भक्ति कहीं परेशानी-दायक न हो जाए: प्रसाद सोच-समझ कर ही प्रदान करें एवं ग्रहण करें
लेखक: गीता1 एवं भोज राज सिंह2
123A वैभव सनसिटी विस्तार बरेली
21प्रधान वैज्ञानिक एवं विभागाध्यक्ष जानपदिक रोग विभाग, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली
प्रसाद, प्रभु या देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना और भोग लगाने के बाद भक्तों में बाँटा जाने वाला भोज्य या पेय होता है, इसका चलन लगभग सभी धर्मों और सभ्यताओं में है। इसे ग्रहण करना बहुत आवश्यक इसलिए होता है क्योंकि प्रसाद को ना लेना प्रभु या पूज्य का अपमान माना जाता है, और अपमान के बाद अपमानित होने वाला आपको विविध प्रकार के कष्ट दे सकता है। सभी कथाओं में अक्सर यही वर्णन होता है कि जिसने प्रसाद नहीं ग्रहण किया या जो कथा (पूजा) में शामिल नहीं हुआ उसका हश्र वीभत्स ही हुआ और उसे शांति तभी प्राप्त हुई जब उसने कथा या पूजा का आयोजन किया और प्रसाद का भक्तों में वितरण किया।
प्रसाद के विभिन रूप हैं, यह सूखा या गीला खाद्य प्रसाद, खिचड़ी, हलवा (कड़ाह प्रसाद) हो सकता है जिसमें प्रभु या अमुक देवी-देवता को प्रिय सभी पौष्टिक खाद्य पदार्थ, फल, मेवा, और पवित्र पौधों (जैसे कि तुलसी) के पत्ते मिले होते हैं। पेय प्रसाद में अक्सर पवित्र शरबत, चरणामृत (श्री चरणों के जल में तुलसी के पत्ते, तिल आदि), पंचामृत (पंचगव्य, या फिर गौघृत, गौदुग्ध, गौदधि, शहद और शक्कर) को जल में मिलाकर बनाया जाता है। पंचगव्य गाय के घी, दूध, दही, मूत्र और गोबर के रस (गौरस) के मिश्रण से बनता है, और इसके सेवन को मनुष्यों के बहुत से रोगों से लड़ने में सक्षम बनाने वाला माना गया है। पंचगव्य को बहुत सी आयुर्वेदिक दवाएं बनाने में और प्रसाद बनाने में प्रयोग किया जाता है। पंचामृत और चरणामृत ग्रहण करने से मोक्ष प्राप्ति का द्वार आपके लिए प्रभु स्वतः ही खोल देते हैं। अतः हर पूजा-अर्चना के बाद प्रसाद, चरणामृत और पंचामृत ग्रहण करना एक पवित्र कर्तव्य माना जाता है।
प्रसाद में विभिन्न पौष्टिक तत्व होने के कारण यह जीवाणुओं और कवकों के विकास के लिए भी बहुत उपयुक्त होता है। हानिकारक जीवाणु और कवक यदि ज्यादा मात्रा में प्रसाद, पंचामृत, चरणामृत, खिचड़ी, हलवा आदि में विकसित हो जाते हैं तब इन पवित्र पदार्थों का सेवन यकायक आपको यमलोक में प्रभु के चरणों में सीधे भी ले जाने में सक्षम होता है। ऐसा कैसे होता है :
१. यदि प्रसाद बनाने वाला स्वस्थ नहीं है, साफ़ सफाई नहीं रखता जैसे कि शौंच के बाद साबुन और पानी से हस्त-प्रक्षालन, प्रसाद बनाने वाले बर्तनो कि सफाई, ख़राब या ख़राब गुणवत्ता के पदार्थों का प्रसाद बनाने में प्रयोग आदि।
२. प्रसाद का वितरण करने वाले का संक्रामक रोगों से ग्रसित होना, अस्वच्छ होना, या फिर मानसिक और शारीरिक रूप से असहज होना।
३. प्रसाद का बनाने के बाद गलत स्थान पर, गलत ढंग से या गलत वातावरण (गर्म स्थान) पर संग्रह करके रखना आदि।
प्रसाद ग्रहण करने के बाद यदि २४ घंटे के अंदर आप असहज महसूस करते हैं, जैसे कि जी मिचलाना, उलटी लगना, दस्त लगना, पेट दर्द, गले में जलन, पेट में तेज़ाब बनना, सांस लेने में असुविधा होना, ब्लड प्रेसर बढ़ना, तब ये प्रसाद विषाक्तता के लक्षण होते हैं तब आप अवश्य ही अपने चिकित्सक को मिलें, और दूसरे प्रसाद ग्रहण करने वाले भक्तों को भी सावधान करें क्योंकि कभी-कभी खाद्य विषाक्तता के लक्षण कई दिन बाद भी आते हैं और जानलेवा भी हो सकते है।
प्रकाशित ख़बरों और खाद्य विषाक्तता की नैदानिक रिपोर्टों के आधार पर देखा जाए तो पिछले दस वर्षों में सिर्फ भारत में प्रसाद-विषाक्तता के कम से कम ६३ मामले प्रकाश में आये हैं जिनमें ८००० से ज्यादा लोग प्रसाद ग्रहण करने के बाद बीमार हुए हैं, और २१८ भक्त परलोक सिधार गए हैं। खाली प्रसाद खाकर ही नहीं, कई मामलों में केवल चरणामृत और पंचामृत गृहण करके भी भक्त लोग बीमार पड़े हैं, रिपोर्टों के अनुसार, मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) में पंचामृत पीकर २०४ भक्त गंभीर रूप से बीमार हुए और वनमोर (प बंगाल) में तो नौ भक्त चरणामृत पीकर सीधे स्वर्ग सिधार गए।
प्रसाद का प्रयोग कई बार जहर खुरान (जो लोगों को यात्रा के दौरान प्रसाद के नाम पर जहर मिला प्रसाद खिला कर लूटते हैं) लोगों का एक अचूक अस्त्र होता है, और कई बार दुश्मनी निकालने के लिए भी प्रसाद को अस्त्र के रूप में प्रयोग किया गया है।
अतः आप अगली बार जब भी प्रसाद ग्रहण करें तो एक बार प्रसाद विषाक्तता के बारे में अवश्य ध्यान रखें, बाकी तो आप सभी लोग भक्त स्वयं ही बुद्धिमान और ज्ञानवान हैं।
प्रसाद विषाक्तता के बारे ज्यादा जानने के लिए आप इस मूल लेख को भी अवश्य पढ़ें।