Friday, June 30, 2017

Three Novel Inventions of IVRI to Eliminate Diseases in Animals. नई खोज: भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान, इज़्ज़तनगर बरेली ने खोज ली है पशु रोगों को समाप्त करने की कुंजी

New inventions of Indian Veterinary Research Institute (IVRI) to Control Animal Diseases
ICAR -IVRI has invented after a lot of investment and hard work to control animal diseases and first applied on its own Livestock Farm. These inventions could see the daylight only after use of Right to Information Act (2005). Here is the summary of those inventions:
1. Stop diagnosis of disease and any sampling for diagnosis of diseases in your animals: The Institute has stopped diagnosis of TB, JD and Brucellosis on its Livestock Farms in 2012 in time of Dr. Gaya Prasad. And since then these nasty diseases have disappeared from the animals. (Ref: http://azad-azadindia.blogspot.com/2017/06/implementation-and-outcome-of.html)
2. Keep the information hidden in locker rooms: If by mistake anyone diagnoses any disease at your farm, with all your good efforts keep the information in the lock and throw the key in a deep sea. This technique has successfully eliminated Foot and Mouth Disease in cattle and buffaloes and PPR in sheep and Goats. This is an effective technique adopted all over the country for the same purpose. (Ref: https://www.researchgate.net/publication/306095275_Foot_and_Mouth_Disease_FMD_outbreak_at_IVRI_Izatnagarhttps://www.researchgate.net/publication/306324222_Epidemiology_and_Statistics_of_Indian_Veterinary_Research_Institute_Dairy_during_Foot_and_Mouth_Disease_FMD_Outbreak_in_January-February_2016http://azad-azadindia.blogspot.com/2016/09/andhra-pradesh-is-declared-fmd-free.html)
3. Sell the sick animals at the earliest and preferably to butchers: This technique is said to be very effective in the old text but ICAR-IVRI has modified it as per the modern science requirements. (Ref: http://azad-azadindia.blogspot.com/2017/03/list-of-non-productive-and-diseased.htmlhttp://azad-azadindia.blogspot.com/2017/03/why-are-we-selling-cows-for-slaughter.html).

भारत के पशु चिकित्सा शोध के सर्वोच्च संस्थान ने खोज ली है पशु रोगों को समाप्त करने की कुंजी.
      भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान (ICAR -IVRI ) इज़्ज़तनगर ने सदियों से उलझी हुई पशु-रोग निवारण की गुत्थी आखिरकार सुलझा ही ली. वैसे जाने किस कारण से इस जनकल्याण की खोज को गुप्त ही रखा गया था. परन्तु जनकल्याण की भावना से अभिभूत होकर सूचना के अधिकार के उपयोग से  यह ज्ञान अब आप सबके लिए और देश के सभी पशु पालकों एवं पशुचिकित्सकों के उपयोग हेतु साझा किया जा रहा है.
सम्पूर्ण जानकारी के लिए पढ़ें.
तीन महान अनुसंधान जिनसे कर रहा है भारत का महानतम पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान अपने पशुओं को रोगोँ से मुक्त:
1. रोग निदान करना बंद करदो: इससे रोग का पता चलेगा, रोग की चिंता होगी, रोग के इलाज की आवश्यकता, और ही कोई सवाल जबाब की झंझट.  इस विधि का उपयोग करके संस्थान ने अपने पशुओं से ब्रूसल्लोसिस, टीबी एवं आंत्र टीबी (पैरा-टीबी, जेडी) जैसे दुसाध्य रोगो से मुक्ति पा ली है. संस्थान में यह तकनिकी डा. गया प्रसाद के समय में (२०१२) खोजी गई थी इसका उपयोग तब से वर्तमान निदेशक भी करते रहे हैं (http://azad-azadindia.blogspot.com/2017/06/implementation-and-outcome-of.html). सन २०११ के बाद से संस्थान के पशुओ में इन रोगों का निदान बंद कर दिया गया है. अतः रोग, रोगी पशु, रोग की चिंता.
2.  रोग एवं रोगी की जानकारी को गुप्त रक्खो. इस तकनिकी का इस्तेमाल भारत में बहुत पुराने समय से होता आया है यूँ कहो कि ये पारम्परिक ज्ञान है. आप टीबी से मर जाएँ परन्तु पड़ोसी को ये पता नहीं लगना चाहिए कि आपको टीबी है वरना वो थोड़ा बचने उपाय कर लेगा अतः उससे भी पड़ोसी धर्म निबाहना जरूरी, जो मेरे पास है वो उसके पास भी होना ही चाहिए. हालत ये है कि संस्थान में मुंह पका खुर पका रोग फैला, दर्जनों पशु मर गए (https://www.researchgate.net/publication/306095275_Foot_and_Mouth_Disease_FMD_outbreak_at_IVRI_Izatnagar), संस्थान में बकरियों में पोंकणी रोग (PPR ) फैला बकरियों का सफाया हो गया, पर मजाल है कि संस्थान के किसी कोने से इस रोग कि हवा भी लग जाए. ये तो बुरा हो सूचना अधिकार अधिनियम का कि फालतू में संस्थान को बदनाम कर दिए (https://www.researchgate.net/publication/306324222_Epidemiology_and_Statistics_of_Indian_Veterinary_Research_Institute_Dairy_during_Foot_and_Mouth_Disease_FMD_Outbreak_in_January-February_2016).
परन्तु क्या? भारत सरकार के रिकॉर्ड में तो कुछ नहीं है ना, ख़बरें जब बासी हो जाएँगी, लोग भूल जायेंगे, तब रिकॉर्ड बतायेंगे कि कहीं कोई बीमारी नहीं थी. बस कुछ सरफिरों के करतूत थी.
इस तकनीकी का इस्तेमाल और भी कई जगह हुआ है जैसे कि तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में अभी कुछ महीने पहले मुंह पका खुर पका रोग फैला, पशुपालक रोते रहे पर किसी की क्या मजाल कि कहता रोग हुआ भी है, लुधियाना वेटेरिनरी कालेज की डेरी में भी रोग फैला पर किसी को कानोकान भी भनक नहीं लगने दी पट्ठों ने, मेरठ के मिलिटरी डेरी फार्म का भी यही हाल था. यह सिद्ध करता है है कि ये तकनिकी काफी किफायती एवं टिकाऊ है. इसी तकनिकी के प्रयोग से उत्तर प्रदेश मुंह पका खुर पका रोग से वर्षों से मुक्त है बस कभी कभी इस जैसी बीमारी कुछ नकारा पशु चिकित्सकों के छेत्रों में हो जाती है  और अब जल्दी ही भारत सरकार उत्तर प्रदेश को इस रोग से मुक्त घोषित करने वाली है जैसे कि पिछले वर्ष तेलंगाना और आंध्र प्रदेश को कर दिया (http://azad-azadindia.blogspot.com/2016/09/andhra-pradesh-is-declared-fmd-free.html) था.
3. रोगी पशुओं को चुपचाप बेच दो, हो सके तो कसाइयों को. रोगी पशुओं को समाप्त करना भी एक नायाब विधि है रोग मुक्ति की, बहुत सी नई और पुरानी रोग नियंत्रण विज्ञान की पुस्तकों में इसका वर्णन है परन्तु इस विधि को बहुत ही खर्चीला बताया गया है. कुछ अमीर देश ही  इस विधि का उपयोग कर पाते थे परन्तु महान संस्थान के महा-ज्ञानी निदेशकों ने (वैज्ञानिकों ने नहीं) इस विधि का ऐसा कायाकल्प किया कि खर्चीली के बजाय यह विधि धनोत्पादक बन गई. पिछले वर्षों में संस्थान में कुछ दर्जन पशु जो गलती के कारण और कुछ दुष्प्रयास के कारण रोगी घोषित हो गए थे उन्हें नीलाम कर दिया गया जिससे ना रोगी रहे, ना रोग (http://azad-azadindia.blogspot.com/2017/03/list-of-non-productive-and-diseased.html). नीलामी के समय ये ध्यान रखना आवश्यक है कि ऐसे पशु कसाइयों को ही बेचे जाएँ (http://azad-azadindia.blogspot.com/2017/03/why-are-we-selling-cows-for-slaughter.html) वर्ना वे रोग फैलाव का कारण बन सकते हैं. हमारे खाना पकाने के तरीके इतने कारगर हैं कि उनके सामने ब्रूसेला, टीबी, जेडी आदि सब पानी मांगते हैं.
      मित्रों यदि आप सबका और भारत सरकार का आशीर्वाद रहा तो भविष्य में भी इस महान संस्थान से ऎसी और भी बहुत सी खोजें पशु कल्याण के लिए होती रहेंगी.