कॉक्रोचों से बढ़ता है टाइफाइड और पैरा-टाइफाइड का ख़तरा
Video link: https://youtu.be/_rEq_FAPvio
भारत में टाइफाइड और पैरा-टाइफाइड एक आम बीमारी है, दिल्ली, कलकत्ता और वैल्लोर इस रोग के सबसे ज्यादा प्रभावित इलाके हैं जहाँ हर सौ में से १-२ व्यक्ति इस रोग का हर वर्ष शिकार बनते हैं. शायद ही कोई देशवासी इसकी चपेट में आने से बचता हो. भारत में इस रोग के प्रकोप का अंदाजा आप इस तथ्य से लगा सकते हैं कि भारत में बुखार से पीड़ित हर दस में से एक रोगी को अक्सर यही रोग बुखार का कारण होता है, आजकल भी प्रति १००० रोगियों में से २ रोगी इस रोग से मर ही जाते हैं.
वैसे तो टाइफाइड
और पैरा-टाइफाइड रोग
के लक्षणों में कोई फर्क
नहीं होता परन्तु टाइफाइड
ज्यादा घातक होता है.
ये रोग गरीबी के
रोग कहे जाते हैं
क्योंकि साफ़-सफाई और
शुद्ध पेयजल कि कमी इसके
फैलने मुख्य कारण हैं. उपलब्ध
आंकड़ों के अनुसार 2००
में से लगभग १
भारतवासी वर्ष में एक
बार इसके चपेट आ
ही जाता है, लगभग
१.५ करोड़ लोग
हर वर्ष इस रोग
से पीड़ित होते हैं और
१.२ लाख मर
जाते हैं. दुनिया भर
में होने वाले कुल
टाइफाइड और पारा-टाइफाइड
रोगी और इस रोग
से मरने वालों में
से आधे केवल भारतवासी
होते हैं. ग्रामीण
छेत्रों की तुलना में
शहरी इलाक़ों में इस रोग
का प्रकोप ज्यादा होता है.
वैसे तो यह
रोग कई कारणों से
फैलता है परन्तु संदूषित
भोजन और पानी ही
इसके मुख्य वाहक हैं, इसके
अलावा विभिन प्रकार के कीट भी
इसके वाहक होते हैं
जो इस रोग को
इस घर से उस
घर तक या फिर
एक ही घर में
वर्षों तक फैला सकते
हैं. इस रोग के
जीवाणु रोगी मनुष्य के
मल-मूत्र के द्वारा निष्काषित
होते हैं, पहले जब
खुले में शौच प्रचलित
था तो मक्खियां इस
रोग के फैलने में
मुख्य सहायक थीं परन्तु अब
काक्रोच का योगदान बढ़
रहा है क्योंकि काक्रोच
अक्सर दिन में शौचालयों
और उनकी नालियों में
छिपे रहते हैं तथा
रात में वे खाने
कि तलाश में अक्सर किचिन
में घूमते हैं और रोग के जीवाणुओं को फैलाते हैं.
टाइफाइड के जीवाणु अक्सर मनुष्यों को ही प्रभावित करते हैं परन्तु पैरा-टाइफाइड के जीवाणु ना केवल मनुष्यों को बल्कि पशुओं को भी प्रभावित करते हैं, उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारत में ३५ वर्ष से कम उम्र के १००० लोगों में से एक को तो पारा-टाइफाइड हर वर्ष हो ही जाता है. इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान में पैरा-टाइफाइड जीवाणुओं के काक्रोच में जीवित रहने और उसके द्वारा फैलाव पर अध्ययन में विदित हुआ कि ये जीवाणु एक सप्ताह तक जीवित काकरोचों में तथा लगभग १० दिन तक मृत कॉकरोचों में फलफूल सकता है. इससे अंदाजा होता है कि जीवित काक्रोच आपके घर और पड़ोसी के घर में किस प्रकार इस घातक रोग को फैला सकता है. आपने कभी-कभी जीवित और मृत काक्रोच पानी के स्रोतों में तैरते हुए और आपकी किचिन में देखे होंगे और उनसे होने वाले खतरों से अनजान उसे अनदेखा भी किया होगा, जिसका नतीजा है हमारा देश इस घातक रोग का एक मुख्य और पसंदीदा ठिकाना बनके रह गया है. इस अध्ययन से यह भी अंदाजा लगता है कि क्यों यह रोग गाँवों के बजाय शहरों में ज्यादा होता है, कारण काक्रोच अक्सर शहरों के घरों, नालियों में ज्यादा देखे जाते हैं. अतः अब आप न सिर्फ मक्खियों से बल्कि कॉक्रोचों से भी अपना बचाव सुनिश्चित करेंगे तभी बच पाएंगे टाइफाइड और पैरा-टाइफाइड के खतरों से.
सन्दर्भ: https://www.researchgate.net/publication/15641318_Survivability_of_Salmonella_paratyphi_B_var_Java_on_experimentally_infected_cockroaches/stats
No comments:
Post a Comment