Monday, December 15, 2025

बुढ़ापा- जियो और जब तक जियो, शान से जिओ

 बुढ़ापा- जियो और जब तक जियो, शान से जिओ

यूं तो 23000 से कुछ सीजल रातें आकर चली गई,
पर किसी ने नहीं की थी बातें इतनी क्रूर,
बहुत थी उनमें घने अंधेरों में लिपटी हुई, और रोशनी के किनारो से बहुत दूर,
और लगभग उतनी ही थी दमकती चांदनी में नहाई, मदहोश जवानी के नशे में चूर, 
बातें वे भी करती थी अक्सर बहुत देर देर तक साफ-साफ भले ही दूर-दूर ।
पर इस कटीली रात की बातें थी कुछ फुसफुसाहट जैसी परंतु पास पास।
आज सुबह भी उतनी सुहानी नहीं थी, उदास थी और झीनी रोशनी के साथ-साथ ।
वैसे तो सूरज निकल रहा था पर कुछ धुंधलका सा था मेरे आस-पास ।
चिड़ियों की चहचहाट लग रही थी जैसे आ रही हो यहीं दरवाजे के पीछे से ।
मेरी सुबह लड़खड़ा रही थी और फिसल रही थी रेत मुट्ठी से ।
दांत कह रहे थे किसकिसाकर कि अब अखरोट तोड़ने में डर लगता है ।
ठीक से याद नहीं आ रहा क्या कह रही थी भला गई रात,
कुछ अस्पष्ट सी, और फुसफुसाकर  कि भोज तुम अब बुढ़ाने लगे हो ।
सच में विश्वास तो नहीं होता पर फिर सोचता हूं ऐसा उसने क्यों कहा जो कभी कहा नहीं था पहले ।
दौड़ने की इच्छा तो अभी भी होती है पहले की तरह और दौड़ता भी हूं,
परंतु दौड़ने के बाद होता है कुछ दर्द का एहसास घुटनों में जो पहले नहीं था ।
कुछ दूर दौड़ने के बाद बैठने को जी चाहता है और मैं बैठा रहता हूं,
अक्सर कई घंटे तक किसी गंभीर विचार में या कभी-कभी यूं ही बिना किसी वजह ।
छोले चावल में अब पहले जैसा स्वाद ही नहीं रहा,
 लोग कहते हैं कि आजकल फसलों में बहुत पेस्टिसाइड और खाद डाले जाते हैं जिन्होंने फसलों को बेस्वाद कर दिया है । कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरी जीभ पर बैठी हुई स्वाद कणिकायें स्वाद से भटकने लगी हैं, 
क्योंकि अब मूंग की दाल में, दलिए और खिचड़ी में, वह स्वाद आने लगा है जो पहले कभी नहीं था ।
अक्सर दांत भी नाराज हो जाते हैं अगर मैं शाम को ब्रश करना भूल जाऊं खाने के बाद, 
कुलबुलाने लगते हैं सुबह-सुबह जैसे नाराज हों बहुत बुरी तरह रात से ।
पहले तो गन्ना चूसने में गन्ने में नूनमेख नहीं निकालते थे कभी,  शायद अब किसानों ने खाने लायक गन्ना ही उगाना बंद कर दिया है ।
गुङ खाना अच्छा तो अभी भी बहुत लगता है,
परंतु कई दोस्त है जो गुड़ खाने के नुकसान अक्सर बताने लगते हैं ।
दोस्त और अपने बच्चे पहले तो कभी ऐसा नहीं करते थे,
परंतु अब साल में कई बार सलाह देते हैं वार्षिक और अर्धवार्षिक स्वास्थ्य जांच की ।
कोई भी नहीं है ऐसा जिसमें कोई कमी ना हो परंतु डरता हूं वार्षिक स्वास्थ्य जांच से क्योंकि,
 कई दोस्त हैं जो जांच के बाद डॉक्टर के चक्कर अक्सर लगाने लगे हैं ।
वैसे तो नाम मेरे पहले भी याद नहीं रहते थे, शायद मैं उनके नाम पूछता ही नहीं था, 
परंतु अब तो कई बार पूंछता हूं यह आजमाने के लिए कि मेरे याद कुछ रहता भी है कि नहीं । 
और जब कभी कभार किसी का नाम मेरे याद नहीं आता तब परेशान होता हूं, 
भूल जाता हूं कि नाम याद रखना मेरी आदत नहीं है और सोचने लगता हूं कि कहानी कुछ और तो नहीं ।
आजकल आसमान में तारे कुछ कम ही नजर आते हैं, लोग कहते हैं की प्रदूषण बहुत है, हवा साफ नहीं है, आसमान गंदा है, और नजारे धुंधलाने लगे हैं, 
कहीं ऐसा तो नहीं मेरी नजर कमजोर होने लगी है और मेरे चश्मे का नंबर बदलने को कह रही है ।
मुझे शोर में भी कोई फर्क नहीं पड़ता आराम से अपना काम करता हूं,
मुझे शोर में रहने की आदत हो गई है या फिर मेरे कान के दरवाजे धीरे-धीरे बंद होने लगे हैं ।
मैं तो कब से सिर्फ अपनी और अपनी ही बात सुनता रहा हूं और सुनाता रहा हूं ।
मुझे नहीं लगता कि मैंने अपनी बोलने की आदत में कोई परिवर्तन किया है, 
परंतु श्रीमती जी अक्सर बड़बड़ाती रहती है कि मैं बहुत तेज बोलने लगा लगा हूं ।
आवाज तो मेरी पहले भी बुलंद थी परंतु जाने क्यों लोग इसे अब बहरेपन की निशानी बताने लगे हैं ।
शायद मेरे शब्द खोखले दांतों को शंख समझ कर बजाते हैं,
और मेरे स्पंदित शब्दों को खुद ही उलझे हुए लोग बुढ़ापे की निशानी बताते हैं ।
लगता है कुछ बात तो है अब बदली हुई, पहले अक्सर कमर दर्द नहीं करती थी परंतु अब अक्सर करती है, 
मैंने सुना है कई लोगों को कहते हुए कि जाड़े में पुरानी चोटें अक्सर दर्द करने लगती है, शायद ऐसा ही है ।
चोटें तो बहुत लगी हैं मुझे बचपन में, कई बार पेड़ से भी गिरा हूं, 
परंतु इन चोटों ने पहले इतने दर्द नहीं दिए शायद अब ये पहले से ज्यादा पुरानी हो गई हैं ।
या फिर आजकल जाङा कुछ ज्यादा ही पङने लगा है साल के इन दिनों दिनों मैं पहले एक स्वेटर ही पहना था अब जैकेट में भी  जाङा लगने लगा है ।
चलो छोड़ो लोगों की बातें अभी कहां से आएगा बुढ़ापा,
चलो छोड़ो रात की बातें अभी तो मंजिल दूर है । 
मैं रिटायर हो गया हूं दुनिया इसी गफलत में है पर शायद सच उन्हें पता नहीं,
असलियत तो यह है की सरकार ने मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए मुझे रिटायर कर दिया है ।
कभी-कभी लगता है मैं कुछ सनकी हो गया हूं फालतू की बातें सोचता रहता हूं,
शायद इसलिए के रिटायरमेंट के बाद करने के लिए कुछ ज्यादा है ही नहीं ।
चलो छोड़ो इन फालतू बातों को, आओ अब घूमने चलें,
मौज और मस्ती करें, अभी तो दिन आए हैं मौज मस्ती करने के,
मुफ्त में लोग मेरी कुछ नई हरकतों को बुढ़ापा बताने के लिए चले हैं।
वैसे तो यह सच नहीं है पर अगर मन को मना भी लूं कि बुढ़ापा आने लगा है,
तब भी क्या दुनिया में सभी तो बुड्ढे नहीं होते हैं, किसी-किसी को मिलती है यह नियामत भी ।
और दुनिया से जाना को तो सभी को है, जवान ही चले जाओ या फिर बूढ़े होकर जाओ ।
 परंतु दोस्तों, जिंदगी कभी बूढी नहीं होती, इसलिए जिंदगी को जियो भरपूर,
सुख में दुख और दुख में सुख ढूंढते रहना ही जिंदगी है, जियो और जब तक जियो, शान से जिओ ।

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