Wednesday, May 31, 2023

भारत में प्रसाद विषाक्तता (भक्ति कहीं परेशानी-दायक न हो जाए: प्रसाद सोच-समझ कर ही ग्रहण करें)

भक्ति कहीं परेशानी-दायक न हो जाए: प्रसाद सोच-समझ कर ही प्रदान करें एवं ग्रहण करें     

लेखक: गीता1 एवं भोज राज सिंह2

123A वैभव सनसिटी विस्तार बरेली

21प्रधान वैज्ञानिक एवं विभागाध्यक्ष जानपदिक रोग विभाग, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली  

    प्रसाद, प्रभु या देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना और भोग लगाने के बाद भक्तों में बाँटा जाने वाला भोज्य या पेय होता है, इसका चलन लगभग सभी धर्मों और सभ्यताओं में है। इसे ग्रहण करना बहुत आवश्यक इसलिए होता है क्योंकि प्रसाद को ना लेना प्रभु या पूज्य का अपमान माना जाता है, और अपमान के बाद अपमानित होने वाला आपको विविध प्रकार के कष्ट दे सकता है।  सभी कथाओं में अक्सर यही वर्णन होता है कि जिसने प्रसाद नहीं ग्रहण किया या जो कथा (पूजा) में शामिल नहीं हुआ उसका हश्र वीभत्स ही हुआ और उसे शांति तभी प्राप्त हुई जब उसने कथा या पूजा का आयोजन किया और प्रसाद का भक्तों में वितरण किया।  

    प्रसाद के विभिन रूप हैं, यह सूखा या गीला खाद्य प्रसाद, खिचड़ी, हलवा (कड़ाह प्रसाद) हो सकता है जिसमें प्रभु या अमुक देवी-देवता को प्रिय सभी पौष्टिक खाद्य  पदार्थ, फल, मेवा, और पवित्र पौधों (जैसे कि तुलसी) के पत्ते  मिले होते हैं। पेय प्रसाद में अक्सर पवित्र शरबत, चरणामृत (श्री चरणों के जल में तुलसी के पत्ते, तिल आदि), पंचामृत (पंचगव्य, या फिर गौघृत, गौदुग्ध, गौदधि, शहद और शक्कर) को जल में मिलाकर बनाया जाता है।  पंचगव्य गाय के घी, दूध, दही, मूत्र और गोबर के रस (गौरस) के मिश्रण से बनता है, और इसके सेवन को मनुष्यों के बहुत से रोगों से लड़ने में सक्षम बनाने वाला माना गया है। पंचगव्य को बहुत सी आयुर्वेदिक दवाएं बनाने में और प्रसाद बनाने में प्रयोग किया जाता है।  पंचामृत और चरणामृत ग्रहण करने से मोक्ष प्राप्ति का द्वार आपके लिए प्रभु स्वतः ही खोल देते हैं।  अतः हर पूजा-अर्चना के बाद प्रसाद, चरणामृत और पंचामृत ग्रहण करना एक पवित्र कर्तव्य माना जाता है।     

    प्रसाद में विभिन्न पौष्टिक तत्व होने के कारण यह जीवाणुओं और कवकों के विकास के लिए भी बहुत उपयुक्त होता है। हानिकारक जीवाणु और कवक यदि ज्यादा मात्रा में प्रसाद, पंचामृत, चरणामृत, खिचड़ी, हलवा आदि में विकसित हो जाते हैं तब इन पवित्र पदार्थों का सेवन यकायक आपको यमलोक में प्रभु के चरणों में सीधे भी ले जाने में सक्षम होता है। ऐसा कैसे होता है :

. यदि प्रसाद बनाने वाला स्वस्थ नहीं है, साफ़ सफाई नहीं रखता जैसे कि शौंच के बाद साबुन और पानी से हस्त-प्रक्षालन, प्रसाद बनाने वाले बर्तनो कि सफाई, ख़राब या ख़राब गुणवत्ता  के पदार्थों का प्रसाद बनाने में प्रयोग आदि। 

. प्रसाद का वितरण करने वाले का संक्रामक रोगों से ग्रसित होना, अस्वच्छ होना, या फिर मानसिक और शारीरिक रूप से असहज होना। 

. प्रसाद का बनाने के बाद गलत स्थान पर, गलत ढंग से या गलत वातावरण (गर्म स्थान) पर संग्रह करके रखना आदि।  

    प्रसाद ग्रहण करने के बाद यदि २४ घंटे के अंदर आप असहज महसूस करते हैं, जैसे कि जी मिचलाना, उलटी लगना, दस्त लगना, पेट दर्द, गले में जलन, पेट में तेज़ाब बनना, सांस लेने में असुविधा होना, ब्लड प्रेसर बढ़ना, तब ये प्रसाद विषाक्तता के लक्षण होते हैं तब आप अवश्य ही अपने चिकित्सक को मिलें, और दूसरे प्रसाद ग्रहण करने वाले भक्तों को भी सावधान करें क्योंकि कभी-कभी खाद्य विषाक्तता के लक्षण कई दिन बाद भी आते हैं और जानलेवा भी हो सकते है।  

    प्रकाशित ख़बरों और खाद्य विषाक्तता की  नैदानिक रिपोर्टों के आधार पर देखा जाए तो पिछले दस वर्षों में सिर्फ भारत में प्रसाद-विषाक्तता के कम से कम ६३ मामले प्रकाश में आये हैं जिनमें ८००० से ज्यादा लोग प्रसाद ग्रहण करने के बाद बीमार हुए हैं, और २१८ भक्त परलोक सिधार गए हैं। खाली प्रसाद खाकर ही नहीं, कई मामलों में केवल चरणामृत और पंचामृत गृहण करके भी भक्त लोग बीमार पड़े हैं, रिपोर्टों के अनुसार, मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) में पंचामृत पीकर २०४ भक्त गंभीर रूप से बीमार हुए  और वनमोर ( बंगाल) में तो नौ भक्त चरणामृत पीकर सीधे स्वर्ग सिधार गए।  

    प्रसाद का प्रयोग कई बार जहर खुरान (जो लोगों को यात्रा के दौरान प्रसाद के नाम पर जहर मिला प्रसाद खिला कर लूटते हैं) लोगों का एक अचूक अस्त्र होता है, और कई बार दुश्मनी निकालने के लिए भी प्रसाद को अस्त्र के रूप में प्रयोग किया गया है।  

    अतः आप अगली बार जब भी प्रसाद ग्रहण करें तो एक बार प्रसाद विषाक्तता के बारे में अवश्य ध्यान रखें, बाकी तो आप सभी लोग भक्त स्वयं ही बुद्धिमान और ज्ञानवान हैं।  

    प्रसाद विषाक्तता के बारे ज्यादा जानने के लिए आप इस मूल लेख को भी अवश्य पढ़ें।  

https://www.researchgate.net/publication/370833421_Pious_Food_Prasad_Panchmrit_Charnamrit_Bhog_Khichadi_Karah_Prasad_Iftar_food_and_Sharbat_Poisoning

Sunday, May 28, 2023

How Gita (the Sacred Book of Hinduism) teaches us to be a slave?

How did Gita (the Sacred Book of Hinduism) teach us to be a slave?

By: Geeta, MA Sanskrit 

In ancient (Sanatan) India, Shudras were in reality slaves, though they may not be by birth, those powerless, poor, and weak might also have been Shudras. Our Dharma teaches us to be happy even if we are a Shudra and someone beats us to death even then we should not complain of drudgery. Your soul may go to Baikunth if you are killed by some Ram, Krishna, or some other God or will be taking birth from time to time in India. Even if someone mighty and powerful kills you or your family or friend you should not repent, revenge, or rebel for yourself or the death of someone near and dear to you because in Gita God said that your soul is immortal and it will carry its karma with it. नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ||2. 23||  श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं: इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते हैं और अग्नि इसे जला नहीं सकती है | जल इसे गीला नहीं कर सकता है और वायु इसे सुखा नहीं सकती है ।। And further, न जायते म्रियते वा कदाचि नायं भूत्वा भविता वा न भूय: | अजो नित्य: शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ||2.20|| Lord Krishna says-The soul is neither born, nor does it ever die; nor is it that having come to exist, It will ever cease to be. The soul is birthless, eternal, immortal, and ageless; It is not destroyed when the body is destroyed. And, वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि | तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही ||2. 22|| Lord Krishna says: as a person sheds worn-out garments and wears new ones, likewise, at the time of death, the soul casts off its worn-out body and enters a new one. This means, if die in slavery you will take rebirth to do it again.

According to the Bhagavad Gita, Lord Krishna says that we should forgive people, however, if you kill a Brahmin by mistake or you were saving your own life or protecting your property including your wife and kids from a lustful Brahmin, you will have Brhmhatya dosh, a sin that is not excusable, even God can't forgive you. To get rid of Brahmhatya you need to establish a temple (so that hundreds of Brahmins can get their bounty without doing anything but looting people in the temple). After killing Ravan (a Brahmin), the snatcher of his wife, Ram (the God) was to repent by establishing a ShivLing temple in Kashi. To get rid of Brahmhatya another way is to organize Ashwamedha Yagna, which is feeding thousands of Brahmins free for years together by the time your horse sat free returns to your home for which you may have to fight with so many people, killing those trying to stop or catch your freed horse, that is killing innumerable people to get rid of the sin of killing a single worthless Brahmin. Another way to remove Brahmahatya Sin is by visiting Kasi (the house of thousands of free-eating Brahmins) and giving everything with you to Brahmins there. 

Another very famous shlok of Gita teaches you that while doing very hard work, working tirelessly (even if you are a slave), giving your 100% to work, you must not think for the return of your hard work, do it without any will to get anything in return, mean be a payless slave. Keep on working day and night without expecting anything in return. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ||2. 47|| श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं:  तेरा कर्म करने में अधिकार है इनके फलो में नही. तू कर्म के फल प्रति असक्त न हो या कर्म न करने के प्रति प्रेरित न हो.

If you are a slave or born into a family of slaves it is better to be a slave even if you can't perform the work of slavery perfectly, according to Gita it is always better to do your work (slavery assigned to you) instead of doing work of others (probably Brahmins) even when you are doing that work with 100% perfection. श्रेयान्स्वधर्मो विगुण: परधर्मात्स्वनुष्ठितात् | स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह: ||3.35|| It is far better to perform one’s natural prescribed duty, though tinged with faults, than to perform another’s prescribed duty, though perfectly. In fact, it is preferable to die in the discharge of one’s duty, than to follow the path of another, because the outcome of that perfection is horrible (might be like the end of Shambhook, a shudra who was trying to learn Vedas being shudra; he was beheaded none but by Lord Ram).

If someone tries you to enslave never go against it, and never be angry or desirous or revengeful because it is not a good path, it may lead you to hell. त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन: | काम: क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ||16.21|| Lord Krishna says-There are three gates leading to the hell of self-destruction for the soul—desire, anger, and fight for your right. Therefore, all should abandon these three.

The total teaching of Gita as I understood in one sentence is: If you a Borne slave then be a slave even if you are not an excellent slave, it is better than being Brahmin (scholar) even when you are better and outstanding (learned) than Brahmins in knowledge, never object to your exploitation, and never be angry (in being exploited) else you will go to hell. 

Excuse me (thinking of it as my madness) if my understanding and explanation hurt anyone as it is my way of understanding. Thinking that I love Hell.

There is nothing wrong & right, nor Truth & false, all is decided by the winners.