Holy Cow Protectors and Holy Cow Conservation and Enrichment
गौरक्षक और गौमाता का संरक्षण एवं संवर्धन
जाट मनुज ना जानिये, ना गाय जानिये ढोर ।
तुलसी गाछ न जानिये, ये तीनो नन्द किशोर।।
और भी
अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा लिखा जाट खुदा जैसा ।
ये उक्तियाँ कहने के लिए बहुत सुन्दर है और गौरक्षक लोग अक्सर इन्हें कहते पाए जाते हैं पर वास्तविकता कुछ भी ऐसी नहीं है, ना तो हर जाट, ना ही हर गाय और न ही तुलसी का हर पौधा पूजनीय है और ना कभी था। तुलसी की पूजा जिन घरों में होती है वहां भी एक पौधा जो पूजा स्थान पर लगा है उसकी पत्ती कोई नहीं तोड़ता और दूसरा पौधा जो कहीं अगल बगल ही खड़ा है उसकी पत्तियां रोज ही नोच-नोच कर उबलते पानी में डाल दी जाती हैं, और जो तुलसी जंगल में उग रही है उसका तो कोई खैरख्वाह ही नहीं होता। उसी तरह हर गाय पूजनीय नहीं होती, सिर्फ देशी गाय (Bos indicus), वो भी किसी सनातनी के घर में वह सम्मान पाती है जो इस उक्ति में वर्णित है। रही बात जाट की तो कुछ ना कहना ही बेहतर है। वैसे वास्तविक जिंदगी में इस उक्ति का गौ-संरक्षण या गौ-संवर्धन से ऐसे ही कोई लेना देना नहीं है जैसे कि गौरक्षा का, ये तो सिर्फ बातें हैं और बातों का क्या, लोग गली चौराहों पर और नेता गाहे-बगाहे गाल बजाते ही रहते हैं उसमे सत्यता का अंस ढूंढने वाले भक्त कुछ न कुछ ढूंढ ही लेते हैं।
गौरक्षा एक धार्मिक प्रतिबद्धता है जबकि गौ-संवर्धन और संरक्षण आम जन की आवश्य्कता है। पिछले कुछ वर्षों में एक राजनैतिक पार्टी विशेष और उसके समर्थकों का गौरक्षा पर विशेष ध्यान रहा है, और इसके लिए सरकारी तौर पर कई योजनाएं भी चलाई गई हैं। उनमें से कुछ इसलिए चलानी पड़ी क्योंकि गौरक्षा के संकल्प के चलते देश में लगभग ५० लाख गायें निराश्रित हो गईं अर्थात गौ संवर्धन और गौसंरक्षण दोनों ही घास चरने चले गए और गौमाता भूख से तड़पती हुई आवारा घूमने लगी। पशुगणना २०१९ के आंकड़ों से (https://www.nddb.coop/information/stats/pop; https://dahd.nic.in/documents/statistics/livestock-census) यह विदित हुआ कि जहाँ-जहाँ भी गौरक्षा आंदोलन ने जोर पकड़ा वहां-वहां ही गौसंवर्धन के बदले गौ-संख्या-ह्रास हो गया गया।
इसका अर्थ यह भी हो सकता है कि गौरक्षा आंदोलन से गौ-संरक्षण या गौ-संवर्धन नहीं हो सकता। परन्तु कारण ढूंढना भी आवश्यक है। ऐसा आखिरकार हुआ कैसे, क्या
1. गौपालक और गौरक्षक दो अलग अलग समूह हैं।
2. गौपालकों के लिए गाय पूजनीय नहीं बल्कि एक दुधारू पशु है।
3. गौपालक गाय को सेवा करने के लिए नहीं बल्कि उत्पादक पशु के तौर पर सेवा लेने के लिए पालते हैं।
4. ज्यादातर गौरक्षक सिर्फ नाम के गौरक्षक हैं या गौरक्षा आंदोलन में उनका राजनैतिक या आर्थिक स्वार्थ निहित है और स्वार्थवश मनुष्य अंधानुसरण कर सकता या फिर विनाश।
5. गौरक्षा आंदोलन के चलते गौपशुओं का विपणन बाधित हो गया तो गौपालकों ने आर्थिक तौर पर गैर-लाभकारी गौधन को त्याग दिया; फल, लगभग ५० लाख गौधन आज भारत में निराश्रित और आवारा गिना जा रहा है ।
6. गौरक्षक समूहों द्वारा गौपालकों और गौ-व्यापारियों को अनावश्यक प्रताड़ना भी कुछ हद तक गौपालन के प्रति बढ़ती अनिच्छा का कारण हो सकती है और आये दिन आने वाली इस तरह की सूचनाएं गौरक्षकों को तो मानसिक शांति और एकाधिक लाभ पहुंचा सकती हैं परन्तु गौ-संवर्धन के लिए निश्चित ही हानिकारक सिद्ध हो सकती हैं।
इससे हमें यह समझना होगा कि गौरक्षा एक अलग विषय है इसका गौ-संवर्धन या गौ-संरक्षण से कोई वास्ता नहीं है ऐसा हुआ होता तो यह सब न होता जो ऊपर दिखाई गई तालिकाओं में दिख रहा है।
भारत में गौसंवर्धन में सबसे बड़ा उछाल श्वेतक्रांति काल में देखने में आया था। भारत में १९७० से १९८० के बीच चले श्वेतक्रांति काल में दूध उत्पदान तो बढ़ा ही, देश दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर बना, साथ ही गौपालन और भैंस पालन भी क्रमशः १०.८६% एवं १३.८६% की दर से संख्यात्मक रूप में बढ़ा। देश में दुग्ध उत्पादन लगातार बढ़ रहा है और गाय-भैंसों की संख्या भी बढ़ रही है परन्तु श्वेतक्रांति के बाद गायों की संख्या में वृद्धि (३७.५०%) भैंसों के (६९.२३%) मुकाबले लगभग आधी रह गई है। और जो गायों की संख्या में मामूली सी (६.१३%) वृद्धि देखने में आई है वह भी गौमाताओं (गौरक्षा की लाभ प्राप्त कर्ता) की वृद्धि (०.८१%) के कारण नहीं बल्कि संकर नस्ल की गायों की संख्या में हुई ३९.१३% वृद्धि के कारण ही है। इसका अर्थ यह हुआ कि गौपालकों ने उन दुधारू पशुओं को पालने में रूचि दिखाई जो कम लागत में ज्यादा दुग्ध उत्पादन दे सकें अर्थात भैंस और संकर नस्ल की गायें ना कि पूजनीय गौ-माताएं। भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान में प्रति किलो दूध के उत्पादन में लगने वाले पानी (Water Foot Print of Milk Production) पर हाल ही में देशी गाय और भैंस पर हुए तुलनात्मक अध्ययन में कम पानी खर्चे पर ज्यादा दूध उत्पादन करके भैंसों ने ही विजय पताका फहराई और गौमाता एक बार फिर आरक्षण की मोहताज हो गई।
यह भी एक तथ्य है कि संवर्धन और संरक्षण दो विभिन्न दिशाओं के रास्ते हैं, आप गौरक्षा करते हुए अर्थात प्रत्येक गाय को संरक्षित करते हुए गौसंवर्धन नहीं कर सकते। गौसंवर्धन करने के लिए आपको बीमार, गैर-उत्पादक गौधन को एक किनारे करना ही पड़ेगा जैसे कि गेंहूं के खेत से आप गेहूं के मामा और दूसरे घास-फूंस के पौधे उनके बड़ा होने और फूलने-फैलने से पहले ही निकाल देते हैं, अन्यथा ना तो आप गौसंरक्षण कर पाएंगे और न ही गौसंवर्धन।
गौसंवर्धन के लिए आपको चाहियें ज्यादा उत्पादन छमता वाले रोगरहित स्वस्थ गौधन। ज्यादा उत्पादन छमता वाले गौधन पैदा होते हैं बेकार और कम उत्पादक गायों, रोगी और रोग-धारक गायों से अपनी गौशालाओं को मुक्त करते हुए ज्यादा से ज्यादा दुग्ध उत्पादन करने वाली, स्वस्थ और निरोगी गायों को संरक्षित करके।
आज हम अपनी ही देशी गायों की उन्नत नस्लें विदेशों से आयात करने को लाचार हैं क्योंकि हमने कभी गौसंवर्धन के बारे में सोचा ही नहीं, सिर्फ गौरक्षण की बात की और आज भी कर रहे हैं, अच्छी नस्लें संवर्धित करके सरंक्षित की जाती हैं, ना कि घास फूंस इकठ्ठा करके।
अतः मेरा सभी गौरक्षकों और गौसंरक्षकों से अनुरोध है की गौसंवर्धन करें, गौरक्षण स्वतः ही हो जाएगा। इससे आप मुँह नहीं चुरा सकते कि जिन देशों में भी गौसंवर्धन हुआ है कभी भी कहीं भी गौरक्षा आंदोलन चलाने की आवश्यकता नहीं हुई। आज दुनिया के ज्यादातर देश हमसे बेहतर गौपालन कर रहे हैं और सिर्फ गौपालन ही कर रह रहें, भैंस पालन नहीं, और हम क्या सोच रहे हैं कि किस तरह हम अपनी गौमाता को बचा लें।
गौमाता को बचाना है तो शीघ्रतातिशीघ्र हमें
1. हर गाय को और गाय प्रजाति के पशु को सिर्फ पशु मानना होगा पूज्य नहीं, या कम से कम उसे माँ-बाप, भाई बहिन तो मानने से परहेज करना पड़ेगा। जैसे कि हर पढ़ा लिखा जाट खुदा नहीं होता और न ही हो सकता। जैसे कि हर तुलसी के पौधे को पूजा नहीं जाता, ठीक वैसे ही हर गौधन को रक्षण या संरक्षण की आवश्यक्ता नहीं है।
2. गोविष्ठा (गोबर) और गौमूत्र पी, और पिलाकर गौरक्षा संभव नहीं है। हाँ, दुनिया वाले हम पर हंसेगे और देश बदनाम होगा।
3. गाय एक दूध देने वाला पशु है इसे ब्रह्म वाक्य मानकर गौसंवर्धन करना होगा। जैसा कि और सभी गौपालक, और गौसंवर्धक देशों ने किया है। जो दूसरों को देखकर सम्हल जाए उसे समझदार कहते हैं, जो गिर कर सम्हल जाए वो इंसान होता है, और जो अपनी गलतियों से भी सबक ना ले उसे अन्धा नहीं अन्धबुद्धि कहते हैं।
नहीं सम्हले तो आपको पता भी नहीं चलेगा और देखते देखते ही देश एक भैंस प्रधान देश हो जाएगा। आप गौरक्षक हैं तो यह भी जानते होंगे कि भैंस का का दूसरा नाम महिषी है अर्थात रानी। और माता के देखते देखते कब महिषी गृहस्वामिनी बन जाती है इसका एहसास माता को तब होता होता जब उसे उसकी कोने वाली चारपाई दिखा दी जाती है, भले पुत्र कितना ही मातृ भक्त क्यों न हो, यह होना अवश्यंभावी है।
अतः अभी देर तो हुई है पर अंधेर नहीं, तो गौरक्षा छोड़ कर गौसंवर्धक बनो और गौसंवर्धन करो। हाँ यदि आप एक राजनैतिक गौरक्षक और गौसंरक्षक हैं तो इस अर्धप्रजातांत्रिक (जहाँ कानून का प्रभाव आपके रुतबे और राजनैतिक पृष्टभूमि के अनुसार होता है) देश में आप जो आप कर रहे हैं करने को स्वतंत्र हैं।
See this video about the truth of Gauraksha https://twitter.com/i/status/1728478557406740786
and
आंकड़ो के साथ अच्छा विश्लेषण किया आपने।
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