबर खिलाकर मूत पिला देंगे मेरे देश के लोग.


मानवता उनके दिलों में मर चुकी है,
नकली वैक्सीन और नकली दवा खिला खिलाकर कितनो को सुला देंगे मेरे देश के लोग.


देंगे तो क्या देंगे ये मुझको,
दिन रात दगा देते हैं अपनी मातृभूमि को, मुझसे कौनसा रिश्ता निभा लेंगें मेरे देश के लोग.


सच इन्हें अच्छा नहीं लगता,

धर्म के नाम पर झूठ और अंधविश्वास हर तरफ फैला देंगे मेरे देश के लोग.


इन्हें सिर्फ लड़ना-झगड़ना पसंद है,
तरक्की क्या करेंगे, तरक्की के नाम पर भी फसाद फैला देंगे मेरे देश के लोग.


नफरत भरी हुई है उनके दिलों में,
भाईचारा क्या निभायेंगें, प्यार का भी नफरत से सिला देंगे मेरे देश के लोग.


अगर भगवान सच वालों का होता, तो दुनिया जैसी है वैसी ना होती, ना तू अकेला होता, ना मैं अकेला होता, हम जैसों का भी एक कारवां होता है.


सच सुनना है तो मुझको सुनो, या फिर चुप ही रहने दो
झूठ को सच मैं कैसे कहूं, जो कहते हैं उन्हें कहने दो

आज की सुबह भी सुहानी थी और दोपहर भी रंगीन है, शाम कैसी होगी इसे लेकर तू क्यों फिक्रमंद और गमगीन है.